निर्भया के गुनाहगार मुकेश की दया याचिका खारिज, लेकिन 22 जनवरी को फांसी संभव नहीं, जानिए क्यों
राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज होने के बाद निर्भया के दोषियों में से एक मुकेश को ट्रायल कोर्ट से 22 जनवरी के लिए जारी डेथ वारंट के मुताबिक फांसी नहीं हो सकेगी.
नई दिल्ली:
राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज होने के बाद निर्भया के दोषियों में से एक मुकेश को ट्रायल कोर्ट से 22 जनवरी के लिए जारी डेथ वारंट के मुताबिक फांसी नहीं हो सकेगी, क्योंकि नियमों के मुताबिक चारो दोषियों को फांसी एक साथ होनी है और बाकी दोषियों के पास अभी भी राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दाखिल करने का विकल्प बचा है. इसके अलावा 2014 में सुप्रीम कोर्ट के शत्रुघ्न चौहान जजमेंट में दी गई व्यवस्था के मुताबिक दया याचिका खारिज होने के बाद भी 14 दिन की मोहलत दोषी को मिलनी चाहिए.
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किस दोषी के पास क्या विकल्प
दोषी विनय की क्यूरेटिव पिटीशन खारिज हो चुकी है. उसके पास राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करने का विकल्प बचा है. जबकि पवन और अक्षय के पास सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका और राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करने का विकल्प बचा है. यहां ये भी गौर करने वाली बात है कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज होने के बाद उस फैसले को कुछ आधार पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.
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दया याचिका खारिज होने के बाद 14 दिनों की मोहलत
2014 में शतुघ्न केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज होने के बाद भी कम से कम 14 दिन की मोहलत दोषी को मिलनी चाहिए ताकि वो इस दरमियान अपने घरवालों से मुलाकात और बाकी काम कर सके. इस लिहाज से भी मुकेश को 22 जनवरी को फांसी संभव नहीं क्योंकि राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को दया याचिका खारिज की है.
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आखिर दोषियों को फांसी कब होगी
ऐसे में जब तक चारों दोषियों की दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज नहीं हो जाती, तब तक फांसी की कोई अंतिम तारीख तय होना मुश्किल है. संविधान जीने के अधिकार को मूल अधिकार मानता है, लिहाज़ा हर किसी को अलग अलग याचिका दाखिल करने का अधिकार हो और सभी याचिकाओं को एक साथ दाखिल करने और साथ सुनवाई के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. निर्भया के दोषियों के वकीलों का जो रवैया रहा है, उसके चलते इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि वो शतुघ्न केस में दी गई 14 दिन की मोहलत का दुरुपयोग किसी एक के डेथ वारंट की मियाद खत्म होने से पहले दया याचिका दायर करते रहे लेकिन ऐसी सूरत में वो फांसी की सज़ा को डेढ़- दो महीने तक ही टाल सकते है.
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