वैसे तो बिहार के ज्यादातर इलाकों में बारिश ने तापमान गिरा दिया है, लेकिन प्रदेश का सियासी पारा है कि चढ़ता ही जा रहा है. वजह है 2024 का चुनावी रण है. जिसकी तैयारियां सियासी दलों ने अभी से करनी शुरू कर दी है. इस बार लोकसभा चुनाव से पहले सियासत का केंद्र बिहार बन रहा है क्योंकि प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की कमान अपने कंधे पर जो उठा रखी है. लोकसभा चुनाव के बाद बिहार का विधानसभा चुनाव भी है ऐसे में बीजेपी हो या महागठबंधन वोट बैंक को साधने में कोई पीछे नहीं है और हर बार की तरह इस बार भी सियासतदानों की नजर सीमांचल पर है.
सबसे हॉटसीट पूर्णिया
बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं. सीमांचल इलाके की बात की जाए तो यहां कुल 4 लोकसभा सीटें है.बिहार की राजनीति में सीमांचल का अपना अलग महत्व है. तमाम सियासी दलों की नजर यहां की सीटों को साधने में होती है. दरअसल सीमांचल में कुल 4 जिले आते हैं. इसमें अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया शामिल है. सीमांचल की हॉटसीट यानी पूर्णिया. पूर्णिया जिले में कुल 7 विधानसभा सीटें हैं. जिसमें से सिर्फ 6 विधानसभा सीट ही पूर्णिया लोकसभा में पड़ता है. सीमांचल की इस सीट को MY समीकरण का केंद्र माना जाता है. यहां यादव और मुस्लिम आबादी के हाथ में उम्मीदवारों के किस्मत की चाबी होती है. वहीं, SC-ST और OBC वोटरों की संख्या भी अधिक है. ये बिहार की सबसे पुरानी लोकसभा सीटों में से एक है. वहीं, 2014 और 2019 में यहां से संतोष कुशवाहा सांसद बने. ऐसे में इस बार जब बीजेपी अकेले इस सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है.
क्या कहता है सीमांचल का सियासी गणित?
अब बात कटिहार लोकसभा क्षेत्र की. ये जिला पश्चिम बंगाल की सीमा पर है. 2019 में इस सीट पर जेडीयू के दुलार चंद गोस्वामी की जीत हुई थी. इससे पहले यहां हमेशा बीजेपी के निखिल चौधरी और कांग्रेस के तारिक अनवर के बीच चुनाव देखने को मिला है. इन दोनों में से किसी एक के खाते में ही ये सीट आती थी. इस सीट से 4 बार तारिक अनवर और तीन बार निखिल चौधरी सांसद रह चुके हैं. BJP के दिग्गजों की मानें तो 2024 लोकसभा चुनाव में सीमांचल में सभी सीट पर बीजेपी की जीत पक्की है. बीजेपी सीमांचल को लेकर दावेदारी तो खूब कर रही है लेकिन फैसला तो आम जनता के हाथों में है.
MY समीकरण होगा कितना कारगर?
किशनगंज लोकसभा क्षेत्र की बात करे तो यहां 68 प्रतिशत मुसलमानों और 32 प्रतिशत हिंदूओं की आबादी है. मुस्लिम आबादी अधिक होने के चलते यहां हमेशा उम्मीदवार मुस्लिम ही होता है. सभी पार्टियां मुस्लिम उम्मीदवारों को ही टिकट देती हैं. ऐसे में इस सीट पर पार्टी कोई भी हो उम्मीदवार मुस्लिम ही होता है. इस सीट पर 1952 से हो रहे चुनाव में कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसने दो बार यहां हैट्रिक लगाई है. वहीं, इस सीट पर दो बार जनता दल और एक बार आरजेडी भी जीत चुकी है. 1999 में एक बार BJP को भी जीत का स्वाद मिल चुका है. सैयद शाहनवाज हुसैन ने बीजेपी की टिकट पर यहां से चुनाव जीता था. हालांकि उसके बाद उन्हें ये सीट अगले चुनाव में गंवानी पड़ी थी. ऐसे में इस बार जब बीजेपी यहां अकेले ही चुनाव लड़ेगी तो इसके परिणाम क्या होंगे... ये वो चुनावी नतीजे ही बताएंगे.
अररिया सीट की बात करे तो यहां करीब 44 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. एमवाय समीकरण की वजह से यहां RJD की स्थिति काफी मजबूत है. अररिया में वोटरों की कुल संख्या 1,311,225 है. इसमें 621,510 महिला और 689,715 पुरुष मतदाता हैं. अररिया संसदीय क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इस सीट पर 2019 की लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदीप सिंह की जीत हुई थी, लेकिन इस बार ये सीट किसके खाते में जाने वाला है ये तो जनता ही तय करेगी. यानी साफ है कि एक बार फिर सीमांचल में सियासी दलों ने अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश शुरू कर दी है. मतदाताओं का नब्ज टटोलने की कयावत तेज हो गई है. बयानों के तीर भी खूब दागे जा रहे हैं, लेकिन 2024 और 25 में इस कोशिशों का फायदा किस पार्टी को कितना मिलेगा... ये तो वक्त ही बताएगा.
HIGHLIGHTS
- चुनाव से पहले सीमांचल का 'दंगल'
- क्या कहता है सीमांचल का सियासी गणित?
- MY समीकरण होगा कितना कारगर?
- SC-ST वोट पर भी सियासतदानों की नज़र
Source : News State Bihar Jharkhand