पटना सिटी का थाना बना कबाड़खाना, जानिए सच्चाई

पटना सिटी के कई थाने कबाड़खाना बन चुके हैं. जी हां, यह बिहार के थानों को देखकर सहज ही कहा जा सकता है, ये थाने नहीं बल्कि कबाड़खाने हैं.

पटना सिटी के कई थाने कबाड़खाना बन चुके हैं. जी हां, यह बिहार के थानों को देखकर सहज ही कहा जा सकता है, ये थाने नहीं बल्कि कबाड़खाने हैं.

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Vineeta Kumari
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पटना सिटी का थाना बना कबाड़खाना( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

पटना सिटी के कई थाने कबाड़खाना बन चुके हैं. जी हां, यह बिहार के थानों को देखकर सहज ही कहा जा सकता है, ये थाने नहीं बल्कि कबाड़खाने हैं. ऐसा नहीं है कि ये थाने अचानक ही वाहनों के जंगल में तब्दील हो गए. इनको कबाड़खाने बनने में दशकों लग चुके हैं, ये अलग बात है कि पुलिस विभाग के बड़े अधिकारी थानों में सड़ रहे जब्त इन वाहनों को शराबबंदी से जोड़कर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. हकीकत ये है कि कोर्ट की कछुआ चाल और थाने में पदस्थापित पुलिस अधिकारी के गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली ने भी बिहार के थानों में वाहनों का पहाड़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है.

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कोर्ट चाह कर भी तब तक वाहनों को छोड़ने का आदेश नहीं दे सकते, जब तक आईयो रिपोर्ट बनाकर कोर्ट में जमा नहीं करते हैं और आईयो जब तक चढावा नहीं लेगें, तब तक रिपोर्ट बनाकर वे कोर्ट में जमा नहीं करते हैं. ऐसी हालत में कई आम जनता की नई-नई वाहन थानों के लापरवाही और खुशनामें की चाहत में खड़े-खड़े खराब हो जाते हैं. 

बिहार के थानों में जब्त वाहनों का 10% दो पहिये तिपहिये वाहनों की भीड़ इसलिए भी लग जाती है क्योंकि बरामदगी या जब्ती के अनुपात में वाहनों के छोड़ने की प्रक्रिया अत्यंत धीमी है. साल या छह महीने में चार वाहन छोड़े जाते हैं तो दर्जनों जब्त किये जाते हैं.

Source : News Nation Bureau

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