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प्रतीकात्मक तस्वीर
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प्रतीकात्मक तस्वीर
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से नक्सली कोई बड़ा शिकार करने को बेचैन हैं क्योंकि वे अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह बात यहां अधिकारियों ने कही. उन्होंने बताया कि प्रदेश में नक्सालियों का प्रभाव क्षेत्र सीमित हो गया है और वे जंगल के कुछ हिस्सों में छिपे हुए हैं. अगले डेढ़ महीने के भीतर पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न होंगे. आरंभिक चरण में 12 नवंबर को छत्तीसगढ़ में मतदान होगा, जिसमें जिसमें भारत में नक्सलियों का केंद्र बस्तर इलाका भी शामिल है.
करीब 40,000 वर्ग किलोमीटर में फैले बस्तर इलाके में लौह-अयस्क का प्रचुर भंडार है. जनजाति बहुल इस इलाके में 12 विधानसभा क्षेत्र हैं. 1980 के दशक के आखिर से यह बड़े नक्सलियों का पनाहगाह रहा है. केंद्र सरकार ने बस्तर में नक्सलियों का उन्मूलन करने के लिए राज्य के 25,000 पुलिसकर्मियों के अलावा अर्धसैनिक बल के करीब 55,000 जवानों को तैनात कर रखा है.
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प्रदेश खुफिया विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, "बस्तर में नक्सली अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनके प्रभाव का क्षेत्र काफी सिमटकर रह गया है लेकिन चुनाव की गहमागहमी के दौरान वे कुछ बड़ा नुकसान पहुंचाने की फिराक में हैं. वे या तो राजनेता, नौकरशाह, सुरक्षाकर्मी, मतदानकर्मियों या मीडिया के लोगों को बड़ा शिकार बनाना चाहते हैं, क्योंकि चुनाव को लेकर इलाके में इनकी आवाजाही शुरू हो गई है."
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अन्य लोग भी इस बात से सहमत हैं नक्सलियों को यहां कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. बस्तर स्थित काउंटर टेररिज्म एंड जंगल वारफेयर कॉलेज (सीटीजेडब्ल्यूसी) के निदेशक ब्रिगेडियर बी. के. पोनवर (अवकाश प्राप्त) ने कहा, "उनकी भर्ती पूरी तरह खत्म हो चुकी है. हथियारों की आपूर्ति बंद हो चुकी है. सबसे अहम बात यह कि बुजुर्ग हो चुके नक्सली नेता लोग गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं. इस प्रकार वे हिंसक आंदोलन को अंजाम देने लायक नहीं रह गए हैं."
उन्होंने कहा, "बस्तर के लोगों ने नक्सलियों का साथ देना छोड़ दिया है. गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मी उनको अब कड़ी शिकस्त दे रहे हैं. सरकार ने भीतरी इलाके में विकास कार्य शुरू कर दिया है. इसलिए नक्सली अब आसानी से किसी को निशाना बनाने की कोशिश में है, क्योंकि वे अपनी सक्रियता का संदेश देना चाहते हैं."
बस्तर इलाके के सात जिलों के 12 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव मैदान में उतरे राजनीतिक दलों के नेता नक्सल के प्रभाव क्षेत्र वाले इलाके से अगल ही रहते हैं. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी सुरक्षा एजेंसियों ने भीतरी इलाकों से दूर रहने की सलाह दी है. खुफिया रिपोर्ट के बाद केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने भी दंतेवाड़ा जिले में 29 अक्टूबर को अपना चुनावी अभियान छोड़ दिया था. नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में मंगलवार को दंतेवाड़ा में दृूरदर्शन के कैमरामैन अच्युतानंद साहू और दो पुलिसकर्मी मारे गए.
Source : IANS