Delhi School: दिल्ली सरकार ने निजी स्कूलों की फीस वसूली में पारदर्शिता और नियंत्रण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ‘दिल्ली विद्यालय शिक्षा (शुल्क निर्धारण एवं विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक, 2025’ को मॉनसून सत्र मेँ पेश किया जाएगा। यह विधेयक शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकने, अभिभावकों के अधिकारों की रक्षा करने और निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में फीस वृद्धि पर लगाम लगाने के लिए लाया जाएगा।
शिक्षा में पारदर्शिता लाने का उद्देश्य
विधेयक का प्रमुख उद्देश्य है शिक्षा को लाभ कमाने का साधन बनने से रोकना और निजी स्कूलों की फीस नीति में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और न्यायसंगत प्रक्रिया लागू करना। यह विधेयक दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में संचालित निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों पर लागू होगा।
प्रमुख प्रावधान और संरचना
1. विद्यालय स्तरीय शुल्क विनियमन समिति: हर स्कूल को एक समिति गठित करनी होगी जिसमें स्कूल प्रबंधन, शिक्षक, दो अभिभावक प्रतिनिधि और शिक्षा निदेशालय का नामित प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह समिति स्कूल द्वारा प्रस्तावित फीस का मूल्यांकन और अनुमोदन करेगी।
2. जिला शुल्क अपीलीय समिति: अगर किसी अभिभावक या अभिभावक समूह को स्कूल की फीस नीति पर आपत्ति है, तो वे 30 दिनों के भीतर जिला स्तर पर गठित इस समिति में अपील कर सकते हैं।
3. राज्य स्तरीय संशोधन समिति: सरकार द्वारा गठित यह समिति अंतिम अपील की सुनवाई करेगी और उसका निर्णय अंतिम होगा।
शुल्क निर्धारण की पारदर्शी प्रक्रिया
स्कूल प्रबंधन को प्रस्तावित शुल्क की जानकारी समिति को देनी होगी, जो 30 दिनों में उसकी समीक्षा कर मंजूरी देगी। एक बार मंजूर हुई फीस तीन शैक्षणिक वर्षों तक लागू रहेगी। स्कूलों को शुल्क के विभिन्न शीर्षकों जैसे ट्यूशन, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, विकास शुल्क आदि को स्पष्ट रूप से दर्शाना अनिवार्य होगा।
मनमानी फीस वसूली पर सख्ती
कोई भी स्कूल अनुमोदित शुल्क से अधिक रकम नहीं ले सकता। यदि ऐसा होता है तो पहली बार 1 लाख से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना लगेगा। यदि स्कूल बार-बार नियमों का उल्लंघन करता है तो जुर्माना दोगुना या तिगुना किया जा सकता है।
अभिभावकों को अधिकार और संरक्षण
अभिभावकों को फीस पर आपत्ति जताने का अधिकार होगा और फीस वसूली के लिए बच्चों के नाम काटना या परिणाम रोकने जैसी जबरदस्ती को प्रतिबंधित किया गया है। ऐसा करने पर स्कूल को प्रति छात्र 50,000 रुपये तक का जुर्माना देना होगा।
शिक्षा निदेशक को मिलेगी मजबूत शक्तियाँ
शिक्षा निदेशक अनधिकृत शुल्क वसूली के मामलों में स्कूल को रकम वापस करने, जुर्माना लगाने और बार-बार उल्लंघन पर मान्यता निलंबित या रद्द करने का अधिकार रखता है। जरूरत पड़ने पर स्कूल प्रबंधन पर अस्थायी नियंत्रण भी स्थापित किया जा सकता है।
वित्तीय पारदर्शिता का प्रावधान
स्कूलों को नियमित रूप से वित्तीय विवरण देना और लेखा-परीक्षा कराना अनिवार्य होगा। फीस निर्धारण के लिए स्थान, सुविधाएं, स्टाफ वेतन, और अन्य कारकों को ध्यान में रखा जाएगा।
विशेष परिस्थितियों में सरकारी नियंत्रण
अगर किसी असाधारण परिस्थिति जैसे प्राकृतिक आपदा, महामारी या युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो सरकार फीस को नियंत्रित करने के लिए विशेष प्रावधान लागू कर सकती है।
न्यायिक क्षेत्राधिकार और व्यय
फीस विवादों में अब नागरिक अदालतों का दखल नहीं होगा और यह अधिकार पूरी तरह संबंधित समितियों को होगा। विधेयक के लागू होने से जुड़े प्रशासनिक ढांचे पर वार्षिक 62 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित है, जिसे शिक्षा विभाग के मौजूदा बजट से वहन किया जाएगा।
यह विधेयक महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों के सफल मॉडलों और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों से प्रेरित है। साथ ही यह दिल्ली विद्यालय शिक्षा अधिनियम, 1973 और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के पूरक के रूप में कार्य करेगा।