logo-image

तजिंदर बग्गा केस में  HC ने दिल्ली पुलिस को जारी किया नोटिस, 4 सप्ताह में मांगा जवाब

दिल्ली पुलिस ने छह मई की देर रात पंजाब पुलिस कर्मियों के खिलाफ अपहरण की प्राथमिकी दर्ज की.

Updated on: 24 May 2022, 04:55 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता तजिंदर पाल सिंह बग्गा के उनके आवास से कथित अपहरण के मामले में प्राथमिकी रद्द करने की पंजाब पुलिस की याचिका पर दिल्ली पुलिस से जवाब तलब किया है. पंजाब में साहिबजादा अजित सिंह नगर (एसएएस नगर) के पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) मनप्रीत सिंह की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस, दिल्ली सरकार और बग्गा को नोटिस जारी किया और चार वीक के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा.

दरअसल, बग्गा की हिरासत की मांग को लेकर  पंजाब पुलिस ने दिल्ली HC का रुख किया है. राज्य पुलिस ने मामले में दर्ज FIR और बग्गा को रिलीज करने वाले आदेश को चुनौती दी थी. पंजाब पुलिस की याचिका पर जस्टिस अनु मल्होत्रा ​​की पीठ ने सुनवाई की. हाईकोर्ट की जस्टिस अनु मल्होत्रा ​​ने कहा कि प्रतिवादी चार सप्ताह के अंदर अपना जवाब दाखिल करेंगे. उन्होंने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 26 जुलाई को सूचीबद्ध कर दिया.

यह भी पढ़ें : लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में जुटी कांग्रेस, टास्क फोर्स में शामिल किए ये नाम 

दरअसल, छह मई को पंजाब पुलिस ने बग्गा को उनके जनकपुरी आवास से गिरफ्तार किया था, लेकिन दिल्ली पुलिस उन्हें हरियाणा से वापस ले आई थी. दिल्ली पुलिस का आरोप था कि उनके पंजाब समकक्ष ने उन्हें गिरफ्तारी के बारे में सूचित नहीं किया था. कथित रूप से भड़काऊ बयान देने, वैमनस्य को बढ़ावा देने और आपराधिक धमकी देने के मामले में पंजाब पुलिस द्वारा बग्गा की गिरफ्तारी के बाद, दिल्ली पुलिस ने छह मई की देर रात पंजाब पुलिस कर्मियों के खिलाफ अपहरण की प्राथमिकी दर्ज की.

पंजाब पुलिस ने अपनी याचिका में जनकपुरी पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी. याचिका में 6 मई, 2022 को दिल्‍ली की स्‍थानीय अदालत द्वारा पारित आदेशों को भी चुनौती दी गई थी. इसके तहत बग्गा को पेश करने के लिए तलाशी वारंट जारी किया गया था और उसे हिरासत से रिहा कर दिया गया था. याचिका में कहा गया है कि पंजाब पुलिस ने बग्गा की गिरफ्तारी की थी, जिस पर आईपीसी की धारा 153 (ए), 505, 505 (2), 506 के तहत दर्ज एफआईआर में विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य, अशांति और दुर्भावना को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था.