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पटना की 2 बहनें संक्रमित परिवारों को मुफ्त पहुंचा रहीं खाना

ऐसी ही समस्या से जब पटना के राजेंद्रनगर की दो बहनों का रू-ब-रू होना पडा तब उन्होंने कोरोना संक्रमित परिवारों को भोजन पहुंचाने का बीड़ा उठाया.

Updated on: 01 May 2021, 01:16 PM

highlights

  • पहले दिन 20 से 25 रोटियों से शुरूआत हुई थी
  • आज 200 से ज्यादा रोटियां बनानी पड़ रही हैं
  • खुद हुई थीं संक्रमित. दिक्कत ने दिया यह विचार

पटना:

आमतौर पर कोरोना (Corona Virus) संक्रमित परिवारों के सामने तो कई समस्याएं आती हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या उनके दोनों टाइम के पौष्टिक भोजन (Meal) बनाने की आती है. ऐसे में अगर कोई उनके घर दोनों टाइम का भोजन पहुंचा दे, तो क्या कहने. ऐसी ही समस्या से जब पटना के राजेंद्रनगर की दो बहनों का रू-ब-रू होना पडा तब उन्होंने कोरोना संक्रमित परिवारों को भोजन पहुंचाने का बीड़ा उठाया. आज ये दोनों बहनें प्रतिदिन 15 से 20 कोरोना संक्रमित परिवारों के लिए भोजन पका रही है और पैकिंग (Packaged Food) कर उसे उनके घरों तक पहुंचा रही हैं.

खुद संक्रमित होने पर आई दिक्कत से मिली प्रेरणा
पटना के राजेंद्र नगर की रहने वाली अनुपमा सिंह और नीलिमा कोरोना संक्रति मरीजों को घर का बना हुआ स्वास्थ्यवर्धक खाना पहुंचा रही हैं. इसके बारे में बात करते हुए, अनुपमा ने आईएएनएस से कहा, 'होली के दौरान, मेरी बहन और मेरी मां दोनों कोरोना पॉजिटिव हो गई थी. इस दौरान छोटी बच्ची की देखभाल से लेकर खाना पकाने तक की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई थी. मुझे खुद ही सब कुछ संभालना पड़ा और मुझे संक्रमण नहीं हुआ था लेकिन मैं असहाय महसूस कर रही थी.'

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हर रोज 100 से अधिक मदद के कॉल
इसके बाद, हमने महसूस किया कि कई और परिवार होंगे जो समान अनुभव कर रहे होंगे और हमने आसपास संक्रमित परिवारों के लिए खाना बनाना और उनतक भोजन पहुंचाने का फैसला किया और उसी के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया. उन्होंने कहा, 'इसके बाद मुझे लगता है प्रत्येक दिन 100 से अधिक कॉल आ रहे हैं और भोजन की मांग कर रहे हैं. सभी लोगों की इस दौर में मांग की पूर्ति तो नहीं कर सकती, लेकिन क्षमता के मुताबिक लोगों के घरों में खाना बनाकर पहुंचाती हूं.'

श्रद्धाभाव से मुफ्त में कर रहीं सेवा
अनुपमा कहती है कि इस दौरान कई लोगों ने मदद देने की भी पेशकश की, लेकिन हमले मना कर दिया. उन्होंने बताया कि वह नि:शुल्क यह सेवा कर रही हैं, जितनी शक्ति, उतनी भक्ति. उन्होंने कहा, 'हमने मदद की पेशकश को पूरी तरह से इनकार कर दिया है. पूरे परिवार ने अगले एक साल तक किसी भी त्योहार में नए कपडे नहीं बनाने का दृढ़ निश्चय किया. उसी बजट का जो भी हिस्सा इन चीजों पर खर्च किया जा रहा है.'

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दूसरों को भी किया प्रोत्साहित
उन्होंने बताया कि 'पहले दिन 20 से 25 रोटियों से शुरूआत हुई थी और आज 200 से ज्यादा रोटियां बनानी पड़ी है. वे कहती हैं कि इस कार्य में उनकी मां, पति और बहन मदद करती हैं. अनुपमा अगर खाना बनाने में लगी रहती है तो नीलिमा खाना पैक कर स्कूटी से संक्रमितों के घरों तक पहुंचाने का काम करती है.' अनुपमा बताती है कि उनके पास दूर-दराज के मुहल्लों के संक्रमित लोगों के फोन भी आने लगे. ऐसे में कई लोगों को अनुपमा ने उसी क्षेत्र में लोगों को इस काम के लिए तैयार किया और प्रोत्साहित कर उनसे इसकी शुरूआत की.