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बिहार में कौन भड़का रहा है आरक्षण की 'आग'? हाईकोर्ट के फैसले के बाद जारी है सियासी घमासान

OBC आरक्षण के मुद्दे पर पटना हाईकोर्ट के फैसले से नगर निकाय चुनाव टलने के बाद बिहार में आरक्षण की सियासी आग भड़क गई है.

Updated on: 07 Oct 2022, 06:06 PM

Patna:

OBC आरक्षण के मुद्दे पर पटना हाईकोर्ट के फैसले से नगर निकाय चुनाव टलने के बाद बिहार में आरक्षण की सियासी आग भड़क गई है. इस आग में सियासत तेजी से सुलग रही है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बीजेपी को आरक्षण विरोधी बताते हुए आरक्षण की आग में बीजेपी के भस्म होने की चेतावनी दे रहे हैं, तो जवाब बीजेपी की तरफ से भी दिया जा रहा है. साफ है पटना हाईकोर्ट के फैसले के बहाने एक दूसरे पर वार-पलटवार के पीछे वजह है पिछड़ा-अतिपिछड़ा वोटबैंक की सियासत. 

दरअसल बिहार की सियासत में पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्ग एक निर्णायक भूमिका में माने जाते हैं. बिहार में अति पिछड़ी जातियां किंगमेकर मानी जाती हैं. पिछड़ा और अति पिछड़ा वोटों का प्रतिशत बिहार में लगभग 45 फीसदी के आसपास है, 25 फीसदी के आसपास अति पिछड़ा वोट बैंक है. 90 के दशक में लालू ने पिछड़ों के सहारे 15 सालों तक बिहार में राज किया, तो नीतीश ने अतिपिछड़ों को अपना कोर वोटबैंक बनाकर अपना दबदबा कायम रखा है. वहीं, बीजेपी भी पिछड़ा-अतिपिछड़ा वोटबैंक में सेंध लगाकर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है. 

ऐसे में राजनीतिक दलों के निशाने पर पिछड़ा अति पिछड़ा वोट बैंक रहता है, लेकिन कहने के लिए तो बीजेपी, आरजेडी, जेडीयू समेत सभी दल अतिपिछड़ों की हितैषी होने का दंभ भरते हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि बिहार में पिछले 6 साल से पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग आयोग निष्क्रिय हालत में है. ज़ाहिर है पिछड़ों-अतिपिछड़ों को साधने और उनके नाम पर सियासत तो खूब होती रही, लेकिन एक अदद आयोग के गठन में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. 

पिछड़ा-अतिपिछड़ा की सियासत समझिए
पिछड़ा-अति पिछड़ा वोटों का प्रतिशत लगभग 45 फीसदी है.
25 फीसदी के आसपास अति पिछड़ा वोट बैंक है.
बिहार में अति पिछड़ी जातियां किंगमेकर मानी जाती हैं.
राज्य में कुल 144 जातियां ओबीसी में शामिल हैं.
113 जातियां अति पिछड़ा और 31 जातियां पिछड़ा वर्ग के तहत हैं.
यादव 14%, कुशवाहा यानी कोइरी 6%, कुर्मी 4% है.
इसके अलावा बनिया की आबादी भी अच्छी खासी है.
निषाद, बिंद, केवट, प्रजापति, कहार, कुम्हार,नोनिया सहित कई जातियां भी हैं.
सियासी दलों की नज़रें पिछड़ा-अतिपिछड़ा वोट बैंक पर टिकी हैं.
पिछड़े वर्ग के विनोद तावड़े को बीजेपी ने प्रभारी बनाया गया.
आरजेडी कार्यकर्ताओं को अतिपिछड़ों को जोड़ने का तेजस्वी ने टास्क दिया है. 
नीतीश ने अतिपिछड़ा वर्ग को आगे कर अतिपिछड़ों में पैठ बनाई.
अतिपिछड़े छात्रों के लिए छात्रावास, सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना शुरु की.
पंचायती राज में अतिपिछड़ों को आरक्षण के ज़रिए पकड़ बनाने की कोशिश की.

अतिपिछड़ों की सियासत, आयोग का गठन क्यों नहीं?
बिहार में पिछले 6 साल से पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग आयोग निष्क्रिय हालत में है.
127 वें संशोधन के ज़रिए मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया.
10 अगस्त 2021 को ओबीसी आरक्षण को लेकर 127 वां संविधान संशोधन बिल पारित किया गया.
संविधान संशोधन से राज्य सरकारों को सूची तैयार करने का अधिकार मिल गया.
राज्य सरकार OBC लिस्ट को लेकर अंतिम फैसला ले सकेगी.
बावजूद इसके राज्य सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया.
इस दौरान सत्ता में नीतीश के साथ बीजेपी और आरजेडी दोनों पार्टियां रहीं.

निकाय चुनाव पर बड़ा फैसला
10 और 20 अक्टूबर को निकाय चुनाव होने थे.
चुनाव से पहले आयोग का गठन नहीं किया.
बगैर ट्रिपल टेस्ट के पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया.
सरकार ने OBC के अलावा EBC को 20% आरक्षण दिया.
OBC,EBC मिलाकर आरक्षण की सीमा 50% से ज्यादा हो गई.
फैसले के खिलाफ SC में रिट याचिका दायर की गई.
SC के आदेश पर HC में मामले की सुनवाई चली.
मामले पर दो सुनवाई के बाद फैसला सुनाया गया.