दिल्ली में गेस्ट टीचर की स्थिति दूसरे राज्यों के मुकाबले बहुत बेहतर है- भानू प्रिया
पंजाब से नवजोत सिंह सिद्धू जैसे लोग दिल्ली में राजनीति करने आ रहे हैं. उनके यहां पर गेस्ट टीचर आत्महत्या करने के कगार पर हैं. पूजा झा ने कहा कि नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा शिक्षकों को अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करना गलत है.
नई दिल्ली:
दिल्ली अतिथि शिक्षक संघ की पदाधिकारी भानू प्रिया ने कहा कि दिल्ली में गेस्ट टीचर की स्थिति दूसरे राज्यों के मुकाबले बहुत बेहतर है. केजरीवाल सरकार ने गेस्ट टीचर की सैलरी को दोगुना कर 35 हजार तक किया. पहले अधिकतम सैलरी 14 से 16 हजार तक मिलती थी. केजरीवाल सरकार ने गेस्ट टीचर्स को परमानेंट करने के लिए 4 अक्टूबर 2017 को बिल विधानसभा में पास किया, फाइल उप राज्यपाल के पास पेंडिंग है. दिल्ली में जो पार्टियां आज प्रदर्शन कर रही हैं, जब उनकी सरकार थी तो उन्होंने गेस्ट टीचर के लिए कुछ नहीं किया. कम तनख्वाह देती थीं, गेस्ट टीचर को मेटरनिटी लीव नहीं मिलती थी, हर साल फॉर्म भरना पड़ता था. वह अपने गिरेबान में झांक कर देखें. अंजना राठी ने कहा कि दिल्ली के गेस्ट टीचर की तनख्वाह दूसरे राज्यों के गेस्ट टीचर के मुकाबले काफी ज्यादा है.
दिल्ली में प्रदर्शन वह लोग कर रहे हैं जो नौकरी पर भी नहीं हैं और जिनको केवल राजनीति करनी है. पंजाब से नवजोत सिंह सिद्धू जैसे लोग दिल्ली में राजनीति करने आ रहे हैं. उनके यहां पर गेस्ट टीचर आत्महत्या करने के कगार पर हैं. पूजा झा ने कहा कि नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा शिक्षकों को अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करना गलत है. वह जिस राज्य से हैं वहां खुद गेस्ट अध्यापकों की स्थिति अच्छी नहीं है.
दिल्ली अतिथि शिक्षक संघ की ओर से आज दिल्ली सचिवालय प्रेस वार्ता को संबोधित किया गया. दिल्ली अतिथि शिक्षक संघ के प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व कर रही भानू प्रिया ने कहा कि हम लोग बहुत खुश हैं कि हम ऐसे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं जहां पर शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया हैं. दिल्ली के सरकारी स्कूलों में इतना सुधार हो सका है. यहां अतिथि शिक्षकों की वैल्यू है दूसरे राज्यों के मुकाबले बहुत बेहतर स्थिति में हैं. हमारे लिए सरकार ने बहुत कुछ किया है. हमारे स्कूलों में हैप्पीनेस ईएमसी और देशभक्ति पाठ्यक्रम सहित तमाम गतिविधियां चल रही हैं.
उन्होंने कहा कि एक समय था जब हम लोगों को स्कूलों में रहने के लिए और नौकरी को बचाने के लिए, हर साल एक फॉर्म भरना होता था. 2010 से लेकर 2015 तक यही स्थिति थी. हम लोग हर साल फॉर्म भरते थे और मेरिट बनती थी. इस साल हमने पढ़ाया तो दूसरे साल हमारा नाम मेरिट में होगा या नहीं यह पता नहीं होता. यह प्रक्रिया इसी तरह चलती रहती थी. हमारे सर पर तलवार लटकी रहती थी कि ना जाने कब नौकरी चली जाए और अगले साल मिलेगी कि नहीं मिलेगी. किसी तरह से महिला गेस्ट टीचर फिर भी एडजस्ट कर लेती हैं. लेकिन पुरुष टीचर्स के लिए और भी ज्यादा दिक्कत भरा था. कांग्रेस के बाद में आम आदमी पार्टी की सरकार आई और फिर कहीं जाकर हम लोगों की जिंदगी में सुधार होना शुरू हुआ.
आम आदमी पार्टी की सरकार से 2016 से हम मिल रहे थे. हमने कहा किसी तरह से इस समस्या को सुलझाया जाए. आखिरकार इसका एक अच्छा परिणाम निकला और हमारा रिन्यू शुरू हुआ. इसके बाद हम लगातार जाते रहे और मिलते रहे, बातचीत करते रहे. यह इसी का परिणाम था कि सिर्फ बातचीत करने भर से हमारा काम हो गया. इसके लिए हमें किसी तरह हंगामा, धरना देने की जरूरत ही नहीं पड़ी.
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