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राजधानी के प्रतिष्ठित फ़ोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट (FEHI) में डॉक्टरों की टीम ने एक सात वर्षीय बच्चे की जान बचाकर चिकित्सा विज्ञान में नया इतिहास रच दिया है. बच्चे को पिछले कई महीनों से लगातार टैकीकार्डिया (Tachycardia) यानी अत्यधिक तेज़ हृदय गति की गंभीर समस्या थी. उसकी दिल की धड़कनें सामान्य से दोगुनी रफ़्तार से चल रही थीं और किसी भी क्षण उसके दिल के रुक जाने का ख़तरा बना हुआ था.
बच्चे की स्थिति और चुनौतियां
बच्चे का वज़न मात्र 25 किलोग्राम था और उम्र केवल सात साल. चिकित्सकीय दृष्टि से यह बेहद चुनौतीपूर्ण स्थिति थी. सामान्यतः ऐसे मामलों में रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (Radiofrequency Ablation) जैसी जटिल प्रक्रिया तब की जाती है जब रोगी का वज़न कम से कम 35 किलोग्राम हो, ताकि हृदय में डाले जाने वाले तारों (कैथेटर) को सुरक्षित रूप से संचालित किया जा सके. लेकिन इस बच्चे की स्थिति इतनी नाज़ुक थी कि इंतज़ार करना जानलेवा साबित हो सकता था.
डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे का हृदय प्रति मिनट 170 से 200 बार धड़क रहा था, जबकि सामान्य धड़कन 75 से 118 प्रति मिनट होती है. लगातार तेज़ धड़कन की वजह से उसके दिल के मांसपेशी ऊतक पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा था और कभी भी कार्डियक अरेस्ट की आशंका थी.
दुर्लभ और जटिल प्रक्रिया का निर्णय
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए फ़ोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट की वरिष्ठ विशेषज्ञ टीम ने तत्काल निर्णय लिया कि ऑपरेशन किए बिना बच्चे की जान नहीं बचाई जा सकती. इस जीवन रक्षक प्रक्रिया का नेतृत्व डॉ. अपर्णा जसवाल, निदेशक कार्डियक पेसिंग और इलेक्ट्रोफिज़ियोलॉजी विभाग ने किया. उनके साथ वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अमितेश चक्रवर्ती भी मौजूद थे.
डॉ. जसवाल ने बताया, “सात वर्ष की आयु और मात्र 25 किलो वज़न वाले बच्चे पर यह प्रक्रिया करना अत्यंत जोखिमपूर्ण था. लेकिन हमारे पास समय नहीं था. लगातार टैकीकार्डिया बच्चे के हृदय को अस्थिर बना रही थी, और किसी भी क्षण दिल की धड़कनें पूरी तरह रुक सकती थीं. हमने सावधानीपूर्वक हर चरण में निर्णय लिया और टीमवर्क के ज़रिए उसे नई ज़िंदगी दी.”
क्या है रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन
यह एक अत्याधुनिक हृदय उपचार तकनीक है जिसमें हृदय की विद्युत प्रणाली की असामान्यताओं को ठीक किया जाता है. इस प्रक्रिया में एक विशेष कैथेटर को रक्त वाहिकाओं के ज़रिए हृदय तक पहुँचाया जाता है और रेडियोफ्रीक्वेंसी तरंगों से उन कोशिकाओं को निष्क्रिय किया जाता है जो गलत विद्युत संकेत भेजकर हृदय की धड़कनें बिगाड़ती हैं. इससे हृदय की गति सामान्य हो जाती है और भविष्य में टैकीकार्डिया की पुनरावृत्ति की संभावना घट जाती है.
ऑपरेशन का परिणाम और बच्चे की वापसी
सर्जरी पूरी तरह सफल रही. ऑपरेशन के कुछ ही दिनों बाद बच्चे की हृदय गति सामान्य हो गई और वह घर लौट आया। डॉक्टरों के अनुसार, अब वह पूरी तरह स्वस्थ है और धीरे-धीरे अपनी सामान्य दिनचर्या में लौट रहा है. सबसे ख़ास बात यह है कि उपचार के कुछ ही हफ्तों बाद बच्चे ने फुटबॉल खेलना भी शुरू कर दिया है, जो उसकी स्वस्थ रिकवरी का प्रतीक है.
डॉक्टरों और परिवार की प्रतिक्रिया
बच्चे के परिजनों ने फ़ोर्टिस टीम के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। हमें उम्मीद नहीं थी कि हमारा बच्चा इतनी जल्दी ठीक हो जाएगा.” डॉ. जसवाल ने कहा, “यह मामला बच्चों के हृदय रोग उपचार में हमारे आत्मविश्वास और तकनीकी क्षमता का प्रमाण है। ऐसी जटिल प्रक्रिया को समय रहते करना हमारे लिए भी बड़ी चुनौती थी, लेकिन हमने टीमवर्क और अनुभव के बल पर सफलता हासिल की।”
चिकित्सा विज्ञान के लिए प्रेरक उदाहरण
यह मामला बाल हृदय विज्ञान (Pediatric Cardiac Electrophysiology) के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है. बेहद कम उम्र और कम वज़न वाले बच्चे पर इस तरह की रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन प्रक्रिया का सफलतापूर्वक संचालन देश के चिकित्सा संस्थानों की तकनीकी दक्षता को दर्शाता है.
नई दिल्ली का यह मामला न केवल भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चिकित्सा समुदाय के लिए प्रेरणादायक उदाहरण बन गया है. यह दिखाता है कि समय पर लिए गए निर्णय, आधुनिक तकनीक और समर्पित चिकित्सा टीम मिलकर जीवन और मृत्यु के बीच की दूरी को मिटा सकती हैं.