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नहीं रहे शरद यादव( Photo Credit : न्यूज स्टेट बिहार झारखंड)
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जेपी के छात्र आंदोलन का देश की राजनीति पर आनेवाले समय में कितना असर होने वाला है इसकी पहली झलक 1974 में शरद यादव ने दिखाई थी.
नहीं रहे शरद यादव( Photo Credit : न्यूज स्टेट बिहार झारखंड)
राजनीति के दिग्गज महारथियों में से एक शरद यादव का 75 साल उम्र में लंबी बीमारी की वजह से निधन हो गया है. शरद यादव ही वो चेहरे हैं जिन्हें जेपी आंदोलन से निकलने के बाद पहली जीत मिली थी. टीम जेपी से सलाखों के भीतर रहकर जीत हासिल करने वाले शरद यादव पहले राजनेता थे. जेपी के छात्र आंदोलन का देश की राजनीति पर आनेवाले समय में कितना असर होने वाला है इसकी पहली झलक 1974 में शरद यादव ने दिखाई थी. दरअसल, जेपी ने छात्र आंदोलन के बाद जिस पहले उम्मीदवार को हलधर किसान के चुनाव निशान पर चुनाव लड़वाया था वो कोई और नहीं बल्कि शरद यादव थे और उनकी उम्र महत 27 साल थी. शरद यादव तब जबलपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष हुआ करते थे और छात्र आंदोलन के चलते जेल में थे.
सलाखों के पीछे से चुनाव कैसे लड़ाया जाता है और चुनाव कैसे जीता जाता है ये बात तो कई नेताओं ने भविष्य में बताई लेकिन जेपी आंदोलन से किसी नेता ने पहली बार बताई थी. इतना ही नहीं आपातकाल के समय तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने लोकसभा सदस्यों का कार्यकाल 5 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया था और इसके विरोध में सिर्फ दो सांसदों ने इस्तीफा दिया था जिनमें मधु लिमये और शरद यादव का नाम शामिल है. यानि कि शरद यादव को कुर्सी का कभी भी मोह नहीं था. वह हमेसा गलत का विरोध करते थे और सही का साथ देते थे.
1977 में दोबारा चुनाव हुए और एक बार फिर से शरद यादव को जनता ने चुनकर लोकसभा में भेजा. 1980 में चुनाव हारने के बाद शरद यादव ने सियासी पारी खेलने के लिए यूपी का रुख किया. संजय गांधी की मौत के बाद अमेठी से शरद यादव ने राजीव गांधी को उपचुनाव में टक्कर दी हालांकि उन्हें हार मिली. शरद यादव ने हिम्मत नहीं हारी और 1984 में बदायूं से चुनाव लड़ा लेकिन इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन चरण सिंह के नजदीक होने का लाभ उन्हें मिला और 1986 में राज्यसभा पहुंचे.
1989 में बदायूं सीट से जनता दल की तरफ से चुनाव लड़कर शरद यादव फिर से लोकसभा पहुंचे और वीपी सिंह की सरकार में केंद्रीय कपड़ा मंत्री बने. कुर्सी को कभी भी ना चाहने वाले शरद यादव पर जैन हवाला कांड में 5 लाख रुपए लेने का आरोप लगा. हालांकि, अदालत ने उन्हें बरी कर दिया. शरद यादव ने अपने ऊपर आरोप लगने के बाद लोकसभा सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया था.
अब शरद यादव की राजनीतिक पारी उत्तर प्रदेश में खत्म हो चुकी थी. शरद यादव अगले पड़ाव में बिहार की भूमि पर राजनीति करने पहुंचे. 1991 में बिहार के मधेपुरा से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. तीन राज्यों की अलग-अलग सीटों से लोकसभा में पहुंचने वाले शरद यादव के अलावा अभी दूसरा कोई उदाहरण नहीं सामने आया है.
जिस लालू प्रसाद यादव को शरद यादव ने बिहार का सीएम बनवाया उन्हीं लालू की मदद से शरद ने बिहार के मधेपुरा जिले को अपनी सियासी कर्मभूमि बनाई. हालांकि, बाद में लालू प्रसाद यादव से तल्खियां बढ़ीं और दोनों एक-दूसरे के सामने पहले जनता दल अध्यक्ष पद को लेकर खड़े हो गए, फिर दोनों ही जनता की अदालत में गए. 1997 में जनता दल के अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर शरद यादव ने तब लालू के लिए चुनौती पेश की जब वो चारा घोटाले में फंसते जा रहे थे. उसके बाद ही राष्ट्रीय जनता दल का गठन हुआ था. शरद यादव ने जनता दल में रहते हुए अपनी पैठ इतनी बना ली थी कि लालू को इस बात का एहसास था कि अगर वह शरद यादव के सामने चुनाव लड़ते हैं तो उनकी हार होगी.
मधेपुरा जिले की पहचान यादवों के गढ़ के तौर पर आज भी होती है. यहां से शरद यादव 1991 और 1996 का चुनाव जीत चुके थे. 1998 में लालू ने उन्हें हराया लेकिन 1999 में एक बार फिर से शरद यादव ने लालू यादव को हराकर हिसाब किताब बराबर कर लिया था.
HIGHLIGHTS
Source : News State Bihar Jharkhand