कोर्ट ने जुबैर को जमानत देते हुए कहा- हिंदू धर्म सबसे सहिष्णु....
हिंदू देवता के खिलाफ एक आपत्तिजनक ट्वीट करने के मामले में शुक्रवार को दिल्ली की पटिलाया हाउस कोर्ट ने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को जमानत दे दी है.
नई दिल्ली:
हिंदू देवता के खिलाफ एक आपत्तिजनक ट्वीट करने के मामले में शुक्रवार को दिल्ली की पटिलाया हाउस कोर्ट ने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को जमानत दे दी है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने जुबैर को 50,000 रुपये के मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत पर राहत दी. फिलहाल, जेल से मोहम्मद जुबैर रिहा नहीं होंगे, क्योंकि उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ कई केस दर्ज किए गए हैं. पूर्व अनुमति के बिना कोर्ट ने जुबैर को देश से बाहर नहीं जाने को कहा है.
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जज ने मोहम्मद जुबैर को जमानत देते हुए लिखा कि दुनिया का सबसे प्राचीन और सबसे सहिष्णु धर्म हिंदू धर्म है और इसको मानने वाले भी सहिष्णु होते हैं. हिंदू इतने सहिष्णु होते हैं कि देवी-देवताओं के नाम पर गर्व से अपने बच्चों का नाम भी रख देते हैं. जज ने लिखा है कि आज तक उस व्यक्ति की तलाश पुलिस नहीं कर पाई जुबैर के ट्वीट से जिस व्यक्ति की भावना आहत हुई थी, जिसने कंप्लेन की थी. जज ने आगे लिखा है कि उपलब्ध सामग्री से प्रथम दृष्टया साबित होता है कि FCRA का उल्लंघन नहीं हुआ है.
दिल्ली की पटिलाया हाउस कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र का आधार है. अदालत ने लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी का महत्व बताते हुए कहा कि लोगों द्वारा खुली चर्चा के माध्यम से लोकतंत्र को स्थापित किया जाता है. लोग जब तक अपने विचार साझा नहीं करते हैं, तब तक लोकतंत्र न तो काम कर सकता है और न ही समृद्ध हो सकता है.
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कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलती है. इसमें कोई संशय नहीं है कि एक लोकतांत्रिक समाज की नींव अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है. विचारों का फ्री आदान-प्रदान, बिना किसी रोकटोक के सूचना का प्रसार, ज्ञान का प्रसार, भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का प्रसारण, बहस करना और अपने विचारों का निर्माण करना एवं उन्हें व्यक्त करना मुक्त समाज के मूल संकेतक हैं.
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अदालत ने आगे कहा कि लोगों के लिए उचित आधार पर अपने खुद के विचारों और एक स्वतंत्र समाज में अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों का एक सूचित तरीके से प्रयोग करना यह स्वतंत्रता ही संभव बनाती है. संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) की ओर से गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने दायरे से संबंधित कर्तव्य और जिम्मेदारी लाती है और उस स्वतंत्रता के प्रयोग पर सीमाएं लगाती हैं.
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