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कांग्रेस सरकारें पाक- बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों से अन्याय पर जवाब देने में विफल रही : सिंह

सिंह ने कांग्रेस को ‘ नेताओं की ऐसी पार्टी’ बताया जो अपने ही इतिहास से अपरिचित है और अपने कुछ वरिष्ठ नेताओं के बयानों को ही नहीं पढ़ती है.

Updated on: 30 Dec 2019, 11:17 PM

दिल्ली:

केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने सोमवार को आरोप लगाया कि कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारें पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर 'अन्याय और अत्याचार' पर जवाब देने में विफल रही और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब इन लोगों को राहत दे रहे हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री सिंह ने कहा कि यहां तक कि प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहरलाल नेहरू ने भी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले हिन्दू शरणार्थियों की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त की थी. पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की पूर्व सरकारों के सामने समय समय पर पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाली नाइंसाफी और अत्याचार का विषय आया, लेकिन उनमें जवाब देने का साहस नहीं था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास इस मुद्दे पर निर्णायक पहल करने का साहस, दृढ़ विश्वास और क्षमता है.

सिंह नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विपक्षी कांग्रेस सहित विभिन्न तबकों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जाने के बाबत पूछे गए सवाल का जवाब रहे थे. इस कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना की वजह से 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है. इस आशय का विधेयक शीतकालीन सत्र में पारित हुआ है. सिंह ने कांग्रेस को ‘ नेताओं की ऐसी पार्टी’ बताया जो अपने ही इतिहास से अपरिचित है और अपने कुछ वरिष्ठ नेताओं के बयानों को ही नहीं पढ़ती है. केंद्रीय मंत्री ने कहा यहां तक कि प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त की थी और विशेष रूप से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आने वाले हिंदू शरणार्थियों को संदर्भित किया था.

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सिंह ने कहा कि 1950 की नेहरू-लियाकत अली खान संधि वास्तव में नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार के इस एहसास से प्रेरित थी कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ उचित सलूक नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा, 'इसका एक प्रमाण यह है कि 1949 में नेहरू-लियाकत समझौते पर हस्ताक्षर होने से लगभग एक साल पहले, नेहरू ने असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई को एक पत्र लिखा था और कहा था कि ‘आपको हिंदू शरणार्थियों और मुस्लिम प्रवासियों में फर्क करना चाहिए और देश को शरणार्थियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.' सिंह ने कहा कि नेहरू ने हिन्दुओं के लिए ‘शरणार्थी’ शब्द और मुस्लिमों के ‘प्रवासी’ शब्द को इस्तेमाल किया. उन्होंने इस्लामी राज्य पाकिस्तान पर विचार किया जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, इसलिए वे शरण चाह रहे हैं.

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मंत्री ने कहा कि नेहरू-लियाकत समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ महीनों के भीतर, नेहरू को एहसास हो गया था कि पाकिस्तान अपने अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर खरा नहीं उतर रहा है. उन्होंने कहा कि यह नेहरू द्वारा 5 नवंबर, 1950 को संसद में दिए गए बयान से स्पष्ट है, जब उन्होंने कहा था कि ‘इसमें निश्चित रूप से कोई संदेह नहीं है कि जो विस्थापित लोग भारत में बसने आए हैं, उनके पास नागरिकता होनी चाहिए है. यदि इस संबंध में कानून अपर्याप्त हैं, तो कानून को बदला जाना चाहिए. सिंह ने कहा कि 1963 में लोकसभा में एक ध्यान आकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान नेहरू ने यह कहते हुए हस्तक्षेप किया था कि पूर्वी पाकिस्तान में अधिकारी हिंदुओं पर बहुत दबाव बना रहे हैं. कांग्रेस पर एनपीआर और एनआरसी को मिलाने का आरोप लगाते हुए सिंह ने कहा कि तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने 2010 में संसद में एक लघु चर्चा के दौरान कहा था कि एनपीआर एनआरसी का आधार हो सकता है.