CAA Protest: नुकसान की भरपाई के नोटिस रद्द करने संबंधी याचिका पर उप्र सरकार को नोटिस

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से शुक्रवार को उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें राज्य में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिसों को रद्द क

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से शुक्रवार को उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें राज्य में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिसों को रद्द क

author-image
Kuldeep Singh
New Update
CAA Protest: नुकसान की भरपाई के नोटिस रद्द करने संबंधी याचिका पर उप्र सरकार को नोटिस

CAA Protest: नुकसान की भरपाई के नोटिस पर SC का UP सरकार को नोटिस( Photo Credit : प्रतीकात्मक फोटो)

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से शुक्रवार को उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें राज्य में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिसों को रद्द करने का अनुरोध किया गया है. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते के भीतर अपना जवाब दायर करने का निर्देश दिया है.

Advertisment

यह भी पढ़ेंः रिटायरमेंट पर यूपी के DGP ओपी सिंह बोले- आज अच्छा और बुरा दोनों लग रहा है

शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश में यह नोटिस एक व्यक्ति के खिलाफ “मनमाने तरीके” से भेजा गया जिसकी 94 की उम्र में छह साल पहले मौत हो चुकी है और साथ ही दो अन्य को भी नोटिस भेजे गए जिनकी उम्र 90 साल से अधिक है. मामले में याचिकाकर्ता एवं वकील परवेज आरिफ टीटू ने यह दावा करते हुए इन नोटिस पर रोक लगाने का अनुरोध किया है कि ये उन व्यक्तियों को भेजे गए हैं जिनके खिलाफ किसी दंडात्मक प्रावधान के तहत मामला दर्ज नहीं हुआ और न ही उनके खिलाफ किसी प्राथमिकी या अपराध का ब्योरा उपलब्ध कराया गया है.

यह भी पढ़ेंः बीजेपी विधायक संगीत सोम बोले- शरजील इमाम जैसे लोगों को चौराहे पर गोली मार देनी चाहिए

वकील निलोफर खान के जरिए दायर याचिका में कहा गया कि ये नोटिस 2010 में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर आधारित हैं जो 2009 में शीर्ष अदालत द्वारा पारित फैसले के “दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है’’. इन निर्देशों की 2018 के फैसले में पुन: पुष्टि की गई थी. इसमें कहा गया, “विरोधाभास यह है कि उच्चतम न्यायालय ने 2009 में नुकसान के आकलन और आरोपियों से नुकसान की भरपाई का दायित्व प्रत्येक राज्य के उच्च न्यायालय को सौंपा था जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 के फैसले में दिशा-निर्देश जारी किए थे कि राज्य सरकार को नुकसान की भरपाई करने संबंधी प्रक्रिया का जिम्मा लेने दें, जिसके गंभीर निहितार्थ हैं. इसमें कहा गया है, “न्यायिक निगरानी/ न्यायिक सुरक्षा मनमानी कार्रवाई के खिलाफ सुरक्षा तंत्र के समान है.

यह भी पढ़ेंः फर्रुखाबाद : सिरफिरे सुभाष बाथम की पत्‍नी को लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला 

इसका मतलब है कि बहुत संभव है कि राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी अपनी दुश्मनी निकालने के लिए राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों या पार्टी का विरोध करने वालों के खिलाफ इसका इस्तेमाल कर सकती है.” साथ ही इस याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार के लिए ऐसे प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई वसूलने के लिए शीर्ष अदालत के 2009 और 2018 के दिशा-निर्देशों का पालन करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है. इसमें उत्तर प्रदेश में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान हुई घटनाओं की स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की गई है जैसा कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने किया है. याचिका में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा नीत योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदर्शनकारियों की संपत्ति जब्त कर, “सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान का बदला लेने के मुख्यमंत्री के वादे पर आगे बढ़ रही है” ताकि “अल्पसंख्यक समुदाय से राजनीतिक कारणों के लिए बदला लिया जा सके’’.

यह भी पढ़ेंः बांद्रा कोर्ट ने डा. कफील खान को ट्रांजिट रिमांड पर यूपी पुलिस की स्‍पेशल टास्‍क फोर्स को सौंपा 

इसमें आरोप लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश में हिंसक प्रदर्शनों के संबंध में अब तक गिरफ्तार करीब 925 लोगों को तब तक आसानी से जमानत नहीं मिलेगी जब तक कि वे नुकसान की भरपाई नहीं करते क्योंकि उन्हें रकम जमा कराने के बाद ही “सशर्त जमानत” दी जाएगी. याचिका में आरोप लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार और उसका प्रशासन लोकतांत्रिक सरकार के तौर पर काम नहीं कर रहा क्योंकि इसने सीएए/ एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शनों पर कार्रवाई की. पुलिस ने उत्तर प्रदेश प्रशासन के निर्देशों पर अत्यधिक बल का प्रयोग किया और सार्वजनिक जवाबदेही से इनकार किया’’. सीएए विरोधी प्रदर्शनों का ब्योरा देते हुए याचिका में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश में “कानून का कोई शासन” नहीं रह गया है और संविधान के तहत सुनिश्चित मौलिक अधिकारों का “पूरी तरह उल्लंघन” हो रहा है.  

Source : Bhasha

Supreme Court caa CAA Protest
      
Advertisment