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Delhi Riots Case: दिल्ली दंगे मामले से जुड़ी बड़ी खबर सामने आई है. दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े बहुचर्चित 'बड़ी साजिश' मामले में शरजील इमाम, उमर खालिद, खालिद सैफी, तस्लीम अहमद सहित नौ आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं. न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलेंद्र कौर की पीठ ने यह अहम फैसला मंगलवार 2 सितंबर को सुनाया. बता दें कि अदालत की ओर से इस पर 10 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था.
UAPA के तहत दर्ज मामला
यह पूरा मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के अंतर्गत दर्ज है, जो देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों में लगाया जाता है. दिल्ली पुलिस ने अदालत के समक्ष यह दावा किया कि यह दंगे कोई सामान्य प्रतिक्रिया नहीं थे, बल्कि एक सुनियोजित और पूर्व-नियोजित साजिश का हिस्सा थे. इस साजिश का उद्देश्य भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बदनाम करना था, विशेष रूप से उस समय जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की यात्रा पर थे.
पुलिस के आरोप और सरकार की दलील
सरकारी पक्ष की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि यह मामला देश की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है, इसलिए जमानत नहीं दी जा सकती. उन्होंने कहा कि जब तक सजा या बरी होने का फैसला नहीं होता, तब तक ऐसे आरोपियों को जेल में ही रहना चाहिए.
पुलिस ने दावा किया कि शरजील इमाम के भाषणों में उकसावे की बातें थीं जैसे असम को देश से काटने की बात. वहीं उमर खालिद पर आरोप है कि उन्होंने 23 स्थानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए, जिससे माहौल भड़काया गया. आरोपियों ने कथित रूप से व्हाट्सएप ग्रुप्स, मीटिंग्स और भाषणों के माध्यम से दंगे भड़काने की योजना बनाई.
क्या थीं आरोपियों की दलीलें
वहीं दूसरी ओर, आरोपियों के वकीलों ने अदालत में लंबी हिरासत (5 साल से अधिक), ट्रायल में देरी और समान मामलों में अन्य सह-आरोपियों को मिली जमानत का हवाला दिया. उदाहरण के लिए, देवांगना कालिता और नताशा नरवाल को पहले ही जमानत मिल चुकी है. उमर खालिद के वकील त्रिदीप पैस ने कहा कि केवल किसी व्हाट्सएप ग्रुप का सदस्य होना, या कोई संदेश न भेजना, अपराध नहीं हो सकता.
खालिद सैफी की वकील रेबेका जॉन ने UAPA के दुरुपयोग पर सवाल उठाए, लेकिन अदालत ने माना कि दिए गए भाषणों और आयोजित बैठकों से एक डर और विद्रोह का माहौल बना.
अब क्या होगी आगे की राह
हाईकोर्ट की ओर से जमानत याचिकाएं खारिज किए जाने के बाद, आरोपियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया गया है. यह देखना अब दिलचस्प होगा कि सर्वोच्च न्यायालय इस मामले को किस तरह से देखता है, खासकर जब यह केस ट्रायल के पहले चरण चार्ज फ्रेमिंग तक भी नहीं पहुंचा है.