निर्भया मामला: अदालत ने फांसी की सजा पर रोक के खिलाफ केंद्र की अर्जी पर फैसला सुरक्षित रखा
न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने कहा कि अदालत सभी पक्षों द्वारा अपनी दलीलें पूरी किए जाने के बाद आदेश पारित करेगी.
दिल्ली:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने रविवार को केंद्र की उस अर्जी पर फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें उसने निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चार दोषियों की फांसी की सजा की तामील पर रोक को चुनौती दी है. न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने कहा कि अदालत सभी पक्षों द्वारा अपनी दलीलें पूरी किए जाने के बाद आदेश पारित करेगी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्च न्यायालय से कहा कि निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले के दोषी कानून के तहत मिली सजा के अमल में विलंब करने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं.
निर्भया के दोषियों की फांसी की सजा टालने के पटियाला हाउस कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट में रविवार को विशेष सुनवाई हुई. सरकार की तरफ से कोर्ट में कहा कि सभी दोषियों की फांसी की सजा एक साथ देना जरूरी नहीं है. सभी के कानूनी राहत के विकल्प खत्म होने का इतंजार करने की जरूरत नहीं है. दोषियों को अलग-अलग भी फांसी दी जा सकती है. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि दोषियों के रवैये से साफ है कि वो कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं.
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SG ने अलग-अलग दोषियों का हवाला देकर बताया कि कैसे वह एक-एक करके याचिका दायर कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने के बाद रिव्यू ,क्यूरेटिव फाइल करने में देरी हुई, ताकि मामले को लटकाया जा सके. SG तुषार मेहता अब जेल नियम और सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दोषियों ने एक युवती के साथ रेप किया. उसके शरीर में रॉड डाल दी और फिर उसे मरने के लिए सड़क पर फेंक दिया, लेकिन जानबूझकर दोषी आपस में मिलकर कानून के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. पवन ने जानबूझकर अभी तक क्यूरेटिव और मर्सी पेटिशन दाखिल नहीं की है.
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SG ने कहा कि नियमों के मुताबिक किसी दोषी को फांसी केवल तब नहीं हो सकती जब SLP सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर एक अपराध में कई गुनाहगार हैं तो फांसी की सजा पर अमल तब नहीं हो सकेगा, जब तक सभी दोषियों की SLP का SC से निपटारा हो जाए, लेकिन दया याचिका के स्टेज पर ऐसा नहीं है. दया याचिका के स्टेज पर सबको एक साथ ही फांसी की सजा देने की बाध्यता नहीं है. अलग-अलग फांसी हो सकती है.
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