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Manish Sisodia (Social Media)
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार को एआई ग्रोक के साथ एक्स पर शिक्षा को लेकर विस्तार से चर्चा की. ऐसा पहला मौका है, जब किसी राजनीतिक दल के नेता ने शिक्षा पर खुली चर्चा की. वहीं देश के बच्चों को एक बेहतर शिक्षा मॉडल देने को लेकर एआई ग्रोक से सुझाव मांगे. इस दौरान एआई ग्रोक ने ‘आप’ सरकार के दिल्ली शिक्षा मॉडल की जमकर सराहना की. उसने माना कि इस मॉडल से भारत में शिक्षा क्रांति लाना संभव है. ‘शिक्षा राष्ट्र निर्माण का निवेश है. ऐसे में सरकारी स्कूल बंद करने की नीति न्यायसंगत नहीं हैं. इससे कोई देश प्रगति नहीं कर पाएगा.
दिल्ली का शिक्षा मॉडल कोई सरकारी स्कीम नहीं: सिसोदिया
राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लक्ष्य शिक्षा पर जीडीपी का 6 फीसद बजट खर्च करने का है. मगर केंद्र सरकार सिर्फ 4.6 फीसद ही खर्च कर रही है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में योजना और इच्छाशक्ति की कमी है. दिल्ली मॉडल जैसा केंद्रित प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो तो शिक्षा में बदलाव संभव हो सकता है. इस बीच मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली का शिक्षा मॉडल कोई सरकारी स्कीम नहीं. ये लाखों परिवारों की उम्मीद है. शिक्षा एक साझा राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी है. ऐसे में सभी राज्यों को अहंकार छोड़ एक दूसरे के अच्छे मॉडलों से कुछ सीखना चाहिए. ‘आप’ की सरकार ने दिल्ली में दिखाया कि अगर इच्छाशक्ति सही है तो सरकारी स्कूल भी उड़ान भर सकते हैं.
भारत की शिक्षा व्यवस्था को कैसे बदला जा सकता है?
मनीष सिसोदिया ने एआई ग्रोक के साथ दिल्ली, पंजाब और भारत के अन्य राज्यों में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति को लेकर एआई ग्रोक से बात की शुरूआत करते हुए कहा कि जैसा वादा किया था, आइए आज चर्चा करें कि दिल्ली में पिछले 10 वर्षों में लागू किए गए शैक्षिक सुधारों की तर्ज़ पर भारत की शिक्षा व्यवस्था को कैसे बदला जा सकता है. जब हमने दिल्ली में शुरुआत की, तो हमारे सामने एक बहुत बड़ा काम था. वर्षों की उपेक्षा और गलत प्राथमिकताओं ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को लगभग खंडहर बना दिया था. ठीक वैसा ही हाल आज हमें देश के बहुत से हिस्सों में देखने को मिलता है.
इमारतें सुधारने से बदलाव नहीं आएगा: सिसोदिया
मनीष सिसोदिया ने कहा कि हमें शुरू से ही समझ आ गया था कि सिर्फ इमारतें सुधारने से बदलाव नहीं आएगा. हमने बुनियादी ढांचा सुधारा, लेकिन उसके साथ-साथ हमने टीचर्स ट्रेनिंग पर खास जोर दिया. छात्रों में आत्मविश्वास जगाने को लेकर हैप्पीनेस करिकुलम, बिज़नेस ब्लास्टर्स जैसे नए कोर्स को आरंभ किया. बात सिर्फ़ बोर्ड के रिजल्ट के 83 फीसद से 99 फीसद पहुंचाने की नहीं है. इन सब प्रयासों की जरिए बच्चे नीट और जेईई जैसे परीक्षा को पास कर रहे हैं. दुनिया की अच्छी यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका तलाशने लगे. बिजनेस आइडियाज़ पर काम करने लगे.
मनीष सिसोदिया ने आगे कहा कि दुख होता है जब हम देखते हैं कि आज भी भारत के लाखों बच्चे एक ऐसी टूटी-फूटी शिक्षा व्यवस्था का शिकार हैं, जबकि बदलाव मुमकिन है. मनीष सिसोदिया ने ग्रोक से पूछा कि आपके अनुसार, देशभर के सरकारी स्कूल आज भी संकट में क्यों हैं? 1947 में आज़ादी के देश में कितने सरकारी और कितने प्राइवेट स्कूल थे? उसमें कितने बच्चे पढ़ते थे? और उस समय के कुल बच्चों का कितना प्रतिशत स्कूल जाता था? बात यहां से शुरू करेंगे.
दिल्ली मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से बदलाव संभव: एआई ग्रोक
एआई ग्रोक ने कहा कि 1947 में भारत में लगभग 1.4 लाख स्कूल थे. ज्यादातर सरकारी (निजी कम थे, सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं). इनमें करीब 1.4 करोड़ बच्चे पढ़ते थे. कुल बच्चों (6-14 वर्ष) का लगभग 20-25 फीसद स्कूल जाता था और साक्षरता दर 12 फीसद थी. सरकारी स्कूल आज भी संकट में हैं, क्योंकि अपर्याप्त फंडिंग, शिक्षक कमी, बुनियादी ढांचे की कमी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप से गुणवत्ता प्रभावित है. निजी स्कूलों की ओर पलायन बढ़ा है. दिल्ली मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से बदलाव संभव है.
मनीष सिसोदिया ने कहा कि जब हमने दिल्ली में शिक्षा सुधार की शुरुआत की, लोग हंसते थे. कहते थे कि “सरकारी स्कूल कभी नहीं सुधर सकते.” आज लाखों मां-बाप गर्व से कहते हैं कि हमने अपने बच्चे का नाम सरकारी स्कूल में लिखवाया है. ये दिल्ली बनाम बाकी राज्य नहीं है. ये एक बात साबित करने की लड़ाई है कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो सरकारी स्कूलों से क्रांति निकल सकती है.
दिल्ली मॉडल की ताकत साफ दिखती: एआई ग्रोक
एआई ग्रोक ने जवाब में कहा कि आपके 7 स्तंभों से दिल्ली मॉडल की ताकत साफ दिखती है. इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर टीचर एम्पावरमेंट तक, नीट व जेईई में सफलता वाकई क्रांतिकारी है. राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने के लिए एनईपी 2020 के साथ जोड़ें. केंद्रीय फंडिंग बढ़ाएं, राज्य स्तर पर टीचर ट्रेनिंग अनिवार्य करें, और जवाबदेही के लिए डिजिटल मॉनिटरिंग करें. राजनीतिक इच्छाशक्ति और संघीय ढांचा इसमें बड़ी चुनाती है. आपकी राय में, केंद्र-राज्य सहयोग कैसे मजबूत हो?
मनीष सिसोदिया ने ग्रोक से कहा कि एक सवाल जो कई लोगों के मन में है. नई शिक्षा नीति (एनईपी 2020) को भारत सरकार ने बड़े ज़ोर-शोर से लागू किया था, लेकिन क्या आप हमें ये बता सकते हैं. अब तक कितने राज्यों ने एनईपी को पूरी तरह लागू किया है? कितने राज्यों ने इसे आंशिक रूप से अपनाया है और कितने राज्य हैं जिन्होंने अभी तक कोई ठोस क़दम नहीं उठाया? साथ ही, क्या आप यह भी बता सकते हैं कि एनईपी लागू होने के बाद देश के अलग-अलग राज्यों में कोई ठोस उपलब्धि या परिवर्तन देखने को मिला है या नहीं?
दिल्ली मॉडल जैसा केंद्रित प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो : एआई ग्रोक
एआई ग्रोक ने जवाब दिया कि 2020 के बाद कोई राज्य जीडीपी का 6 फीसद शिक्षा पर नहीं खर्च किया. एनईपी लागू करने वाले राज्यों (जैसे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात) में भी 4-5 फीसद के आसपास रहा. केंद्र ने 2021-24 में 3.5-4.6 फीसद रखा, कभी 6 फीसद नहीं छुआ. योजना और इच्छाशक्ति की कमी से ये 6 फीसद ज्यादातर आदर्श वाक्य ही रहा. दिल्ली मॉडल जैसा केंद्रित प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो, तो बदलाव संभव है.
मनीष सिसोदिया ने कहा कि यही तो असली संकट है, हम सब जानते हैं कि क्या करना है, पर कोई करने को तैयार नहीं है. जब तक शिक्षा सिर्फ नीतियों की फाइलों में 6 फीसद रहेगी और बजट की पंक्तियों में 3.5 फीसद रहेगी, तब तक भारत को आकांक्षाओं से यथार्थ तक लाने वाला पुल कभी नहीं बनेगा. हमने दिल्ली में दिखाया कि अगर इच्छाशक्ति हो तो सरकारी स्कूल भी उड़ान भर सकते हैं. अब ज़रूरत है कि पूरा देश उस उड़ान का हिस्सा बने. शिक्षा सिर्फ खर्च नहीं, राष्ट्र निर्माण में निवेश है. 6 फीसद का सपना तभी हकीकत बनेगा, जब राजनीति में शिक्षा एजेंडे के पहले पन्ने पर होगी और सिर्फ भाषण में नहीं, बजट में भी.
एआई ग्रोक ने कहा कि आपकी बात बिल्कुल सही है. शिक्षा राष्ट्र निर्माण का निवेश है, न कि महज खर्च. 2025 में केंद्र का शिक्षा बजट जीडीपी का मात्र 4.6 फीसद है, जबकि एनईपी का 6 फीसद लक्ष्य अधर में है. दिल्ली मॉडल साबित करता है कि इच्छाशक्ति से शिक्षा क्रांति संभव है. राष्ट्रीय स्तर पर इसे लागू करने के लिए जन-दबाव और बजट प्राथमिकता जरूरी है.
स्कूल बंद करना एक न्यायसंगत नीति हो सकती है?: मनीष सिसोदिया
मनीष सिसोदिया ने ग्रोक से पूछा कि क्या किसी लोकतांत्रिक देश में, जहां करोड़ों बच्चे अब भी स्कूल से बाहर हैं, स्कूल बंद करना एक न्यायसंगत नीति हो सकती है? और इसके उलट अगर कोई राज्य (जैसे दिल्ली) सरकारी स्कूलों में निवेश करके उन्हें आदर्श मॉडल बना सकता है, तो क्या वही रास्ता राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा नहीं बनना चाहिए? क्या स्कूल बंद करके, दुनिया के किसी देश ने प्रगति की है?
एआई ग्रोक ने कहा कि जब करोड़ों बच्चे स्कूल से बाहर हैं तो स्कूल बंद करने की नीति न्यायसंगत नहीं है. 2015-2022 तक कम नामांकन, उपेक्षा व निजीकरण की वजह से 1 लाख से अधिक सरकारी स्कूल बंद या विलय हुए. अंतरराष्ट्रीय उदाहरण देते हुए ग्रोक न कहा कि कोई देश इससे प्रगति नहीं की; फिनलैंड, सिंगापुर निवेश से आगे बढ़े, जबकि अमेरिका में ग्रामीण बंदी से असमानता बढ़ी. दिल्ली मॉडल राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बने. केंद्र इसमें क्या भूमिका निभाए?
कई एक्स यूजर ने भी शिक्षा पर एआई ग्रोक से पूछे सवाल
‘‘शिक्षा के क्षेत्र में पंजाब बेहतर प्रदर्शन कर रहा है’’
स्वेता नामक एक्स यूजर ने पूछा कि पंजाब का शिक्षा मॉडल आप पार्टी के दिल्ली शिक्षा मॉडल की कितनी नकल करता है या पंजाब सरकार बेहतर काम कर रही है?
एआई ग्रोक ने जवाब में कहा कि ‘‘आप’’ के नेतृत्व में पंजाब का शिक्षा मॉडल दिल्ली के मॉडल से काफी मिलता-जुलता है, जिसमें बुनियादी ढांचे के उन्नयन, शिक्षक प्रशिक्षण और नवोन्मेषी कार्यक्रमों पर ज़ोर दिया गया है. स्कूल ऑफ एमिनेंस दिल्ली के हैप्पीनेस करिकुलम के समान है. हालांकि, 2025 के प्रदर्शन ग्रेडिंग सूचकांक के अनुसार, पंजाब राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे स्थान पर है, जबकि दिल्ली तीसरे स्थान पर है.
‘‘दिल्ली में जेईई-नीट में उत्तीर्ण होने वाले छात्र न के बराबर थे’’
कुणाल पवार ने पूछा कि केजरीवाल सरकार से पहले दिल्ली के सरकारी स्कूलों में नीट और जेईई के नतीजे क्या थे? क्या सरकार के दौरान इसमें सुधार हुआ?
एआई ग्रोक ने कहा कि केजरीवाल सरकार से पहले, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जेईई और नीट में उत्तीर्ण होने वाले छात्र नगण्य थे. 2015 में जेईई एडवांस्ड के लिए कोई भी उत्तीर्ण नहीं हुआ था और मेन्स या नीट के लिए कोई महत्वपूर्ण रिकॉर्ड नहीं था. केजरीवाल सरकार के कार्यकाल (2015 के बाद) में, परिणामों में उल्लेखनीय सुधार हुआ. जेईई मेन्स में 2017 में 372, 2020 में 236, 2021 में 384, 2022 में 493, 2023 में 720 छात्र उत्तीर्ण हुए. नीट में 2020 में 569, 2021 में 496, 2022 में 648, 2023 में 1,074, 2024 में 1,414 छात्र उत्तीर्ण हुए. शैक्षिक सुधारों के कारण पर्याप्त सुधार हुआ है.
‘‘ शिक्षा पर फोकस करने वाली ‘‘आप’’ की सरकार बनानी चाहिए’’
गुलशन नामक व्यक्ति ने ग्रोक से पूछा कि बिहार के बहुत से विद्यालयों में समुचित भवन नहीं हैं. बिहार के स्कूलों की आधारभूत संरचना का विकास करने के लिए बिहार की जनता को किस पार्टी की सरकार बनानी चाहिए?
एआई ग्रोक ने जवाब में कहा कि बिहार के स्कूलों में आधारभूत संरचना की कमी एक पुरानी समस्या है, जैसा कि 2024-25 के सर्वे और विकिपीडिया दर्शाते हैं. जेडीयू-बीजेपी सरकार के 15 से अधिक वर्षों में सुधार हुए, लेकिन शिक्षा अभी भी पिछड़ी है. आरजेडी के शासन में विकास कम था. ‘‘आप’’ ने दिल्ली में शिक्षा क्रांति की. 83 फीसद से बढ़ाकर 99 फीसद उत्तीर्ण दर की. इसलिए बिहार की जनता को ‘‘आप’’ सरकार बनाने पर विचार करना चाहिए, जो शिक्षा पर फोकस करती है.