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बस याद था गांव का नाम, 22 साल बाद माता-पिता से मिला लापता युवक, चमत्कार से कम नहीं उसके खोने-मिलने ये कहानी

UP News: उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर का रहने वाला बबलू आखिरकार 22 साल के बाद अपने माता-पिता से मिल पाता है. बबलू के खोने और मिलने की कहानी को जानकर आप यही कहेंगे कि ये चमत्कार से कम नहीं है.

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Ajay Bhartia
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बस याद था गांव का नाम, 22 साल बाद माता-पिता से मिला लापता युवक, चमत्कार से कम नहीं उसके खोने-मिलने ये कहानी

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UP News: उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर का रहने वाला बबलू 22 साल के बाद आखिरकार अपने माता-पिता से मिल पाता है. वह चार वर्ष की उम्र में दिल्ली यात्रा के दौरान अपने पेरेंट्स से बिछड़ गया था. खो जाने के बाद उसे सिर्फ अपने गांव का नाम ही याद था. बबलू के मां-बाप तो उसके मिलने की आस ही छोड़ चुके थे. इतने वर्षों के बाद बबलू कैसे अपने माता-पिता से मिला. इतने सालों तक वह कैसे और कहां रहा. बबलू के खोने और मिलने की पूरी कहानी को जानकर आप यही कहेंगे कि ये चमत्कार से कम नहीं है. 

कैसे खो गया था बबलू

बबलू जब चार वर्ष का था, तब वह अपने माता-पिता के साथ ट्रेन से दिल्ली आया था. इस दौरान दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ऐसा कुछ हुआ कि जिसकी कल्पना बबलू के पेरेंट्स ने सपने में भी नहीं थी. उनके साथ से बबलू कहीं बिछड़ गया. इसके बाद उन्होंने बबलू को खोजने की बहुत कोशिश की, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं. इसके बाद उस दर्द की शुरुआत हुई, जिसकी पीड़ा से 22 वर्षों तक बबलू के माता-पिता की आंखों से आंसू बनकर छलकती रही. जब भी उनको बबलू की याद वो बेबस होकर रोते रहते थे.

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बबलू को कहां-कहां नहीं ढूंढा

बबलू के लापता होने के कई सालों तक उसे परिजनों ने उसके मिलने की आस नहीं छोड़ी. उन्होंने उसकी तलाश में दिल्ली का कोना-कोना छान मारा. उन्होंने देश के अन्य इलाकों में भी बबलू को खोजना जारी रखा. वो उसकी तलाश में कई सालों तक इधर-उधर भटकते रहे. ऐसा कोई दरवाजा नहीं बचा था, जहां उन्होंने बबलू को ढूंढा नहीं हो. पुलिस, मंदिर, मस्जिस, साधु-संत और फकीर सबके पास गए, लेकिन जब बबलू का कहीं कुछ पता नहीं चलता है. तब थक हार कर उन्होंने बबलू की तलाश को किस्मत के भरोसे छोड़ दिया.

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22 वर्षों तक कहां रहा बबलू

जब बबलू अपने माता-पिता बिछड़ा, तब दिल्ली पुलिस को वो रोते हुए मिला था. इसके बाद दिल्ली पुलिस की मदद से उसे बाल सुधार गृह में भेज दिया गया था. यहीं बबलू 22 साल तक रहा. 18 साल की उम्र होते ही बबलू को बाल सुधार गृह में नौकरी भी मिल गई.

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घर कैसे पहुंचा बबलू

आगरा जीआरपी पुलिस ‘ऑपरेशन मुस्कान’ के तहत दिल्ली बाल सुधार गृह पहुंची थी. इस दौरान बबलू ने पुलिस को अपनी कहानी बताई. उसने पुलिस को बताया कि उसे सिर्फ इतना याद है कि उसके गांव का नाम धनौरा है और उसके गांव के पास रेलवे स्टेशन है. उसी रेलवे स्टेशन से वह अपने माता-पिता के साथ दिल्ली पहुंचा था. इसके बाद आगरा जीआरपी पुलिस ने उसे अपके माता-पिता से मिलवाने का बीड़ा उठाया.  

पुलिस टीम ने गूगल मैप आदि की मदद से बबलू के गांव की खोज शुरू की. हालांकि, शुरू में टीम को कोई सफलता हाथ नहीं लगी. जांच में पता चला कि धनौरा गांव यूपी के बिजनौर में भी है, बागपत में भी है और बुलंदशहर में भी. इसी खोजबीन में पुलिस को बुलंदशहर के चोला रेलवे स्टेशन के पास स्थित धनौरा गांव का पता चला. जीआरपी धनौरा गांव पहुंची. पूछताछ के दौरान गांव के ही एक शख्स ने बताया कि सुखदेव शर्मा का बेटा कई वर्षों पहले खो गया था, जिस पर जीआरपी ने बबलू की पहचान के लिए उसकी फोटो गांव भेजी.

फोटो को देखते ही बबलू की मां अंगूरी ने उसे पहचान लिया. इसके बाद जीआरपी टीम ने वीडियो कॉल के जरिए सत्यदेव शर्मा से बबलू से बात कराई. ये सब होने के बाद जीआरपी ने बबलू के मां-बाप को आगरा बुला लिया. फिर वहां से उन्हें दिल्ली स्थित बाल सुधार गृह लेकर गई. बबलू को सामने देखते ही उनका खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक आए. 

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