पश्चिम दिल्ली मॉल घोटाले की चल रही जाँच में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने संबंधित स्वीकृति प्राधिकरण (sanctioning authority) को सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने की मंजूरी देने में विफल रहने पर कड़ी फटकार लगाई है. जस्टिस शैलेंद्र कौर ने एक मामले की सुनवाई करते हुए अत्यधिक देरी पर कड़ी नाराज़गी व्यक्त की और प्राधिकरण को छह सप्ताह के भीतर विस्तृत स्पष्टीकरण दाखिल करने का निर्देश दिया.
क्या है मामला
यह मामला, जिसने अपनी व्यापकता और कथित तौर पर उच्च पदस्थ अधिकारियों की संलिप्तता के कारण पहले ही सार्वजनिक और कानूनी ध्यान आकर्षित कर लिया है, 200 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले से संबंधित है. यह घोटाला मूल रूप से हुई.S. Con-Build Private Limited को लीज पर दी गई मॉल संपत्ति के अवैध व्यावसायिक शोषण से जुड़ा है. DDA द्वारा जनवरी 2020 में 200 करोड़ रुपये से अधिक के बकाए के कारण लीज रद्द करने के बावजूद, कथित तौर पर जाली दस्तावेजों, शेल कंपनियों और विभिन्न सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से व्यावसायिक संचालन जारी रहा.
अदालत ने लिया संज्ञान
28 मई, 2025 को सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के इस कथन का गंभीर संज्ञान लिया कि कई संचारों के बावजूद, सक्षम प्राधिकारी ने प्रमुख सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए आवश्यक स्वीकृति नहीं दी थी. याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट विकास पाहवा, एडवोकेट गौरव गुप्ता और एडवोकेट ठाकुर अंकित सिंह पेश हुए. मामले की अगली सुनवाई अब अगस्त 2025 को होगी है.