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दिल्ली प्रदूषण Photograph: (ANI)
दिल्ली-एनसीआर की हवा जहरीली हो गई है. सरकार को अब दफ्तरों की कार्यप्रणाली तक बदलनी पड़ी है. हालात इतने बिगड़ गए हैं कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने ग्रेप (GRAP) स्टेज-IV के कुछ नियमों को सीधे स्टेज-III में लागू कर दिया, जिससे सख्ती और बढ़ गई है, अब राजधानी में सरकारी और निजी दफ्तरों में सिर्फ 50% कर्मचारी ही ऑफिस आएंगे, बाकी सभी को अनिवार्य रूप से वर्क-फ्रॉम-होम करना होगा. साथ ही, जहां संभव हो, दफ्तरों में स्टैर्ड टाइमिंग का पालन और गैर-जरूरी ट्रैफिक को कम करने के निर्देश दिए गए हैं.
कौन-से विभागों को छूट?
स्वास्थ्य सेवाएं, फायर सर्विस, सफाई, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और प्रदूषण नियंत्रण जैसे जरूरी विभाग इस आदेश से बाहर रहेंगे. इनके कर्मचारियों को पहले की तरह ही फिजिकल उपस्थिति देनी होगी. नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है. साफ है कि दिल्ली अब आपातकालीन मोड में काम कर रही है, क्योंकि हालात लोगों की सांसों पर भारी पड़ रहे हैं.
यह सिर्फ मौसम की गलती नहीं
दिल्ली की यह स्थिति केवल सर्दियों की वजह से नहीं है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह संकट वर्षों से जमा हो रही शहरी नीतियों की कमजोरियों का नतीजा है. हर साल का वही सिलसिला सर्दी आती है, हवा बिगड़ती है, GRAP लागू होता है, नियम बनते हैं और कुछ समय बाद सब जैसे-तैसे सामान्य हो जाता है. लेकिन जिन जड़ों से प्रदूषण पैदा होता है, उनसे निपटने की गंभीर कोशिश अब तक नहीं हुई.
ट्रैफिक प्रदूषण और वाहन निर्भरता, भवन निर्माण की धूल, औद्योगिक उत्सर्जन और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना. इन सभी पर ठोस, संयुक्त नीति का अभाव दिल्ली की हवा को हर साल और अधिक विषाक्त बनाता जा रहा है. शहर का अनियंत्रित विस्तार, कमजोर पब्लिक ट्रांसपोर्ट और ग्रीन कवर की कमी इस समस्या को और गहरा कर रहे हैं.
क्या सिर्फ वर्क-फ्रॉम-होम से समाधान निकलेगा?
विशेषज्ञ इसे सिर्फ तात्कालिक राहत मानते हैं. उनका कहना है कि अब दिल्ली को एकीकृत एयर मैनेजमेंट सिस्टम, हरित बुनियादी ढांचा, इलेक्ट्रिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट, औद्योगिक निगरानी और NCR राज्यों के साथ सख्त तालमेल की जरूरत है. नहीं तो हर सर्दी दिल्ली के लिए हेल्थ-इमरजेंसी बनकर ही लौटेगी, और आने वाली पीढ़ियां इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाएंगी.
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