जातिगत जनगणना: SC ने याचिकाओं पर सुनवाई से किया इनकार, याचिकाकर्ताओं को दी हाईकोर्ट जाने की सलाह
जातिगत जनगणना: SC ने याचिकाओं को सुनवाई से किया इन्कार, याचिकाकर्ताओं को दी हाईकोर्ट जाने की सलाह
highlights
- सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं 3 याचिकाएं
- याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने बताया 'पब्लिसिटी याचिका'
- तीनों याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से किया इन्कार
- याचिकाकर्ताओं को दी पटना हाईकोर्ट जाने की सलाह
Patna:
बिहार में जातिगत जनगणना के खिलाफ दाखिल की गई तीनों याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो याचिकाएं दाखिल की गई हैं वो याचिका लगती ही नहीं, वो पब्लिसिटी के दाखिल की गई याचिकाएं ज्यादा लग रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को पटना हाईकोर्ट जाने की सलाह दी है. बिहार में जाति आधारित जनगणना शुरू हो चुकी है लेकिन इस बीच आज यानि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट जातिगत जनगणना के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट में जातिगत जनगणना के खिलाफ तीन याचिकाएं दाखिल की गई थीं. तीनों ही याचिकाओं पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया.
क्या कहा गया था याचिका में
जातीय जनगणना के खिलाफ दायर की गई पहली याचिका में कहा गया था कि बिहार सरकार को कोई अधिकार जातीय जनगणना कराने का नहीं है. पहली याचिका में जनगणना अधिनियम 1948 के नियमों का हवाला देते हुए कहा गया है कि किसी भी राज्य सरकार को जनगणना कराने का अधिकार नहीं दिया गया है. साथ ही याचिका में बिहार में हो रही जातीय जनगणना को 'सामाजिक वैमनस्य को भी बढ़ावा देने वाला' बताया गया था और इसे रद्द करने की विनती की गई थी.
बिहार के नालंदा जिले के रहनेवाले याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई अपनी याचिका में कथन किया था कि यह प्रक्रिया सर्वदलीय बैठक में हुए निर्णय के आधार पर शुरू की गई है. जातीय जनगणना बिना विधानसभा से पास कराए करवाया जा रहा है. ऐसे में 6 जून 2022 को बिहार सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना का कोई कानूनी आधार नहीं है.
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क्या हवाला दिया गया था?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता बरुन सिन्हा के जरिए दाखिल गई याचिका में 2017 में अभिराम सिंह मामले में आए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया गया था. याचिका में कथन किया गया था कि उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जातीय और सांप्रदायिक आधार पर वोट मांगा जाना गलत है लेकिन बिहार की सरकार बिहार में राजनीतिक कारणों से जातीय आधार पर समाज को बांटने की कोशिश कर रही है, जिसे रोका जाना चाहिए.
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'पब्लिसिटी याचिका' लग रही है...
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों याचिकाओं को ये कहते हुए खारिज कर दिया या ये याचिकाएं कम बल्कि पब्लिसिटी के लिए दायर की गई याचिकाएं ज्यादा लग रही हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने की सलाह दी है.
7 जनवरी से हो रही है बिहार में जातिगत जनगणना
बता दें कि बिहार की महागठबंधन सरकार ने शनिवार यानि 7 जनवरी से जाति आधारित जनगणना शुरू कर दी है. सीएम नीतीश ने जाति आधारित जनगणना के पीछे हवाला दिया है कि इससे समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए मदद मिलेगी. सीएम नीतीश के इस पहल की बीजेपी ने भी आलोचना की है. बिहार बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष ने नीतीश पर स्वार्थी होने का आरोप लगाते हुए कहा है कि वह जनता से सच बोलें और ये बताएं कि उपजातियों की जनगणना क्यों नहीं कराएंगे? साथ ही उपजातियों का अर्थ भी बताने को कहा है.
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