नक्सलियों की मांद से नहीं , लीची से बनेगी अबूझमाड़ की पहचान

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल के बाद अबूझमाड़ अपनी नई पहचान बनाने जा रहा है। जहां कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था। अब उसकी पहचान कुछ और होगा। मुख्यमंत्री के निर्देश पर अबूझमाड़ क्षेत्र में सर्वे और मसाहती खसरा वितरण का कार्य जोर पर है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल के बाद अबूझमाड़ अपनी नई पहचान बनाने जा रहा है। जहां कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था। अब उसकी पहचान कुछ और होगा। मुख्यमंत्री के निर्देश पर अबूझमाड़ क्षेत्र में सर्वे और मसाहती खसरा वितरण का कार्य जोर पर है।

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Sunder Singh
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file photo( Photo Credit : News Nation)

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल के बाद अबूझमाड़ अपनी नई पहचान बनाने जा रहा है। जहां कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था। अब उसकी पहचान कुछ और होगा। मुख्यमंत्री के निर्देश पर अबूझमाड़ क्षेत्र में सर्वे और मसाहती खसरा वितरण का कार्य जोर पर है। और अब इसके परिणाम दिखना शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर इस क्षेत्र में 200 एकड़ में लीची के पौधों का रोपण किया जाएगा।साथ ही जिन किसानों को मसाहती खसरा मिल गया है उन सभी को 20 से 30 पौधे दिए जाएंगे। उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों के खेतों में पौधों का रोपण किया जायेगा और उन्हें ट्रेनिंग भी देंगे।

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बिहार को टक्कर देगी अबूझमाड़ की लीची

लीची का नाम सुनकर अमूमन बिहार के मुजफ्फरपुर इलाके का नाम याद आता है। लेकिन अब इस कहानी में जरा टि्वस्ट आने वाला है। छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र की मीठी लीची भी मुजफ्फरपुर की लीची को टक्कर देने मैदान में आ रही है। अब सब कुछ सही चला, तो लीची इस इलाके को नई पहचान दे सकती है. लीची के पौधे को लंबी सर्दी और पर्याप्त बारिश की जरूरत होती है और अबूझमाड़ का क्षेत्र इस हिसाब से अनुकूल है । साल 1995 में ओरछा के शासकीय उद्यान में 100 पौधों का रोपण किया गया था जो अब पर्याप्त फल दे रहे हैं। इस छोटी सी सफलता ने उम्मीद को रोशनी दिखाई है।

अबूझमाड़ की जलवायु, मिट्टी और मौसम लीची के बागानों के लिए उपयुक्त है, इसलिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर के अपने भेंट मुलाकात कार्यक्रम के दौरान नारायणपुर के ओरछा में 200 एकड़ क्षेत्र में लीची के पौधे लगाने के निर्देश दिए थे. जिस पर अमल शुरू हो गया है ।अबूझमाड़ का क्षेत्र घनघोर जंगल है, इस वजह से यहां बारिश पर्याप्त होती है। इस क्षेत्र में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक वर्षा होती है। अबूझमाड़ की समुद्र तल से 16 सौ मीटर ऊंचाई होने के कारण आर्द्रता और शीतल जलवायु लीची के लिए उपयुक्त जलवायु है । 

मिठास और रोजगार देगी लीची

लीची का सीजन मुश्किल से एक महीने का होता है। 10 मई के आसपास फल लगना शुरू होते हैं, और 10 जून से पहले ही इसका सीजन खत्म हो जाता है। लेकिन एक माह से भी कम समय में प्रति हेक्टेयर 2 सौ पौधों के हिसाब से 4 से 5 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है ।
 सीजन छोटा होने की वजह से लीची की बाजार में इतनी डिमांड है कि मार्केटिंग की जरूरत ही नहीं पड़ती है। व्यापारी बागानों से एडवांस में बुकिंग कर लेते हैं। ओरछा शासकीय उद्यान में लगे लीची के सौ पौधों के फल आने से पहले ही व्यापारी आकर बुकिंग कर लेते हैं।

सर्वे के बाद किसानों को लीची लगाने की ट्रेनिंग

अबूझमाड़ क्षेत्र में सर्वे और मसाहती खसरा वितरण का कार्य जोर शोर से चल रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर इस क्षेत्र में 200 एकड़ में लीची के पौधों का रोपण किया जाएगा साथ ही जिन किसानों को मसाहती खसरा मिल गया है उन सभी को 20 से 30 पौधे दिए जाएंगे । उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों के खेतों में पौधों का रोपण किया जायेगा और उन्हें ट्रेनिंग भी देंगे।

Source : MOHIT RAJ DUBEY

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