दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक निर्णय सुनाया है कि किसी शख्स को अपने बच्चे का आर्थिक रूप से समर्थन करने से केवल इसलिए छूट नहीं दी जा सकती है क्योंकि उसकी पत्नी में बच्चे का भरण-पोषण करने की क्षमता रखती है. शहर की एक अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए, उच्च न्यायालय ने पिता को अपने बेटे को तब तक गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया, जब तक वह स्नातक नहीं हो जाता या कमाना शुरू नहीं कर देता. यह कहते हुए गुजारा भत्ता केवल जीवित रहने के लिए नहीं, बल्कि एक सम्मानजनक अस्तित्व सुनिश्चित करता है.
किसी भी कथित शिकायत के बावजूद अपने बच्चे की देखभाल करना पति का कर्तव्य है. यह सामान्य बात है कि पत्नी की बच्चे को पालने की क्षमता ऐसी छूट नहीं देती, वह अपने बच्चे की आर्थिक मदद करने से छूट देने को लेकर पर्याप्त नहीं है. न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने दिसंबर में कहा था कि 17 निर्णय, बाद में जारी किया गया.
सम्मानजनक अस्तित्व सुनिश्चित करना है
पीठ के अनुसार, भरण-पोषण का उद्देश्य सक्षम पक्ष की कमाई क्षमता को संतुलित करते हुए आश्रित पति या पत्नी या बच्चे की वित्तीय आजीविका सुनिश्चित करना है. भरण-पोषण केवल जीवित रहने को लेकर नहीं है. इसका उद्देश्य विवाह के दौरान प्राप्त जीवन-स्तर के अनुरूप एक सम्मानजनक अस्तित्व सुनिश्चित करना है. यह फैसला शहर की एक कोर्ट ने अक्टूबर 2021 के निर्णय को चुनौती देने वाले शख्स की याचिका पर सामने आया है. इस दौरान उसे अपने बच्चे के लिए 25,000 हजार का मासिक रखरखाव का भुगतान करने की जरूरत थी.
जब तक कि बच्चा स्नातक पूरा नहीं कर लेता है. वहीं कमाई शुरू नहीं कर देता. निचली कोर्ट ने पत्नी को मुआवजे के रूप में ₹10,00,000 का भुगतान करने और भविष्य में उसके निवास के अधिकार को सुरक्षित रखने का भी निर्देश दिया.