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इस वर्ष पांच नहीं छह दिनों का होगा दीपोत्सव, 22 अक्टूबर से होगा शुरू

पांच दिनों का दीपावली महापर्व इस वर्ष छह दिनों का होगा. ऐसा 25 अक्टूबर को लगने वाले सूर्यग्रहण के कारण हुआ है.

Updated on: 21 Oct 2022, 08:43 AM

Patna:

पांच दिनों का दीपावली महापर्व इस वर्ष छह दिनों का होगा. ऐसा 25 अक्टूबर को लगने वाले सूर्यग्रहण के कारण हुआ है. इस बार दीपावली महापर्व की शुरुआत शनिवार 22 अक्टूबर को धनतेरस से होगी. नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली) रविवार 23 अक्टूबर, दीपावली सोमवार 24 अक्टूबर, अन्नकूट और गोवर्धन पूजा बुधवार 26 अक्टूबर और भैयादूज और चित्रगुप्त पूजा गुरुवार 27 अक्टूबर के साथ ही इस महापर्व का सामापन हो जाएगा. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि पहला पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनाध्यक्ष कुबेर के पूजन से शुरू होकर मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीपदान तक चलेगा. हिंदू धर्म में दीपावली का त्योहार बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है. कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है. 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या तिथि पर भगवान श्री राम 14 वर्षों का वनवास काटकर और लंका पर विजय करने के बाद अयोध्या लौटे थे. जिसकी खुशी में सारे अयोध्यावासी इस दिन पूरे नगर को अपने राजा प्रभु राम के स्वागत में दीप जलाकर उत्सव मनाया था. इसी कारण से तब से ये परंपरा चली आ रही है. दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व भी होता है. इस दिन शाम और रात के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा की जाती है. धनतेरस दीपावली का पहला दिन माना जाता है. इसके बाद नरक चतुर्दशी फिर दीपावली, गोवर्धन पूजा और आखिरी में भैयादूज का त्योहार मनाया जाता है.

पंचपर्व दीपोत्सव
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि पांच दिनों का दीपावली महापर्व इस वर्ष छह दिनों का होगा. ऐसा 25 अक्टूबर को लगने वाले सूर्यग्रहण के कारण हुआ है. इस बार दीपावली महापर्व की शुरुआत शनिवार 22 अक्टूबर को धनतेरस से होगी. नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली) रविवार 23 अक्टूबर, दीपावली सोमवार 24 अक्टूबर, अन्नकूट और गोवर्धन पूजा बुधवार 26 अक्टूबर और भैयादूज और चित्रगुप्त पूजा गुरुवार 27 अक्टूबर के साथ ही इस महापर्व का सामापन हो जाएगा.

22 अक्टूबर को धनतेरस पर दीपदान की होगी शुरुआत
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि धनतेरस जिसे धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती भी कहते हैं पांच दिवसीय दीपावली का पहला दिन होता है. धनतेरस के दिन से दिवाली का त्योहार प्रारंभ हो जाता है. मान्यता है इस तिथि पर आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रगट हो हुए थे. इसी कारण से हर वर्ष धनतेरस पर बर्तन खरीदने की परंपरा निभाई जाती है. कहा जाता है जो भी व्यक्ति धनतेरस के दिन सोने-चांदी, बर्तन, जमीन-जायजाद की शुभ खरीदारी करता है उसमें तेरह गुना की बढ़ोत्तरी होती है. चिकित्सक अमृतधारी भगवान धन्वन्तरि की पूजा करेंगे. इसी दिन से देवता यमराज के लिए दीपदान से दीप जलाने की शुरुआत होगी और पांच दिनों तक जलाए जाएंगे. लोकाचार में इस दिन खरीदे गए सोने या चांदी के धातुमय पात्र अक्षय सुख देते हैं. लोग नए बर्तन या दूसरे नए सामान खरीदेंगे.

23 अक्टूबर को रूप चतुर्दशी पर महिलाएं संवारेगी रूप
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माता अदिति के आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध कर 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी. परंपरा में इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का दिन भी माना गया है. इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है. इस दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में हल्दी, चंदन, सरसो का तेल मिलाकर उबटन तैयार कर शरीर पर लेप कर उससे स्नान कर अपना रूप निखारेंगी. नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. नरक चतुर्दशी को कई और नामों से भी मनाया जाता है जैसे- नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी आदि. दीपावली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है. इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है. घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है.

24 अक्टूबर को दीपावली पर होगी महालक्ष्मी-गणेश पूजन
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि दीपावली पर घरों को रोशनी से सजाया जाता है. दीपावली की शाम को शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, मां सरस्वती और धन के देवता कुबेर की पूजा-आराधना होती है. मान्यता है दीपावली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और घर-घर जाकर ये देखती हैं किसका घर साफ है और किसके यहां पर विधिविधान से पूजा हो रही है. माता लक्ष्मी वहीं पर अपनी कृपा बरसाती हैं. दीपावली पर लोग सुख-समृ्द्धि और भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं. अथर्ववेद में लिखा है कि जल, अन्न और सारे सुख देने वाली पृथ्वी माता को ही दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है. कार्तिक अमावस्या का दिन अंधेरे की अनादि सत्ता को अंत में बदल देता है, जब छोटे-छोटे ज्योति-कलश दीप जगमगाने लगते हैं. प्रदोषकाल में माता लक्ष्मी के साथ गणपति, सरस्वती, कुबेर और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है.

26 को गोवर्धन पूजा पर बंटेगा अन्नकूट
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी किया जाता है. इस त्योहार में भगवान कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा का विधान है. इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है. दीपावली के अगले दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है. ऋग्वेद में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर तीन पदों में सारी सृष्टि को नाप लिया था. श्रीकृष्ण ने इसी दिन देवेंद्र के मानमर्दन के लिए गोवर्धन को धारण किया था. शहर में स्थान-स्थान जगह-जगह नवधान्य के बने हुए पर्वत शिखरों का भोग अन्नकूट प्रसाद के रूप में वितरित जाएगा.

27 अक्टूबर को भाईदूज पर भाई करेंगे बहनों के घर भोजन
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भाई दूज पांच दिवसीय दीपावली पर्व का आखिरी दिन का त्योहार होता है. भाई दूज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की मनोकामनाएं मांगती हैं. इस त्योहार को भाई दूज या भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया कई नामों से जाना जाता है. भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया था. यही वजह है कि आज भी इस दिन समझदार लोग अपने घर मध्याह्न का भोजन नहीं करते. कल्याण और समृद्धि के भाई को इस दिन अपनी बहन के घर में ही स्नेहवश भोजन करना चाहिए.