आधुनिक बिहार का हाल देखिए, बांस बल्ली के पुल पर चलने को मजबूर लोग

मोतिहारी के पताही प्रखंड के बेलाहीराम पंचायत में रहने वाले लोगों के लिए विकास अभी बहुत दूर है.

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Jatin Madan
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लोग बांस और बल्ली के सहारे बने पुल से आने जाने को मजबूर हैं.( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

मोतिहारी के पताही प्रखंड के बेलाहीराम पंचायत में रहने वाले लोगों के लिए विकास अभी बहुत दूर है. यहां के लोग बांस और बल्ली के सहारे बने पुल से आने जाने को मजबूर हैं. बांस बल्ली का पुल कभी भी गिर सकता है और बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन न तो प्रशासन को स्थानीय लोगों की तकलीफ दिख रही हैं और न ही माननीयों को. जैसे ही चुनाव आता है वैसे ही नेतागण विकास विकास की माला जपने लगते हैं और चुनाव बीतने के साथ ही अगले पांच साल के लिए विकास पोस्टर बैनर से गायब हो जाते हैं बिहार के मोतिहारी में लोग जान हथेली पर लेकर चलने को मजबूर हैं. 

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पताही प्रखंड के बेलाहीराम पंचायत के रहने वाले स्कूली बच्चे और लोग शेरा नदी पर बने पुल को रोज पार करते हैं. 2020 में आई बाढ़ की वजह से पुलिस बह गया था. उसके बाद पुल का निर्माण नहीं कराया गया. नेताजी वोट मांगने आते हैं. विकास का वादा करते हैं, लेकिन विकास है कि आता ही नहीं. बांस बल्ली के सहारे बने पुल पर जरा सा ध्यान चूकते ही फिसलकर शख्स सीधे नीचे गिर सकता है. कई बार इस पुल से हादसा भी हो चुका है, लेकिन प्रशासन ने कभी भी ग्रामीणों की सुधि नहीं ली.

प्रशासनिक अधिकारियों ने आंखें मूंद रखी हैं और माननीयगण तो पांच साल में एक बार वोट मांगने के लिए आते हैं. पुल बहने के बाद मजबूरन लोगों को खुद ही पुल का निर्माण बांस बल्ली के सहारे करना पड़ा. इस पुल से सौकड़ों नौनिहाल प्रतिदिन अपनी जान हथेली पर रखकर आते जाते हैं. शिक्षा के लिए इतनी बड़ी कीमत देना तो आधुनिक भारत की नहीं बल्कि प्राचीन भारत की याद दिलाता है. इस पुल से कई बार हादसा भी हो चुका है. कई छात्रों को चोटें भी आई हैं, लेकिन प्रशासन लोगों की सुध शायद नहीं लेना चाह राह है या फिर ये भी कहना सही होगा कि शायद प्रशासन किसी बड़े हादसे के होने का इंतजार कर रहा है.

सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले दो बार से यहां से बीजेपी से विधायक के तौर पर लालबाबू गुप्ता चुनाव जीतते आए हैं, लेकिन पुल की समस्या को दूर नहीं किया. स्थानीय लोग प्रशासनिक अधिकारियों और माननीयों के दरवाजा पुल के लिए लगातार खटखटाते रहे. जब लोगों को निराशा हाथ लगी तो उन्होंने खुद ही बांस बल्ली के सहारे पुल का निर्माण किया. बल्ली से चचरी के पूल का निर्माण तो ग्रामीणों ने कर लिया है, लेकिन इस पर सफर करना मतलब मौत का सफर करने के बराबर है. कभी भी पुल टूट सकता है और बड़ी घटना घटित हो सकती है.

Source : News Nation Bureau

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