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निर्भया केस के बाद कानूनों में हुए बदलाव के अपेक्षित नतीजे नहीं मिले : कानूनी विशेषज्ञ

वरिष्ठ वकील ऐश्वर्या भाटी और रेबेका जॉन ने संशोधनों का स्वागत करते हुए कहा कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए अन्य प्रभावी कदमों की आवश्यकता है

Updated on: 20 Mar 2020, 01:02 PM

दिल्ली:

निर्भया मामले के चारों दोषियों को फांसी दिए जाने के बाद कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि 2012 में इस अपराध के बाद आपराधिक कानून में जो बदलाव किए गए उन्होंने अपेक्षित नतीजे नहीं दिए क्योंकि असल समस्या इसके क्रियान्वयन को लेकर है। उन्होंने कहा कि जब तक कानूनों को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जाएगा तब तक जमीनी स्तर पर कोई प्रगति नहीं होगी. आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013, में तेजाब हमले, पीछा करने और ताक झांक करने जैसे अपराधों के अलावा बलात्कार के दोषियों के लिए उम्रकैद की कठोर सजा और मौत की सजा तक का प्रावधान है.

वरिष्ठ वकील ऐश्वर्या भाटी और रेबेका जॉन ने संशोधनों का स्वागत करते हुए कहा कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए अन्य प्रभावी कदमों की आवश्यकता है. वरिष्ठ वकील विकास पहवा ने कहा कि बलात्कार रोधी कानून 2013 के संशोधन से पहले भी अपर्याप्त नहीं थे और सख्त थे और भारतीय दंड संहिता में यौन अपराध के हर पहलू को शामिल किया गया था.

इस कानून में बदलाव न्यायाधीश जे एस वर्मा समिति की सिफारिशों के बाद किए गए जिसमें बलात्कार और बलात्कार के कारण हुई मौत के लिए जेल की सजा बढ़ाकर 20 साल करने और सामूहिक दुष्कर्म में उम्रकैद की सजा देने लेकिन ऐसे मामलों में मौत की सजा देने से बचने का सुझाव दिया गया. भाटी ने संशोधनों का स्वागत किया लेकिन कहा कि समस्या इसके क्रियान्वयन में है. उन्होंने कहा कि पुलिस बल को सशक्त नहीं किया गया और उन्हें नागरिकों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए प्रेरित नहीं किया गया. भाटी ने कहा, ‘आपको पुलिस को सशक्त बनाने की जरूरत है। पहले उन्हें सशक्त बनाए और फिर उन्हें जवाबदेह ठहराए. पुलिस अधिकारी अन्य ड्यूटी में लगे हैं, वे वीआईपी गतिविधियों में तैनात हैं.’

उन्होंने कहा कि न्याय देने की प्रणाली भी सुस्त है और इसमें बदलाव की जरूरत है. वरिष्ठ वकील जॉन ने सुझाव दिया कि बलात्कार के आरोपियों पर एक समय सीमा के भीतर मुकदमा चलना चाहिए और कानून सभी के लिए बराबर होना चाहिए चाहे वे राजनीतिक दलों से ताल्लुक रखने वाले लोग क्यों न हो. जॉन ने कहा, ‘पीड़िता को शर्मिंदा करने की चीजें अब भी हो रही है और उसके चरित्र पर हमला किया जाता है.’ पहवा ने कहा कि इस कानून में शुरुआत से ही सभी मुद्दों से निपटा गया है लेकिन जांच ठीक तरीके से नहीं होती. 2013 के संशोधन के बाद बलात्कार के कानून का दुरुपयोग नहीं किया जा रहा है. दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को 23 वर्षीय युवती के सामूहिक बलात्कार के बाद पैदा हुए आक्रोश के मद्देनजर जस्टिस वर्मा समिति का गठन किया गया.

2013 के इस संशोधन में भारतीय दंड संहिता, आपराधिक दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और बाल यौन अपराध संरक्षण कानून की विभिन्न धाराओं में बदलाव किए गए। भाषा गोला शाहिद शाहिद