दिल्ली सरकार ने वित्तीय अनुशासन और कानूनी जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है. लोक निर्माण विभाग (PWD), जल विभाग, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग को निर्देशित किया गया है कि वे पिछले 20 वर्षों में हुए सभी ₹1 करोड़ से अधिक के मध्यस्थता (Arbitration) मामलों का विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत करें. इस कदम का उद्देश्य सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की जांच करना, विभागीय जवाबदेही तय करना और भविष्य में ऐसी स्थितियों से बचाव के लिए सख्त व्यवस्था लागू करना है.
सरकार ने इन विभागों से वर्षवार और निर्णयवार विवरण मांगा है, जिसमें निम्नलिखित जानकारियाँ शामिल होंगी:
• ₹1 करोड़ से अधिक के मध्यस्थता मामलों की कुल संख्या
• सरकार के विरुद्ध आए फैसलों का संक्षिप्त विवरण
• भुगतान की गई राशि या हुए नुकसान का ब्योरा
• भुगतान से पहले की गई अपीलों की संख्या
यह व्यापक ऑडिट प्रक्रिया न केवल वित्तीय नुकसान की सच्चाई को सामने लाएगी, बल्कि यह भी पता लगाने में मदद करेगी कि किन मामलों में बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के समझौता कर लिया गया.
अब बिना विधि विभाग की मंजूरी नहीं होगा भुगतान
दिल्ली सरकार ने स्पष्ट निर्देश जारी किया है कि जब तक कोई मध्यस्थता मामला पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया से नहीं गुजरता और विधि विभाग से औपचारिक मंजूरी नहीं मिलती, तब तक सरकार के खिलाफ दिए गए मध्यस्थता फैसलों में कोई भुगतान नहीं किया जाएगा. यह निर्णय वर्षों से चल रही उस परंपरा पर रोक लगाएगा जिसमें बिना अपील किए सीधे ठेकेदारों को भुगतान कर दिया जाता था.
PWD में अनुबंधों से हटाया गया मध्यस्थता क्लॉज़
लोक निर्माण विभाग ने अपने सभी नए ठेकों से मध्यस्थता क्लॉज़ (Arbitration Clause) को हटा दिया है. अब यदि किसी ठेकेदार को किसी परियोजना में विवाद होता है, तो उसे सीधे न्यायालय का रुख करना होगा. यह बदलाव विभाग के मंत्री प्रवेश साहिब सिंह के निर्देश पर लागू किया गया है.
मंत्री ने कहा,“सरकारी धन पवित्र होता है. वर्षों तक विभागों ने बिना कानूनी लड़ाई लड़े दावे निपटा दिए – अब ऐसा नहीं होगा. हम दो दशक की मध्यस्थता हिस्ट्री की जांच कर रहे हैं ताकि पता चल सके कि कहां गलती हुई और क्यों सरकार ने आसानी से हार मान ली.”
यह रणनीतिक निर्णय कई स्तरों पर असर डालेगा:
• अनुचित और फर्जी दावों की संभावना में कमी आएगी
• सरकारी विभागों की कानूनी तैयारी बेहतर होगी
• अनुबंधों की निगरानी और कार्यान्वयन में पारदर्शिता आएगी
• सार्वजनिक विश्वास को बल मिलेगा
• दीर्घकालिक वित्तीय नुकसान पर रोक लगेगी