दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) में प्रदूषण लेवर काफी बढ़ गया है, जिससे लोगों की आंखों में जलन और सांस लेने में दिक्कत हो रही है. बढ़ते प्रदूषण को लेकर राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रही हैं, लेकिन इसके उपाय की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. इस प्रदूषण के कारण देश की राष्ट्रीय राजधानी में अब लोग नहीं रहना चाहते हैं. एक सर्वे के मुताबिक, दिल्ली और एनसीआर के 40 फीसदी लोग शहर को छोड़ना चाहते हैं.
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यह सर्वे दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद और फरीदाबाद में हुआ. इसमें 17,000 लोगों की राय ली गई. दिल्ली-एनसीआर के लोगों से पूछा गया कि केंद्र और राज्य सरकारों ने प्रदूषण के खिलाफ पिछले 3 वर्षों में जिस तरह से योजनाएं चलाईं, क्या वो काफी हैं. हैरानी की बात रही कि 40 फीसदी लोगों ने कहा कि वे दिल्ली-एनसीआर को छोड़कर कहीं और जाना चाहेंगे.
31 फीसदी लोगों ने कहा कि वे एयर प्यूरीफायर, मास्क, पौधों के साथ दिल्ली-एनसीआर में रहेंगे. जबकि 16 फीसदी ने कहा कि वे दिल्ली-एनसीआर में रहेंगे. जहरीले प्रदूषण के इस दौर में वे यात्रा भी करेंगे. वहीं, 13 फीसदी ने कहा कि वे यहां रहेंगे और बढ़ते प्रदूषण के स्तर से निपटने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
पिछले साल हुए सर्वे के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर के 35 फीसदी लोगों ने कहा था कि वे क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण के दुष्प्रभाव से खुद को और अपने परिवार के सदस्यों को बचाने के लिए अपने शहर को छोड़ना चाहेंगे. पिछले वर्ष की तुलना से पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर के निवासियों का प्रदूषण के कारण शहर छोड़ने का प्रतिशत 1 वर्ष में 35 फीसदी से बढ़कर 40 फीसदी हो गया.
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लोग टैक्स का भुगतान करते हैं और कम-से-कम यह उम्मीद करते हैं कि सरकार साफ हवा, पीने का साफ पानी और गड्ढे मुक्त सड़कें प्रदान करेगी. लोगों ने बताया कि कैसे उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने फेफड़ों, गले के कैंसर सहित गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों का अनुभव करना शुरू कर दिया है.