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छठ पूजा में नहाय खाय का क्यों है खास महत्व, जाने क्यों खाया जाता है कद्दू भात

इस दिन छठ व्रति पूर्ण रूप से शुद्ध होकर व्रत की शुरूआत करते हैं. इसलिए छठ के पहले दिन नहाय खाय का खास महत्व होता है. इस दिन छठ करने वाले श्रद्धालु अर्थात व्रती शुद्धता पूर्वक स्नान कर सात्विक भोजन करते हैं.

Updated on: 28 Oct 2022, 03:44 PM

highlights

. नहाय खाय का खास महत्व 
. भोजन में लहसुन-प्याज का नहीं होता इस्तेमाल
. चार दिनों तक जमीन पर सोते हैं व्रती  

Patna:

नहाय खाय के साथ आज छठ व्रतियों ने इसकी शुरुआत कर दी. छठ व्रतियों ने नदी या तालाब में नहाने के बाद घर जाकर कद्दू भात का प्रसाद बनाकर खाया और परिवार के सभी लोगों ने इसी प्रसाद को खाया. छठ पर्व को लेकर हिंदुओं में काफी आस्था होती है. बड़े ही निष्ठा और नियम के साथ इसे मनाया जाता है. साफ सफाई का बेहद ख्याल रखा जाता है. चार दिन तक चलने वाले इस पर्व का शुभारंभ आज से हो गया. 
 
नहाय खाय का क्यों है खास महत्व 

इस दिन छठ व्रति पूर्ण रूप से शुद्ध होकर व्रत की शुरूआत करते हैं. इसलिए छठ के पहले दिन नहाय खाय का खास महत्व होता है. इस दिन छठ करने वाले श्रद्धालु अर्थात व्रती शुद्धता पूर्वक स्नान कर सात्विक भोजन करते हैं. उसके बाद वह छठ सम्पन्न होने के बाद ही भोजन करते हैं. इसलिए इसे नहाय खाय कहा जाता है. इसके अलावा इस दिन छठ में चढ़ने वाला खास प्रसाद जिसे ठेकुआ कहते हैं. उसके अनाज को धोकर सुखाया भी जाता है.

चार दिनों तक जमीन पर सोते हैं व्रती  

नहाय खाय के दिन से घर में भोजन में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं होता है. इस दिन व्रती केवल एक बार भोजन करता है. नहाय खाय के दिन व्रती तैलीय चीजें जैसी पूरी और पराठे का सेवन नहीं करता है. साथ ही घर के अन्य सदस्य व्रत करने वाले के भोजन करने के बाद ही अन्न ग्रहण करते हैं. इसके अलावा आमतौर पर घर में बिस्तर पर नहीं सोते बल्कि वह चार दिन तक जमीन पर सोते हैं.

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नहाय खाय के दिन क्यों खाया जाता है कद्दू भात 

नहाय खाय के दिन कद्दू की सब्जी बनती है. इसके पीछे मान्यता है कि हिन्दू धर्म में कद्दू को बहुत पवित्र माना जाता है. इसके अलावा कद्दू में पर्याप्त मात्रा में जल रहता है. इसमें लगभग 96 फीसदी पानी होता है जो व्रती को आगे आने वाले दिनों में ताकत देता है. इसके अलावा कद्दू खाने से बहुत सी बीमारियां भी दूर हो जाती हैं. इसके अलावा खाने में सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही इस दिन चने की दाल खाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि चने की दाल बाकी दालों में सबसे अधिक शुद्ध होती है तथा वह व्रती को ताकत भी देती है.