अलविदा 2018: बिहार की राजनीति में दोस्त बने दुश्मन, दुश्मन हो गए दोस्त
आने वाला नया साल एक तरफ जहां आम लोगों के लिए अपने सपनों को पाने की नई उम्मीद लेकर आएगा वहीं राजनेताओं के लिए इस साल का शुरुआती महीना सबसे बड़ी परीक्षा लेकर आएगा जिसका नाम है
पटना:
साल 2018 के अंत के साथ ही लोग नए साल के स्वागत की तैयारियों में जुट गए हैं. आने वाला नया साल एक तरफ जहां आम लोगों के लिए अपने सपनों को पाने की नई उम्मीद लेकर आएगा वहीं राजनेताओं के लिए इस साल का शुरुआती महीना सबसे बड़ी परीक्षा लेकर आएगा जिसका नाम है लोकसभा चुनाव 2019. इस बीते साल 2018 को देखें तो बिहार की राजनीति में गुजरा यह साल राजनीतिक उठाक-पटक के लिए खासतौर पर याद किया जाएगा. साल के शुरुआत में जो सियासी समीकरण बनने बिगड़ने का खेल शुरू हुआ वो इस साल के अंत दिसंबर तक भी जारी रहा. एक तरफ जहां नए दोस्त बने तो वहीं पुराने दोस्त दुश्मन बन गए. इस राजनीतिक दोस्ती और दुश्मनी ने देश के भी सियासी समीकरणों को बदल कर रख दिया.
साल के शुरुआत में एनडीए के दोस्त से दुश्मन बने मांझी
इस साल की शुरुआत में ही बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को झटका देते हुए हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आरजेडी का साथ छोड़ दिया. वो आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन में शामिल हो गए हैं. मांझी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराजगी के बाद खुद अपनी पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा बना ली थी और राजग के साथ हो लिए थे.
वैसे, गौर से देखा जाए तो बिहार में यह एक साल राजग के लिए शुभ साबित नहीं हुआ. बिहार में ऐसे तो राजग की सरकार चलती रही, मगर उसके दोस्त उन्हें छोड़ते रहे.
साल के अंत में कुशवाहा ने छोड़ा एनडीए का साथ
साल के शुरुात में अगर मांझी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नीत महागठबंधन के साथ हो लिए तो साल के अंत में एनडीए के साथ लंबा सफर तय कर चुके केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने भी एनडीए से बाहर होने की घोषणा कर दी. कुशवाहा ने न केवल केंद्रीय मंत्री के पद इस्तीफा दे दिया, बल्कि राजग के विरोधी खेमे महागठबंधन में शामिल होने की घोषणा कर दी.
कुशवाहा पहले से ही लोकसभा सीट बंटवारे को लेकर तरजीह नहीं दिए जाने से नाराज चल रहे थे, परंतु उन्होंने राजग में सम्मान नहीं दिए जाने का आरोप लागते हुए राजग का साथ छोड़ दिया.
वैसे, नीतीश कुमार की जद (यू) को राजग में शामिल होने के बाद से ही कुशवाहा राजग में असहज महसूस कर रहे थे. ऐसे में भाजपा द्वारा जद (यू) के साथ सीट बंटवारे की चर्चा करना रालोसपा को रास नहीं आया और कुशवाहा ने राजग से अलग राह पकड़ ली.
मुकेश सहनी ने साल के अंत में थामा महागठबंधन का दामन
साल के अंत में भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह के करीबी माने जाने वाले और पिछले लोकसभा चुनाव में राजग का साथ देने वाले मुकेश सहनी ने भी महागठबंधन में जाने की घोषणा कर राजग को झटका दे दिया. 'सन ऑफ मल्लाह' के नाम से चर्चित मुकेश सहनी को प्रारंभ से ही भाजपा के साथ माना जा रहा था, मगर साल के अंत में इस सियासी घटना को बिहार की राजनीति में बड़ा उल्टफेर माना जा रहा है.
6 महीने से भी कम में लालू के लाल ने लगा दी पत्नी के खिलाफ तलाक की अर्जी
वैसे, इस साल बिहार की सुर्खियों में पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा राय की पोती ऐश्वर्या राय और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के पुत्र और राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव की शादी भी रही. इस शादी के बाद बिहार के दो राजनीतिक परिवारों के बीच पारिवारिक संबंध बन गए.
इसी बीच शादी के कुछ ही दिनों के बाद तेजप्रताप ने पटना की एक अदालत में तलाक की अर्जी देकर राजद विधायक चंद्रिका राय की पुत्री ऐश्वर्या पर कई आरोप लगा दिए. बहरहाल, अभी यह मामला अदालत में चल रहा है, मगर यह मामला देश में सुर्खियां बनीं.
बहरहाल, इस एक साल में बिहार की राजनीति में बनते-बिगड़ते रिश्तों के बीच, अब सभी की नजर नए साल पर हैं, जहां कौन समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे.
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