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एम्स के डॉक्टरों की शव में कोरोना वायरस के जिंदा रहने की अवधि का अध्ययन करने की योजना

सुधीर गुप्ता ने कहा कि इस अध्ययन से यह पता लगाने में भी मदद मिलेगी कि विषाणु कैसे मानव अंगों पर असर डालता है. उन्होंने कहा कि इसके लिए मृतक के कानूनी वारिस से सहमति ली जाएगी.

Updated on: 22 May 2020, 12:20 PM

दिल्ली:

एम्स के डॉक्टर यह अध्ययन करने के लिए कोविड-19 से मरने वाले व्यक्ति का पोस्टमार्टम करने पर विचार कर रहे हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण कितने समय तक किसी शव में रह सकता है और क्या इससे संक्रमण का फैलाव हो सकता है. दिल्ली के अस्पताल के फॉरेंसिक प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता ने कहा कि इस अध्ययन से यह पता लगाने में भी मदद मिलेगी कि विषाणु कैसे मानव अंगों पर असर डालता है. उन्होंने कहा कि इसके लिए मृतक के कानूनी वारिस से सहमति ली जाएगी.

इस अध्ययन में रोग विज्ञान और अणुजीव विज्ञान जैसे कई और विभाग भी शामिल होंगे। डॉ. गुप्ता ने कहा, ‘‘यह अपने आप में पहला अध्ययन होने जा रहा है और इसलिए सावधानीपूर्वक इसकी योजना बनानी होगी. इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि वायरस शरीर पर क्या असर डालता है. साथ ही इससे यह भी पता चलने में मदद मिलेगी कि कोरोना वायरस किसी मृत शरीर में कितने समय तक रह सकता है.’’ अभी तक मौजूद वैज्ञानिक साहित्य के अनुसार किसी शव में वायरस धीरे-धीरे खत्म होता है लेकिन अभी शव को संक्रमण मुक्त घोषित करने के लिए कोई निश्चित समय सीमा नहीं है.

शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान संस्था आईसीएमआर ने मंगलवार को कहा था कि कोरोना वायरस से मरने वाले लोगों का बिना चीर-फाड़ किए पोस्टमार्टम करने की तकनीक अपनाने की सलाह दी जाती है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कहा था कि कोविड-19 से मरने वाले लोगों में फॉरेंसिक पोस्टमार्टम के लिए चीर-फाड़ करने वाली तकनीक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे मुर्दाघर के कर्मचारियों के अत्यधिक एहतियात बरतने के बावजूद शव में मौजूद द्रव और किसी तरह के स्राव के संपर्क में आने से इस जानलेवा रोग की चपेट में आने का खतरा हो सकता है.