स्कूलों का मकसद सिर्फ किताबी ज्ञान देना नहीं, AI के युग में शिक्षकों की भावी भूमिका पर क्या बोले मनीष सिसोदिया?

मनीष सिसोदिया ने कहा कि इतने बड़े और अलग-अलग तरह के शिक्षा सिस्टम में एआई बहुत कुछ कर सकता है, लेकिन संदर्भ, नैतिकता, भावनात्मक साथ और जिंदगी का अनुभव जैसी चीजें सिर्फ शिक्षक ही दे सकते हैं. वह कोई मशीन नहीं दे पाएगी.

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Mohit Sharma
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Manish Sisodia Photograph: (Social Media)

दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली, पंजाब और उत्तराखंड के शिक्षकों से बात की. इस दौरान उन्होंंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जिस तेजी के साथ दुनिया को बदल रही है, उसमें स्कूलों को अब केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि बच्चों को दूसरों के साथ अच्छे से जीना सिखाना होगा. आने वाले वक्त में सबसे बड़ी चुनौती टेक्नोलॉजी को समझना नहीं, बल्कि अपने आप से, दूसरों से और प्रकृति से सही तालमेल बिठाना होगा. 

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एआई की वजह से तेजी से बदल रही दुनिया 

शिक्षकों को बेहतर बनाने का काम करने वाले एक मशहूर एनजीओ के शिक्षकों से बातचीत में मनीष सिसोदिया ने कहा कि मशीनों के इस दौर में पढ़ाई-लिखाई में भावनाओं को समझना, दूसरों का दर्द महसूस करना और सबके साथ मिलकर रहना सबसे जरूरी होगा. दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि एआई की वजह से दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है. हम उस दौर में पहुंच गए हैं, जहां एआई निबंध लिख सकता है, गणित के सवाल हल कर सकता है, इतिहास का सारांश दे सकता है और साइंस के प्रयोग भी दिखा सकता है. ऐसे में अब शिक्षक का पुराना रोल, जो बस किताबी ज्ञान देने का था, वह खत्म हो रहा है.

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2 Photograph: (News Nation)

 

भारत में शिक्षा के हाल पर एक नजर

  • यूडीआईएसई के मुताबिक भारत में 25.5 करोड़ से ज्यादा बच्चे स्कूल जाते हैं.
  • देश में 95 लाख से ज्यादा शिक्षक हैं, जिनमें से करीब 50 लाख सरकारी स्कूलों में हैं.
  • पूरे देश में 15 लाख स्कूल हैं, जो हर तरह के इलाकों और समाज को कवर करते हैं.

स्कूलों का मकसद सिर्फ किताबी ज्ञान देना नहीं

मनीष सिसोदिया ने कहा कि इतने बड़े और अलग-अलग तरह के शिक्षा सिस्टम में एआई बहुत कुछ कर सकता है, लेकिन संदर्भ, नैतिकता, भावनात्मक साथ और जिंदगी का अनुभव जैसी चीजें सिर्फ शिक्षक ही दे सकते हैं. वह कोई मशीन नहीं दे पाएगी. अब स्कूलों का मकसद सिर्फ किताबी ज्ञान देना नहीं, बल्कि बच्चों का चरित्र बनाना, उनकी सोच को नया रंग देना, सबके साथ काम करना और दूसरों का ख्याल रखना और सिखाना होना चाहिए. एक उदाहरण देते हुए मनीष सिसोदिया ने कहा कि पहले न्यूटन के नियम पढ़ाने के लिए शिक्षक की जरूरत होती थी. आज 12 साल का बच्चा चैटजीपीटी से पूछकर जवाब, तस्वीरें और वीडियो तक ले सकता है. इसलिए, अब सवाल यह नहीं है कि न्यूटन के नियमों को कैसे पढ़ाया जाए, बल्कि सवाल यह है कि गति, बल और सवाल के बारे में सीखना क्यों महत्वपूर्ण है.

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11111 Photograph: (Social Media)

 

किताबों से आगे बढ़कर सही बातचीत की ओर

दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री ने कहा कि अब शिक्षकों को बच्चों को सही सवाल पूछना सिखाना चाहिए, जवाब देने की चिंता न करें. जवाब तो एआई भी दे देगा. शिक्षकों को बच्चों को ऐसे सवाल सिखाने चाहिए जो जिंदगी, नैतिकता और समाज से जुड़े हों. उन्होंने फिनलैंड का जिक्र करते हुए कहा कि वहां स्कूल अब अलग-अलग सब्जेक्ट की बजाय असल जिंदगी की चीजों पर फोकस करते हैं. उन्होंने सवाल किया कि अब हम आठवीं क्लास में साइंस, ज्योग्राफी और सिविक्स को अलग-अलग रखने के बजाय ‘प्लास्टिक एक अभिशाप या सुविधा?’ जैसा टॉपिक क्यों नहीं पढ़ा सकते. 

हर शिक्षक के लिए सवाल, क्यों पढ़ाएं?

मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज सवाल ये नहीं कि कैसे पढ़ाना है, बल्कि क्यों पढ़ाना है? जवाब आसान है लेकिन गहरा है. हम सिर्फ दिमाग भरने के लिए नहीं, बल्कि एक अच्छा इंसान बनाने के लिए पढ़ाते हैं. उन्होंने कहा कि कोई मशीन उस शिक्षक की जगह नहीं ले सकती जो बच्चों को प्रेरणा देता है, उनकी बात सुनता है और उन्हें अहसास दिलाता है कि वो खास हैं. उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों का उदाहरण देते हुए कहा कि 2015 से 2023 के बीच 1.5 लाख से ज्यादा बच्चे नीट और जेईई जैसी बड़ी परीक्षाओं में बैठे, जो पहले सोचना भी मुश्किल था. दिल्ली के स्कूल ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस (एसओएसई) अब बच्चों को एआई, मानविकी, बिजनेस और स्टेम के लिए तैयार करते हैं. ये दिखाता है कि शिक्षक अब सिर्फ पढ़ाने की बजाय बच्चों को रास्ता भी दिखा रहे हैं.

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333333 Photograph: (News Nation)

 

शिक्षक ट्रेनिंग को लेकर भी नए सिरे से सोचना होगा

मनीष सिसोदिया ने कहा कि शिक्षक ट्रेनिंग को लेकर भी नए सिरे से सोचना होगा. शिक्षकों को सिर्फ पढ़ाने का तरीका नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी, नैतिकता, मनोविज्ञान और भावनाओं को समझने की ट्रेनिंग भी चाहिए. उन्होंने शिक्षकों से कहा कि क्लासरूम ऐसे बनाएं जहां बच्चे मिलकर काम करना, सही तरीके से डिबेट करना, अपनी भावनाओं को काबू करना और अपने आसपास की दुनिया का ख्याल रखना सीखें. भविष्य में शिक्षक की यही भूमिका होने वाली है. आने वाले समय में उन्हें बच्चों को सवालों के जवाब देने की बजाय सही जिंदगी जीने के लिए तैयार करना होगा. आज का ये प्रोग्राम मनीष सिसोदिया की उस कोशिश का हिस्सा था जिसमें वो शिक्षकों से मिलते हैं, उनकी बात सुनते हैं और भारत के स्कूलों को भविष्य के लिए तैयार करने का सपना साथ मिलकर देखते हैं.

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