छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने मारा 'आरक्षण' का सियासी स्ट्रोक, मगर कानूनी पेंच का खतरा

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने आरक्षण के जरिए सियासी मास्टर स्ट्रोक मार दिया है, इससे राज्य के सियासी गणित को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने और पुख्ता करने की कोशिश की है.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने आरक्षण के जरिए सियासी मास्टर स्ट्रोक मार दिया है, इससे राज्य के सियासी गणित को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने और पुख्ता करने की कोशिश की है.

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Dalchand Kumar
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छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने मारा 'आरक्षण' का सियासी स्ट्रोक, मगर कानूनी पेंच का खतरा

भूपेश बघेल (फाइल फोटो)

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने आरक्षण के जरिए सियासी मास्टर स्ट्रोक मार दिया है, इससे राज्य के सियासी गणित को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने और पुख्ता करने की कोशिश की है. आरक्षण का आंकड़ा 82 फीसदी तक पहुंच गया है, इसके लिए अध्यादेश भी जारी कर दिया गया है, मगर कानूनी पेंच फंसने की आशंकाओं को नकारा नहीं जा रहा है. भूपेश बघेल ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रदेश में आरक्षण का दायरा बढ़ाने का ऐलान किया था. घोषणा के 20 दिन बाद राज्य सरकार ने विधिवत आरक्षण बढ़ाए जाने का अध्यादेश भी जारी कर दिया गया है. इस अध्यादेश के जरिए आरक्षण का प्रतिशत बढ़कर 82 फीसदी हो गया है.

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आरक्षण के नए प्रावधानों का छत्तीसगढ़ लोक सेवा संशोधन अध्यादेश 2019 का राजपत्र में प्रकाशन कर दिया गया है. इस नई व्यवस्था के जरिए अब राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) का आरक्षण 12 से बढ़कर 13 और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का आरक्षण 14 से बढ़कर 27 प्रतिशत हो गया है. अनुसूचित जनजाति वर्ग (एसटी) के आरक्षण में कोई बदलाव नहीं किया गया है और वह पूर्व की तरह 32 प्रतिशत ही रहेगा. इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण भी राज्य में प्रभावी हो गया है. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण का लाभ एसटी, एससी और ओबीसी को नहीं मिलेगा. इस तरह राज्य में अब आरक्षण का प्रतिशत 82 प्रतिशत हो गया है.

राज्य में जनसंख्या के अनुपात को देखा जाए तो एसटी 32 प्रतिशत, एससी 12 प्रतिशत और ओबीसी की आबादी 45 प्रतिशत है. आबादी के हिसाब से इन तीनों वर्गो की हिस्सेदारी 89 प्रतिशत है. इसी आबादी के गणित को देखकर यह आरक्षण व्यवस्था लागू की गई है. राजनीतिक विश्लेषक रुद्र अवस्थी का कहना है, 'आरक्षण का विरोध कोई नहीं करेगा, मगर इसे संविधान के प्रावधानों को ध्यान में रखकर लागू किया जाना चाहिए. जहां तक राज्य में नई आरक्षण व्यवस्था को लागू किए जाने का सवाल है, इससे भूपेश बघेल और कांग्रेस को निसंदेह लाभ होगा. यह फैसला राजनीतिक तौर पर कांग्रेस को दूरगामी लाभ देने वाला साबित हो सकता है.'

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ज्ञात हो कि राज्य मंत्रिमंडल ने 27 अगस्त को आरक्षण नियम में संशोधन का फैसला लिया था. अब राजपत्र में प्रकाशन के साथ राज्य स्तर पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर भर्ती में संशोधित अध्यादेश लागू होगा. इस नई व्यवस्था में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ देने का प्रावधान किया गया है. इस श्रेणी का लाभ एसटी, एससी और ओबीसी के आरक्षण में शामिल वर्ग को नहीं होगा. राज्य सरकार की ओर से जारी राजपत्र में स्पष्ट किया गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर आरक्षण का लाभ ऐसे व्यक्तियों को मिलेगा, जिस परिवार की सकल वार्षिक आय आठ लाख रुपये से कम है. जब लोक सेवा के लिए आवेदन किया जाएगा, उसके पिछले वित्तीय वर्ष के सभी आय स्त्रोत को शामिल किया जाएगा.

कानून विशेषज्ञ राकेश झा का कहना है, 'सरकार के इस फैसले को न्यायालय में आसानी से चुनौती दी जा सकेगी, संविधान 50 प्रतिशत से ज्यादा का आरक्षण दिए जाने की अनुमति नहीं देता है. जिन राज्यों ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया, वहां 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण की सीमा पर न्यायालय ने रोक लगा दी. छत्तीसगढ़ सरकार ने आरक्षण बढ़ाने का प्रावधान लाने के लिए जनसंख्या को आधार बनाया है, जिसे चुनौती देना आसान होगा.'

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संविधान के जानकारों के अनुसार, देश में तामिलनाडु और महाराष्ट्र ही दो ऐसे राज्य हैं जहां आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा है और न्यायालय ने इसमें कोई बदलाव नहीं किया है. तामिलनाडु में 69 प्रतिशत और महाराष्ट्र में आरक्षण का प्रतिशत 64 है. यह इसलिए अमल में आ गया क्योंकि तामिलनाडु में आरक्षण को लेकर पारित विधेयक को संसद ने संविधान के शेड्यूल नौ में लाकर दिया गया. संविधान में प्रावधान है कि जो भी विधेयक शेड्यूल नौ में जाता है उसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, वहीं महाराष्ट्र में मराठा वर्ग को आरक्षण देने से पहले सरकार ने 43 हजार से ज्यादा मराठा परिवारों का सर्वे कराया था.

जानकारों का कहना है कि राज्य में जनसंख्या को आधार बनाकर आरक्षण दिया गया है, जिसके चलते न्यायालय में इसे चुनौती दी जा सकती है. इस प्रावधान से राजनीतिक तौर पर हर स्थिति में कांग्रेस और भूपेश बघेल का लाभ होने की संभावना बनी हुई है, क्योंकि न्यायालय अगर इस पर स्थगन भी दे देता है तो कांग्रेस को जनता तक यह संदेश भेजने में दिक्कत नहीं होगी कि उसने तो आरक्षण दिया मगर लोगों ने न्यायालय में जाकर इस पर रोक लगवा दी और रोक नहीं लगी तो फायदा है ही.

यह वीडियो देखेंः 

chhattisgarh bhupesh-baghel Reservation in Chhattisgarh Congess Government
      
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