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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सेक्स वर्कर को भी है न कहने का अधिकार

दिल्ली हाई कोर्ट ने इन बात पर जोर दिया था कि लड़की एक सेक्स वर्कर है और उसका कैरेक्टर ठीक नहीं होगा. यह टिप्पणी इसलिए महत्तवपूर्ण है क्योंकि साल 2009 में हाई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था.

Updated on: 03 Nov 2018, 09:57 AM

नई दिल्ली:

सेक्स वर्कर अन्य महिलाओं से अलग नहीं हैं, उनके भी अन्य लोगों की तरह ही अधिकार हैं. 1997 में हुए रेप केस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा है कि सेक्स वर्कर को न कहने का अधिकार है. राजधानी दिल्ली के कटवारिया सराय इलाके में 28 जुलाई 1997 में हुए गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चार आरोपियों को दोषी करार देते हुए 10 साल की सजा दी है. दिल्ली की निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी लोगों को 10 साल की सजा दी थी. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने इन बात पर जोर दिया था कि लड़की एक सेक्स वर्कर है और उसका कैरेक्टर ठीक नहीं होगा. यह टिप्पणी इसलिए महत्तवपूर्ण है क्योंकि साल 2009 में हाई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था.

अब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटे हुए दोषियों को सजा पूरी करने के लिए सरेंडर करने के लिए 4 हफ्तों का समय दिया है. सर्वोच्च अदालत ने साफ कहा है कि अगर कोई सेक्स वर्कर है तब भी उसे शारीरिक संबंध बनाने से इंकार करने का पूरा अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने सही फैसला दिया था कि महिला का किसी भी काम में लगे होने से उनसे न कहने का अधिकार नहीं छीना जा सकता है. किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह महिला की मर्जी के खिलाफ रेप करें.

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कोर्ट ने कहा कि संबंध बनाने की आदी महिला को भी न कहना का पूरा अधिकार है. इस आधार पर किसी को भी उनका रेप करने का अधिकार नहीं मिल जाता है.