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राजधानी में स्वतंत्रता दिवस से पहले 'चायनीज मांझा' बन रहा लोगों के लिए जानलेवा

अगस्त से पहले ही दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में पतंगबाजी शुरू हो जाती है. पेंच लड़ाने के लिए लोग कई तरह के माँझो का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इसमें सबसे ख़तरनाक होता है चायनीज मांझा, भारत में बैन के बावजूद इस मांझे की कई जगह बिक्री हो रही है.

Updated on: 06 Aug 2022, 07:47 AM

नई दिल्ली:

अगस्त से पहले ही दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में पतंगबाजी शुरू हो जाती है. पेंच लड़ाने के लिए लोग कई तरह के माँझो का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इसमें सबसे ख़तरनाक होता है चायनीज मांझा, भारत में बैन के बावजूद इस मांझे की कई जगह बिक्री हो रही है. और इसी वजह से अब यह किलर मांझा पशु पक्षियों के साथ इंसानों के लिए भी जानलेवा साबित हो रहा है. क्या है पूरा मामला, ये रिपोर्ट देखिये. जी हां, अगर आप या आपके घर में  मौजद बच्चे पतंगबाजी करते हैं और पेंच लड़ाते हैं तो ये खबर आपके लिए बहुत जरूरी है. दरसअल हर साल अगस्त का महीना शुरू होते ही, दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में पतंगबाजी शुरू हो जाती है. पेंच लड़ाने के लिए लोग कई तरह के माँझो का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इसमें सबसे ख़तरनाक होता है चायनीज मांझा, इसे मेटल कोटेड मांझा भी कहा जाता है. बैन के बावजूद भारत में इस मांझे की कई जगह बिक्री हो रही है. और यही कारण है कि अब इस मांझे की वजह से पशु पक्षियों के साथ इंसानों की भी जान पर बन आई है. 

हाल ही में दिल्ली के शास्त्री नगर में रहने वाली 61 साल की विद्यावती जगतपुरी थाने के पास से अपनी स्कूटी पर जा रही थी, तभी अचानक किसी कटी हुई पतंग का मांझा अचानक उनके चेहरे पर आकर लगा. हेलमेट पहनने की वजह से पलभर में ही मांझा विद्यावती के हेलमेट से होते हुए गले पर चला गया. विद्यावती कुछ समझ पाती उससे पहले ही उन्हें गले में अजीब से जलन हुई और अगले ही पल वे दर्द से कराह उठीं. वो रुकी और देखा तो उनके गले से तेजी स खून बह रहा था, उनके गले पर  मांझे ने ऐसा ज़ख्म दिया था मानो चाकू से काटा गया हो. अपने गले से तेजी से बहते खून को देखकर विद्यावती परेशान हो गई और वहीं बेहोंश हो गई. आसपास मौजूद लोगों और पुलिस ने तुरंत उन्हें नजदीकी अस्पताल पंहुचाया. जब अस्पताल में उनकी आंख खुली तो उन्हें पता चला कि उनका गला मांझे से बुरी तरह कट गया  है. डॉक्टरों ने उनकी किसी तरह से जान बचाई. 4 दिनों तक भर्ती रहीं विद्यावती की आपबीती आप उन्हीं की जुबानी सुनिए.

विद्यावती की ही तरह दिल्ली की ही गीता कालोनी में रहने वाली 54 साल की उषा राजन बीती 15 जुलाई को नोएडा से अपने दफ्तर से घर लौट रही थीं, हर रोज की तरह उन्हें गीता कालोनी के बाहर उनका बेटा लेने आता था, लेकिन 15 जुलाई की वो तारीख उषा के लिए मानो बुरा दिन बनकर आया. जब उषा रॉड क्रॉस कर रही थी, तब एक मांझा उनके पैरों में उलझ गया एयर पिंडली से एड़ी की हड्डी को जोड़ने वाली मसल्स के आर पार हो गया. जख्मी हालत में उषा को अस्पताल लाया गया. जहां उनके दाहिने पैर में गहरे घाव थे, जिसकी डॉक्टरों ने सर्जरी की. अस्पताल में 5 दिन भर्ती रहीं उषा अब अपने दफ्तर नहीं जा पा रहीं इसलिए ज्यादा परेशान हैं.

दिल्ली के मैक्स अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट के डारेक्टर एंड हेड डॉक्टर मनोज जोहर ने न्यूज़ नेशन संवाददाता वैभव परमार को बताया कि ऐसे केसेज में सर्जरी करना बहुत चुनौती भरा होता है. डॉक्टरों का कहना था कि उषा का काफी खून बह गया था , अगर उन्हें अस्पताल आने में देरी हो जाती तो शायद उनकी जान पर बन आती.

डॉक्टर मनोज का यह भी कहना है को साल 2016 में इस तरह की घटनाओं के सामने आने के बाद सरकार ने ऐसे प्रोडक्ट पर बैन लगाया था, लेकिन अब फिर आए इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है. भारत में मकर संक्रांति के दौरान और अगस्त में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लोग जमकर पतंगबाजी करते हैं.कई बार ऐसा होता है कि मांझा रास्तों मौजद तारों, सड़कों और पेड़ों पर लटका होता है. ये ना सिर्फ़ पशु पक्षियों को जख़्मी कर देता है बल्कि चलते फिरते राहगीरों को भी बुरी तरह जख्मी कर देता है. टीम न्यूज़ नेशन ने भी दिल्ली के मयूर विहार इलाके के पास जाकर इसका मुआयना किया तो उन्हें भी आसमान छूती पतंगों के साथ सड़को पर आया मांझा भी मिला.

जनवरी और अगस्त महीने के दौरान बढ़ने वाली ऐसे तमाम घटनाओं के डर से अब लोगों ने सिर पर हेलमेट के साथ अब गले में रुमाल और गमछा लगाना भी शुरू कर दिया है.पुराने जमाने में भी जब पतंगे उड़ती थी, तो मांझा सूट या कॉटन का बना होता था, लेकिन जब से चायनीज मांझा देश में आया है, तबसे स्थिति बिगड़ गई थी, फिलहाल नायलोन या चायनीज मांझा भारत में बैन है लेकिन जिस तरह से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, उससे ये तो साफ है कि अभी भी बाजारों में चायनीज मांझा पिछले दरवाजे से बिक रहा है. टीम न्यूज़ नेशन ने इसकी पड़ताल की तो दिल्ली के चांदनी चौक स्थित लाल कुआं में हमें कई दुकानें पतंग और मांझे की मिली. यहां पर तो व्यापारियों ने अपनी दुकानों के बाहर सख्त निर्देश लगा रखे हैं कि यहां चायनीज मांझा नहीं मिलता. लेकिन उन्हें भी लगता है कि कहीं न कहीं तो अब भी इस तरह के मांझे की ब्लैक में बिक्री हो रही है.

इसमें कोई दोराय नहीं कि कोई भी त्योंहार पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने चाहिए लेकिन विद्यावती और उषा के साथ जो हुआ, ठीक वैसा ही कई लोगों के साथ पूरे देश में हो रहा है. ये बताता हूं कि कैसे बैन के बावजूद अब भी अवैध रूप से तैयार किया जा रहा ये मांझा कितना जानलेवा है. अगर आप और हम, आज से ये संकल्प लें कि इस तरह के मांझे के अवैध इस्तेमाल बन्द हो तो इसकी डिमांड भी बंद करनी होगी और सरकारों को भी इसपर सख्त एक्शन लेना होगा ताकि ऐसे जानलेवा हादसों से बचा जा सके.