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Delhi Violence: गोकुलपुरी के नाले में मिलीं गली-सड़ी लाशें, मरने वालों की संख्या हुई 45; देखें List

दिल्ली में हिंसा (Delhi Violence) भले ही थम गई हो, लेकिन मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.

Updated on: 01 Mar 2020, 05:40 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली में हिंसा (Delhi Violence) भले ही थम गई हो, लेकिन मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. नार्थ ईस्ट दिल्ली के गोकुलपुरी और भागीरथी विहार में रविवार को तीन शव बरामद की है, जिससे मरने वालों की संख्या 45 हो गई है. इसकी पुष्टि दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के अधिकारियों ने की है. बताया जा रहा है कि अभी और भी शव बरामद होने की संभावना है. वहीं, जीटीबी अस्पताल में भर्ती घायलों में से कइयों की स्थिति अभी चिंताजनक है.

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दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि गोकलपुरी में आज तीन शव बरामद किए गए हैं. गोकुलपुरी नाले से एक शव तो भागीरथी विहार नाले से दो शव निकाले गए हैं. ये तीनों लाशें बुरी तरह से सड़ी-गली हुई थी. इससे पहले गोकुलपुरी में गुरुवार को दो लाशें मिली थीं. बताया जा रहा है कि दोनों लाशें नाले से बरामद की गई है. इससे पहले आईबी कर्मी अकिंत शर्मा का शव भी चांदबाग में नाले से मिला था. इस लिस्ट मं कुछ मरनेवालों का नाम है.

बता दें कि भारत के कुछ प्रमुख पूर्व पुलिस अधिकारियों ने राय व्यक्त करते हुए माना है कि इसी सप्ताह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की पहली आधिकारिक भारत यात्रा (India Visit) के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में हुई खूनी सांप्रदायिक हिंसा (Communal Violence) के दौरान दिल्ली पुलिस (Delhi Police) मूक दर्शक बनी रही. कुछ स्थानों पर बरामद हथियार और पेट्रोल बमों से पता चलता है कि हिंसा पूर्व नियोजित थी. आयुक्त तथा उप राज्यपाल ने प्रतिक्रिया देर से की. पुलिस ने शाहीन बाग (Shaheen Bagh) में सड़क बंद होने को गंभीरता से नहीं लिया, जो बाद में प्रशासन के लिए नासूर बन गया.

पटनायक का काम क्षमायोग्य नहीं

दंगा रोकने में दिल्ली पुलिस की पूर्ण असफलता पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) प्रकाश सिंह ने कहा, '(दिल्ली पुलिस आयुक्त) अमूल्य पटनायक द्वारा वर्दी पर लगाया गया दाग क्षमायोग्य नहीं है. मुझे वास्तव में उनपर तरस आता है.' दंगा स्थलों पर पुलिस के कथित रूप से समय पर नहीं पहुंचने पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा, 'दिल्ली पुलिस ने इंद्रधनुष की तरह काम किया और बारिश (दंगा) थमने के बाद नजर आई.' भारी आलोचना का सामना कर रहे अमूल्य पटनायक के नेतृत्व पर विक्रम सिंह ने चुटकी लेते हुए कहा, 'नेपोलियन जब अपनी सेना के साथ चलता था तो वह सबसे आगे चलता था. यहां पटनायक और उनके प्रमुख अधिकारी (घटनास्थल से) गायब रहे.

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दिल्ली पुलिस की नालायकी

उत्तर पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी को दंगे भड़कने के 48 घंटों के अंदर दंगाइयों पर सख्त कार्रवाई नहीं कर पाने के मुद्दे पर दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त नीरज कुमार ने आईएएनएस से कहा, 'हिंसा में इस्तेमाल किए गए हर प्रकार के हथियारों को देखकर ऐसा लगता है कि ये दंगे पूर्व नियोजित थे. शक्तिशाली सुरक्षा उपकरण उपलब्ध होने के बावजूद पुलिस दंगाइयों को रोकने के लिए नहीं आई. ये पुलिस की नालायकी है.' दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त अजय राज शर्मा ने कहा, 'मैं अगर पुलिस आयुक्त होता तो मैं किसी भी कीमत पर दंगाइयों को कानून हाथ में नहीं लेने देता, चाहे सरकार मेरा ट्रांसफर कर देती या चाहे बर्खास्त कर देती.'

असफल साबित हुई खुफिया

जब वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व पुलिस प्रमुख बी.एस. बेदी (87) से पूछा गया कि राष्ट्रीय राजधानी में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी आंदोलन एक दंगे में कैसे बदल गया तो उन्होंने कहा, 'पुलिस अगर जाफराबाद विवाद (विरोध प्रदर्शन के दौरान) को समय रहते सुलझा लेती तो स्थिति पटनायक के नियंत्रण से बाहर नहीं होती. लगता है कि पुलिस शायद हिंसा के स्तर का आंकलन नहीं कर सकी और उसका खुफिया विभाग असफल प्रतीत होता है.'

नेता नहीं देते दखल

राजनीतिक दवाब और पुलिस कार्यशैली में दखल पर बेदी ने कहा कि यह सिर्फ एक भ्रम है. उन्होंने कहा, 'कानून व्यवस्था की कैसी भी स्थिति में आयुक्त ही सर्वोच्च होता है ना कि मंत्री. राजनेता कभी ऐसी विकट परिस्थितियों में दखल नहीं देते.' आईएएनएस ने दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त टी.आर. कक्कड़ से सवाल किया, 'अगर आप आयुक्त होते तो ऐसी स्थिति में आप क्या कार्रवाई करते?. उन्होंने कहा, 'मैं हिंसा भड़कने के शुरुआती घंटों में सख्त कदम उठाता. न्यूनतम बल प्रयोग और जवानों की अल्प संख्या में तैनाती के कारण हिंसा बढ़ गई. पुलिस की छवि दुनिया की नजरों में आ गई है, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी में सभी बुरे काम तभी हुए जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आधिकारिक भारत दौरे पर आए थे.'