राजधानी दिल्ली महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि बच्चों के लिए भी असुरक्षित शहर बन गया है. बुधवार को राज्यसभा में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 से 2018 के बीच करीब 27 हजार से अधिक बच्चे लापता हो गए थे. जिनमें से दिल्ली पुलिस द्वारा केवल 70 प्रतिशत बच्चों का पता लगा पाई थी. गृह राज्य मंत्री गंगाराम अहीर ने लिखित जवाब देते हुए कहा कि साल 2015- 2018 के दौरान पुलिस ने 27,356 गायब हुए बच्चों में से वो करीब 19,596 बच्चो की खोज कर पाई थी.
गृह मंत्री ने एक सवाल का जवाब देते हुए बताया, 'दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार माननीय हाईकोर्ट के दिए गए निर्देशानुसार सभी जिलों में मानव तस्करी रोधी (Human trafficking) ईकाई बनाई गई है. जिसमें दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम को 3 से 8 साल तक के लापता बच्चे और अपहरण में शामिल गिरोहों की पहचान की जिम्मेदारी दी गई है. '
उन्होंने पुलिस रिकॅार्ड को साझा करते हुए बताया कि साल 2018 में 30 नवंबर तक लापता बच्चों की संख्या 6,533 थी. साथ ही पिछले तीन सालों के दौरान लापता बच्चों के संख्या 7,928 (2015), 6,921 (2016 ) और साल 2017 में 6,454 थी.
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आंकड़ो के मुताबिक 2018 में नवंबर के आखिर तक 5,520 मामले दर्ज किए गए थे जिसमें से 532 मामले पर कार्रवाई करते हुए 588 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. वहीं 2015 में 7126 मामले दर्ज किए गए थे जिसमें 749 मामले में 1,515 लोगों को गिरफ्त में लिया गया था.
बता दें कि मानव तस्कर गिरोह देश भर में सक्रिय है. ऐसे वो बच्चों का अपहरण कर देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी और भीख मांगने जैसे कामों में धकेल देती है. गायब हुए कई बच्चे यौन शोषणय हिंसा जैसे अपराध के भी शिकार होते है.
Source : News Nation Bureau