Delhi Meat Shop Rules: धार्मिक स्थलों के पास अब नहीं बिकेगा मांस! खबर दिल्ली से है, जहां एमसीडी ने इसे लेकर नया प्रस्ताव पारित किया है. इसके तहत अब दिल्लीवालों को मटन या चिकन खरीदने के लिए कुछ कदम ज्यादा चलना पड़ेगा. हाल ही में जारी इस रूल के मुताबिक, अब मांस की दुकान और धार्मिक स्थलों के बीच न्यूनतम 150 मीटर की दूरी होना जरूरी है. हालांकि, दिल्ली के मीट कारोबारियों इस फैसले से नाराज हैं, वे जमकर इसका विरोध भी कर रहे हैं. चलिए जानते हैं क्या है ये पूरा नियम और क्यों हो रहा इसका इतना विरोध...
ये है पूरा नियम
हाल ही में जारी ये नया नियम कहता है कि, मीट की दुकान और किसी धार्मिक स्थल या श्मशान घाट के बीच की दूरी कम से कम 150 मीटर होनी जरूरी है, इससे कम दूरी मान्य नहीं होगी. हालांकि ये दूरी तब नहीं लागू होगी, जब मीट की दुकान को लाइसेंस मिलने के बाद धार्मिक स्थल अस्तित्व में आया हो.
एमसीडी ने मस्जिद को ध्यान में रखते हुए भी, इस नीति में विशेष नियम दिया है, जिसमें मस्जिद के आसपास, पोर्क यानि सूअर का मांस छोड़कर, अन्य मंजूर मांस की दुकाने खोली जा सकती है. हालांकि इसके लिए मस्जिद कमिटी या इमाम आवदेक से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) लेना आवश्यक है. गौरतलब है कि, एमसीडी का यह नया नियम डिपार्टमेंट ऑफ वेटनरी सर्विसेज की तरफ से जारी नोटिफिकेशन के बाद लागू किया गया है.
यहां दिल्ली मास्टर प्लान 2021 का जिक्र भी जरूरी है, जिसमें स्पष्ट तौर पर रिहायशी इलाकों और व्यावसायिक इलाकों में मांस की दुकानों को लेकर पॉलिसी बनाई गई है, जिसके तहत रिहायशी इलाकों में मांस की दुकान का न्यूनतम आकार 20 स्क्वायर मीटर दिया गया है. जबकि व्यावसायिक इलाकों में आकार को लेकर छूट दी गई है. वहीं मीट प्रोसेसिंग प्लांट के लिए न्यूनतम आकार 150 स्क्वायर मीटर तय किया गया है.
फीस भी देनी होगी...
एमसीडी द्वारा पेश की गई इस नीति के मुताबिक मांस की दुकान के लिए नए लाइसेंस या रीन्यूवल के लिए 18000 रुपए की फीस का भुगतान जरूरी है. वहीं प्रोसेसिंग यूनिट के लिए ये कीमत 1.5 लाख रुपए तक है. साथ ही इस फीस और पेनल्टी में हर तीन साल के बाद 15 फीसदी तक इजाफा किया जाएगा.
सवाल है कि आखिर विरोध क्यों हो रहा है?
एमसीडी की इस पॉलिसी का विरोध करते हुए दिल्ली मीट मर्चेंट असोसिएशन ने कहा है कि, इससे दिल्ली में भ्रष्टाचार में इजाफा होगा. असोसिएशन के लोगों का कहना है कि, एक अवैध दुकान मालिक जो 2700 रुपये भी काफी मुश्किल से दे पाता है, वो 7 हजार रुपए जैसी बड़ी कीमत कहां से देगा. इससे बचने के लिए वो कुछ पैसे अगर लोकल पुलिस को दे देगा, तो काम चल जाएगा, जिससे भ्रष्टाचार में वृद्धी होगी.
Source : News Nation Bureau