बिहार से जुड़ा है कश्मीर के आखिरी सुल्तान का रिश्ता, पढ़ें पूरी कहानी
कश्मीर पर यूं तो इस वक्त दुनिया भर में चर्चा हो रही है, मगर हम आपको आज कश्मीर की उन इतिहास की गलियों मे ले जायेंगे
नई दिल्ली:
कश्मीर पर यूं तो इस वक्त दुनिया भर में चर्चा हो रही है. मगर हम आपको आज कश्मीर की उन इतिहास की गलियों मे ले जायेंगे, जिससे जुड़ी है कश्मीर के आखिरी बादशाह की कहानी. किस तरह बादशाह अकबर को कश्मीर से थी बेपनाह मुहब्बत और कैसे जुडा है कश्मीर और बिहार के एक गांव का रिश्ता. जिसका नाम कश्मीर चक. कैसे उस आखिरी सुल्तान के दिन बिहार के उस गांव में गुज़रे जहां वो दफन हैं. उनकी प्रेमिका जो बेगम हुई हब्बा खातून यानी जून के गीत आज भी कश्मीर के घर-घर में गाये जाते हैं. आखरी बादशाह के आखिरी लम्हों की अनोखी दास्तां न्यूज स्टेट पर देखें.
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 80 किलोमीटर दूर बिहार शरीफ जो नालंदा जिले में आता है. वहां से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर इस्लामपुर है. इसी इस्लामपूर के पास है कश्मीरीचक. कुछ महीने पहले जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने भी ट्वीट कर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ध्यान इस और खींचा था. कश्मीरीचक में एक जमाने में कश्मीर से आए सिर्फ मुसलमान रहते थे. इस गांव से कश्मीरीयों का आज भी जुडाव है. जनवरी 1977 में कश्मीर के तत्कालिक मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला यहां चादरपोशी के लिए आये थे. गांव के मुख्य मार्ग पर शेख अब्दुल्ला के नाम का बोर्ड आज भी लगा है.
कश्मीरी चक का इतिहास भारत के शासक अकबर काल से जुडा है. अकबर पूरे भारत के साथ आजाद कश्मीर पर भी अपना सत्ता काबिज करना चाहता था. कश्मीर आज की तरह उस समय भी धरती के जन्नत के रूप में था. हर एक शासक की ख्वाहिश थी वो काश्मीर को अपने शासन का हिस्सा बनाए. अकबर ने भी कश्मीर को भारत के शासन में शामिल करना चाहता था, लेकिन कश्मीर में चक वंश का शासन था जो मुगलों से बिल्कुल अलग थे. आजाद काश्मीर के अपने तौर तरीके थे. अपना झंडा और अपना रुपया था. अकबर कश्मीर को हर हाल में जीतना चाहता था. वो कश्मीर पर मुगल का झंडा देखना चाहता था. लेकिन अड़चन ये थी कि कश्मीर में चक वंश के शासक मजबूती के साथ शासन कर रहे थे. दो बार युद्ध के बाद भी कोशिशें नाकाम रहीं.
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तब 1586 में अकबर ने कश्मीर पर हमला करने की सोची. अकबर ने अपने एक लाख सैनिकों के साथ हमला करने की तैयारी शुरू कर दी थी. इस बात की भनक उस समय कश्मीर के शासक यूसुफ शाह चक को लगी. यूसुफ शाह चक काफी पढ़े और ज्ञानी शासक माने जाते थे. ऐसे में जब उन्होंने अकबर के हमले की बात सुनी तो वो खुद अकबर से मिलने उनकी राजधानी आगरा चले आए. सन्धि के लिए वो भी बिना किसी सैन्य तैयारी के. आगरा में अकबर से मिलने के दौरान ही यूसुफ शाह चक को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें बंगाल प्रांत के सेनापति मान सिंह को सौंप दिया गया. उसके बाद कश्मीर पर मुगलों ने कब्जा कर लिया. यूसुफ शाह चक को बन्दी बना आज के इस वेश्वक गांव मान सिंह ले आये. जहां दो साल ये बन्दी रहे. जिस मस्जिद मरण ये नमाज़ अता करते थे वो आज भी है. इनके पीर की मज़ार भी है.
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बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा उस समय बंगाल प्रांत के हिस्सा थे. जिसके सेनापति मान सिंह थे. बंगाल प्रांत के प्रमुख भी थे. अकबर के वफादार मान सिंह को कश्मीर के शासक यूसुफ शाह चक सौंप दिया गया. जिन्हें मान सिंह ने बेसवक गांव के मिट्टी के जेल में कैद कर दिया था. यूसुफ शाह चक को लगभग दो साल के कैद में रखने के बाद मान सिंह ने ही अकबर से यूसुफ शाह पर रहम करने की बात कही थी. तब अकबर ने यूसुफ शाह चक को रिहा किया था. लेकिन शर्त ये रखी कि यूसुफ शाह चक दुबारा काश्मीर नहीं जाएंगे. वहां मुगल का ही शासन रहेगा. चूंकि यूसुफ शाह चक सुल्तान थे तो उन्हें पांच गांव का रकबा दिया गया. घोड़े दिए गए ...पैसे दिए गए और उन्हे बिहार में रहने की हिदायत दी गई.
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वेश्वक के जेल में दो साल रहने के बाद जब रिहा हुए तो यूसुफ शाह चक ने कश्मीरीचक नगर बसाया था. ये कश्मीरीचक वेसवक गांव के पास में ही है. इसके पास उन्हें पांच गांव का रकबा मिला था. जिसका नाम यूसुफ शाह चक के संबंधियों के ऊपर रखा गया. हैदरचक, शेख अब्दुला, खोरमचक, कासिम चक और मुहदिमपुर का रकबा यूसुफ शाह चक के पास था. आज की तारीख में काश्मीरी चक में एक भी मुसलमान परिवार नहीं रहता है. लेकिन लोग कहते हैं कि कश्मीरीचक के मस्जिद में यूसुफ शाह चक नमाज अता करते थे. यूसुफ शाह चक जब कश्मीरीचक में रहने लगे और अपना रकबे के साथ जीवन यापन करने लगे तो वो अकबर के लिए भी काम करने लगे. तभी तो अकबर की सेना की तरफ से जग्गनाथपुरी में लड़ाई लड़ते हुए मारे गए थे. यूसुफ शाह चक के मारे जाने के बाद उनके एक वफादार ने उनके शव बेसवक लाया. जहां उन्हें दफना दिया गया. इस गांव में उस युग की एक और निशानी एक कुआं भी है. कहते हैं कश्मीरी चक में उस दौर में भी यहीं से पानी जाता था. इस कुआं में सीढ़ियां बनी हैं.
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इन सबके बीच एक खास कहानी यूसुफ और हब्बा की प्रेम कहानी है. कहते हैं हब्बा खातून यानी जून के गीत आज भी कश्मीर की वादियों में गाये जाते हैं. हब्बा खातुन और यूसुफ शाह चक का प्रेम विवाह था. जब यूसुफ कश्मीर के शासक थे तो ये गीत-संगीत से काफी लगाव रखते थे. एक समय जब यूसुफ शाह चक शिकार से लौट रहे थे तो एक महिला की मधुर आवाज सुनी. वो उस आवाज के पीछे गए. जब उस महिला को देखा तो वो बला की सुन्दरी थी. यूसुफ का दिल उस महिला पर आ गया. वो महिला थी जून. जो एक किसान की लड़की थी. वहीं उसकी शादी एक अनपढ़ व्यक्ति अजीज लोन से हुई थी. जिससे वो अलग रहती थी. जब यूसुफ शाह चक को इस सारी बातों का पता चला तो उन्होंने जून के सामने शादी का प्रस्ताव भेजा. जिसे जून ने स्वीकार कर लिया. बाद में वो हब्बा खातुन बनीं जो आजाद कश्मीर की मलिका थी . गांव के पुराने बाशिंदे दीनानाथ पान्डे ने बताया कि कश्मीर के इतिहासकार यहां आते रहे हैं.
कई इतिहासकार ये दावा करते हैं कि जब यूसुफ बिहार आ गए थे तो हब्बा कश्मीर में रही थी और वहां की गलियों में जुदाई के गीत गाया करती थी. कहते हैं आज भी कश्मीर में हब्बा खातुन के गीतों को गाया जाता है. वहीं इतिहासकारों का मानना है कि काश्मीर आस्थावां में हब्बा ने अंतिम सांस लिया था. लेकिन बेसवक के मकबरे में हब्बा खातुन का भी मजार है. बिहार में वक़्फ बोर्ड इसकी बेहतरी में जुटा है. रशाद आज़ाद जो चेयरमेन हैं वक्फ बोर्ड के उन्होंने कहा कि अब हमारी कोशिश इसे और बेहतर रखने की है. अकबर के जिस सेनापति राजा मानसिंह का ये क्षेत्र था, उनके दुर्ग की दीवारें यहां आज भी कश्मीर चक में मौजूद है. कश्मीर के आखिरी राजा को कश्मीर से इसी दुर्ग में लाया गया और फिर कारावास.
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