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दिल्ली हाईकोर्ट ने समान नागरिक संहिता को लागू करने की वकालत की है. उच्च न्यायालय ने कहा कि पर्सनल लॉ में बाल विवाह की अनुमति है, जबकि पोक्सो एक्ट और बीएनसी में ये अपराध है. दोनों कानूनों के बीच बार-बार टकराव होता है, जिस वजह से कानूनी स्पष्टता जरूरी है.
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस अरुण मोंगा ने शुक्रवार को कहा कि हम अक्सर इस परेशानी में आ जाते हैं कि क्या लंबे वक्त से चले रहे पर्सनल लॉ का पालन करने के लिए दोषी बनाना चाहिए. मोंगा ने कहा कि क्या अब यूसीसी की ओर बढ़ने का वक्त नहीं आ गया. क्या ऐसा सिस्टम बनाने की जरूरत नहीं है कि पर्सनल लॉ जैसे कानून राष्ट्रीय कानूनों पर भारी न पड़े.
अब जानें क्या है पूरा मामला
दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से शादी करने के आरोपी हामिद रजा की जमानत याचिका से जुड़े केस की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की. हामिद पर आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो एक्ट के तहत आरोप लगाए गए हैं कि उसने एक नाबालिग लड़की से शादी की है. रजा के खिलाफ लड़की के सौतेले पिता ने ही एफआईआर की थी.
क्या है मुस्लिम पर्सनल लॉ, इसमें क्या है शादी का प्लान
इस्लामिक पर्सनल लॉ में किसी लड़की के यौवन शुरू होने पर ही शादी की परमिशन है. यौवन शुरू होने की उम्र को 15 साल माना गया है. यानी इस्लाम मानने वाला कोई भी व्यक्ति पर्सनल लॉ के तहत 15 साल की लड़की के साथ शादी कर सकता है और ये कोई अपराध नहीं है. जबकि आईपीसी बीएनएस और पोक्सो एक्ट में नाबालिक के साथ शादी या फिर यौन संबंध बनाने पर पूर्णत प्रतिबंध है. पोक्सो और बीएनएस धार्मिक रीति-रिवाजों से परे ऐसी शादियों और रिश्तों को अपराध मानता है.
उत्तराखंड UCC लागू करने वाला देश का पहला राज्य
देश के दो राज्यों में ही वर्तमान में यूसीसी लागू है. देश की आजादी के बाद उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जिसमें यूसीसी लागू हुआ है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 27 जनवरी 2025 को इसका ऐलान किया था. UCC लागू होने के बाद से उत्तराखंड में हलाला, बहुविवाह और तीन तलाक जैसी प्रथाएं पूर्ण रूप से प्रतिबंधित हो गईं.