Prashant Kishor: कैसे एक पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट बना भारतीय राजनीति का सबसे चर्चित चेहरा, जानिए उनके रणनीतिकार से नेता बनने तक की कहानी

भारत की राजनीति में कुछ ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने बिना किसी पारंपरिक राजनीतिक पृष्ठभूमि के इतना बड़ा प्रभाव डाला हो, जितना प्रशांत किशोर ने किया. उन्होंने चुनावी रणनीति को एक पेशेवर विज्ञान बना दिया. अब वे खुद राजनीति के मैदान में उतर चुके हैं.

भारत की राजनीति में कुछ ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने बिना किसी पारंपरिक राजनीतिक पृष्ठभूमि के इतना बड़ा प्रभाव डाला हो, जितना प्रशांत किशोर ने किया. उन्होंने चुनावी रणनीति को एक पेशेवर विज्ञान बना दिया. अब वे खुद राजनीति के मैदान में उतर चुके हैं.

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Deepak Kumar
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Prashant Kishor

प्रशांत किशोर, जिन्हें आज पूरा देश ‘पीके’ के नाम से जानता है, भारत के सबसे चर्चित चुनावी रणनीतिकार और राजनीतिक सलाहकारों में से एक रहे हैं. उन्होंने कई बड़ी पार्टियों और नेताओं को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन अब वे खुद एक राजनेता के तौर पर बिहार की राजनीति में अपनी पहचान बना रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र (UN) में पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के रूप में काम करने के बाद उन्होंने राजनीति की राह चुनी और ‘जन सुराज’ नाम से एक नया राजनीतिक आंदोलन शुरू किया, जो अब एक पार्टी के रूप में बिहार की सियासत में सक्रिय है. भारत की राजनीति में कुछ ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने बिना किसी पारंपरिक राजनीतिक पृष्ठभूमि के इतना बड़ा प्रभाव डाला हो, जितना प्रशांत किशोर ने किया. आखिर कैसे उन्होंने रणनीतिकार से राजनीतिक क्षेत्र में कदम रखा, और कौन-कौन से अभियान उनके नाम जुड़े हैं? आइए, इस लेख में उनके अब तक के सफर के बारे में विस्तार से जानते हैं.

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शुरुआती जीवन और शिक्षा

प्रशांत किशोर का जन्म 1977 में बिहार के रोहतास जिले के कोनार गांव में हुआ. उनके पिता डॉ. श्रीकांत पांडे सरकारी डॉक्टर थे, जबकि मां सुशीला पांडे गृहिणी हैं. जब उनके पिता की पोस्टिंग बक्सर में हुई, तो परिवार वहीं बस गया. किशोर की स्कूली पढ़ाई बक्सर में हुई. 10वीं के बाद उन्होंने दो साल पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन बाद में पटना साइंस कॉलेज में दाखिला लिया. परिवार चाहता था कि वे इंजीनियर बनें, लेकिन उनकी रुचि राजनीति और समाजसेवा की ओर थी. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में सांख्यिकी (Statistics) विषय से पढ़ाई शुरू की, लेकिन तबियत खराब होने के कारण बीच में पढ़ाई छोड़नी पड़ी. बाद में उन्होंने लखनऊ और हैदराबाद जाकर अपनी ग्रेजुएशन और पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरी की. पढ़ाई के बाद उन्हें संयुक्त राष्ट्र (UN) में नौकरी मिली, जहां उन्होंने करीब 11 साल तक सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) के क्षेत्र में काम किया.

संयुक्त राष्ट्र से राजनीति की ओर कदम

आपको बता दें कि 2000 से 2011 के बीच प्रशांत किशोर ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में भारत और अफ्रीका के कई देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य और नीति से जुड़े प्रोजेक्ट्स पर काम किया. इस दौरान उन्होंने प्रशासनिक प्रणाली, नीतियों की योजना और लोगों तक योजनाओं के असर को समझा- यही अनुभव आगे चलकर उनकी चुनावी रणनीतियों की नींव बना.

संयुक्त राष्ट्र में काम करते हुए प्रशांत किशोर ने महसूस किया कि भारत में योजनाओं का असली लाभ जनता तक नहीं पहुंच पाता. इस सोच के साथ उन्होंने नौकरी छोड़कर भारत लौटने का फैसला किया. उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत गुजरात से हुई, जब वे नरेंद्र मोदी के साथ 2011 में जुड़े. मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे और 2012 विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे थे. यही से पीके का रणनीतिक सफर शुरू हुआ.

PM मोदी के लिए ऐतिहासिक अभियान

प्रशांत किशोर ने नरेंद्र मोदी के लिए 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव का पूरा प्रचार अभियान संभाला. मोदी की जीत ने किशोर को एक ‘रणनीतिक जीनियस’ के रूप में पहचान दिलाई. इसके बाद उन्होंने 2013 में Citizens for Accountable Governance (CAG) नाम से एक संगठन बनाया. इस टीम ने 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए ऐतिहासिक रणनीति तैयार की. ‘चाय पर चर्चा’, ‘3D रैलियां’, ‘Run for Unity’ और सोशल मीडिया कैंपेन जैसे इनोवेटिव अभियानों ने बीजेपी की जीत में बड़ा योगदान दिया. 2014 में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला, और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने.

I-PAC की शुरुआत और बिहार में सफलता

2014 के बाद प्रशांत किशोर ने Indian Political Action Committee (I-PAC) की स्थापना की. इस संगठन ने देशभर में चुनावी अभियानों की दिशा बदल दी. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में I-PAC ने महागठबंधन (जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस) के लिए रणनीति बनाई. ‘नीतीश के निश्चय- विकास की गारंटी’ जैसे नारे और जनसंपर्क अभियानों ने नीतीश कुमार को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने में मदद की. बिहार की इस जीत के बाद प्रशांत किशोर की छवि एक ‘चुनावी जीत की गारंटी’ के रूप में बन गई.

अन्य राज्यों में प्रशांत किशोर की भूमिका

प्रशांत किशोर ने आने वाले वर्षों में कई राज्यों और पार्टियों के साथ काम किया-

  • पंजाब (2017): कांग्रेस के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में चुनाव अभियान चलाया. कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की.

  • उत्तर प्रदेश (2017): कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई, लेकिन यह अभियान असफल रहा. बीजेपी ने रिकॉर्ड जीत हासिल की.

  • आंध्र प्रदेश (2019): वाईएस जगन मोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस पार्टी के लिए काम किया. पार्टी ने भारी बहुमत से सरकार बनाई.

  • दिल्ली (2020): आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए रणनीति बनाई. केजरीवाल ने 70 में से 62 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी.

  • पश्चिम बंगाल (2021): तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लिए “दीदी के बोलो” और “दुआरे सरकार” जैसे अभियान चलाए. ममता बनर्जी ने जोरदार जीत दर्ज की.

  • तमिलनाडु (2021): डीएमके के एम.के. स्टालिन के लिए रणनीति तैयार की. DMK ने 159 सीटें जीतकर सत्ता हासिल की.

इन अभियानों ने प्रशांत किशोर को भारत का सबसे भरोसेमंद राजनीतिक रणनीतिकार बना दिया.

राजनीति में प्रवेश और JD(U) के साथ जुड़ाव

2018 में प्रशांत किशोर ने खुद राजनीति में कदम रखा और जेडीयू (JDU) में शामिल होकर उपाध्यक्ष बने. लेकिन जल्द ही पार्टी लाइन और विचारों में मतभेद के कारण 2020 में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. दरअसल, नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर नीतीश कुमार की नीति की आलोचना करने के बाद उन्हें पार्टी से निकाला गया. यह उनके लिए राजनीति की वास्तविक दुनिया का पहला बड़ा सबक था. इसके बाद 2021 में अमरिंदर सिंह ने उन्हें पंजाब सरकार का प्रधान सलाहकार बनाया. वे इस पद पर सिर्फ 1 रुपये की औपचारिक सैलरी पर काम कर रहे थे.

जन सुराज का गठन

बता दें कि 2022 में प्रशांत किशोर ने ‘जन सुराज’ नाम से एक राजनीतिक अभियान की शुरुआत की. उन्होंने ऐलान किया कि अब ‘जनता ही असली मालिक’ है और राजनीति को जनता के बीच ले जाना जरूरी है. उन्होंने बिहार में करीब 3,000 किलोमीटर लंबी पदयात्रा शुरू की, जिसमें उन्होंने सैकड़ों गांवों और हजारों लोगों से मुलाकात की.

जन सुराज अभियान का लक्ष्य है-

  • बिहार में राजनीति को साफ और पारदर्शी बनाना

  • युवाओं और किसानों को केंद्र में लाना

  • शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर नई सोच विकसित करना

2 अक्टूबर 2024 को प्रशांत किशोर ने जन सुराज अभियान को औपचारिक रूप से एक राजनीतिक दल का रूप दिया- ‘जन सुराज पार्टी.’ अब यह पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए और महागठबंधन दोनों को चुनौती देने के लिए तैयार है.

2025 बिहार विधानसभा चुनाव: पहला बड़ा इम्तिहान

2025 में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पहली बार चुनाव मैदान में उतरेगी. संभावना है कि वे 243 में से सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे. यह चुनाव तय करेगा कि क्या उनकी रणनीतिक समझ अब जनता के वोट में भी तब्दील हो पाती है या नहीं. अगर वे सफल होते हैं, तो बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू होगा.

SWOT विश्लेषण: प्रशांत किशोर की ताकत और चुनौतियां

ताकतें (Strengths):-

  • डेटा और जमीनी समझ पर आधारित रणनीति.

  • युवाओं और पेशेवरों के बीच विश्वसनीय छवि.

  • शासन और नीति निर्माण का अनुभव.

  • अनुशासित और संगठित कार्यशैली.

कमजोरियां (Weaknesses):-

  • खुद कभी चुनाव नहीं लड़ा.

  • नई पार्टी होने के कारण सीमित संगठन और संसाधन.

  • ‘कंसल्टेंट’ छवि, जनता से सीधा जुड़ाव कम.

अवसर (Opportunities):-

  • बिहार में वर्तमान सरकारों के खिलाफ नाराजगी.

  • युवाओं में बदलाव की चाह.

  • ‘क्लीन पॉलिटिक्स’ का बढ़ता आकर्षण.

खतरे (Threats):-

  • जातीय समीकरणों का असर.

  • बड़े दलों का दबाव और संसाधनों की कमी.

  • पहली असफलता से पार्टी का मनोबल गिर सकता है.

जन सुराज की विचारधारा

प्रशांत किशोर का मानना है कि राजनीति को जाति और परिवारवाद से बाहर निकलना चाहिए. उनकी पार्टी के चार मुख्य स्तंभ हैं- 

1. जनभागीदारी लोकतंत्र (Participatory Democracy)

2. जवाबदेह शासन (Accountable Governance)

3. विकास पर आधारित राजनीति (Development over Identity)

4. ग्राम स्तर पर सशक्तिकरण (Grassroots Empowerment)

प्रशांत किशोर की रणनीति की खासियत

  • जमीनी जुड़ाव:- वे हमेशा जनता के बीच जाकर संवाद करते हैं, आंकड़ों के साथ नहीं बल्कि अनुभवों के साथ रणनीति बनाते हैं.

  • टेक्नोलॉजी का उपयोग:- सोशल मीडिया, डेटा एनालिसिस और ग्राफिकल कम्युनिकेशन का गहरा उपयोग करते हैं.

  • लोकल एजेंडा पर फोकस:- हर राज्य की संस्कृति और समस्याओं को ध्यान में रखकर चुनावी संदेश तय करते हैं.

  • टीमवर्क पर भरोसा: I-PAC जैसी टीमों के जरिए युवाओं को राजनीति से जोड़ते हैं.

राजनीति में नई उम्मीद या नई चुनौती?

अब जब प्रशांत किशोर खुद मैदान में हैं, तो सवाल यह है कि क्या वे दूसरों की जीत की तरह अपनी जीत की कहानी भी लिख पाएंगे? बिहार की जनता उन्हें एक ‘रणनीतिकार’ के रूप में जानती है, लेकिन अब उन्हें ‘नेता’ के रूप में परखना बाकी है.

प्रशांत किशोर का सफर प्रेरक है- एक साधारण गांव से निकलकर संयुक्त राष्ट्र, फिर देश के सबसे बड़े चुनावी रणनीतिकार और अब एक राजनीतिक नेता तक. अब देखना यह है कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में ‘जन सुराज’ कितना असर दिखाता है.

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