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बिहार में नहीं चलेगा 50-50 का फॉर्मूला, ज्यादा सीटों पर लड़े जेडीयू- प्रशांत किशोर

प्रशांत किशोर ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मेरे अनुसार लोकसभा चुनाव का फॉर्मूला विधानसभा चुनाव में दोहराया नहीं जा सकता.

Updated on: 30 Dec 2019, 11:37 AM

पटना:

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का जमकर विरोध करने वाले जनता दल-यूनाइटेड (जेडीयू) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार में भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ाने वाला बयान दिया है. किशोर ने कहा कि बिहार में जेडीयू-बीजेपी के बीच 50-50 का फॉर्मूला नहीं चलेगा. उन्होंने कहा कि बिहार में राजग की वरिष्ठ साझीदार होने के नाते उनकी पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की तुलना में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए.

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प्रशांत किशोर ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मेरे अनुसार लोकसभा चुनाव का फॉर्मूला विधानसभा चुनाव में दोहराया नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि जेडीयू बिहार में सीनियर पार्टनर है और आने वाले राज्य के विधानसभा चुनाव में पार्टी को बीजेपी के मुकाबले ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए. बता दें कि दोनों दलों ने इस साल लोकसभा चुनाव में समान संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ा था.

जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने आगे कहा, 'अगर हम 2010 के विधानसभा चुनाव को देखें, जिसमें जेडीयू और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था तो यह अनुपात 1:1.4 था. अगर इसमें इस बार मामूली बदलाव भी हो तो भी यह नहीं हो सकता कि दोनों दल समान सीटों पर चुनाव लड़ें.' किशोर ने कहा, 'जेडीयू अपेक्षाकृत बड़ी पार्टी है जिसके करीब 70 विधायक हैं. जबकि बीजेपी के पास करीब 50 विधायक हैं. इसके अलावा विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार को राजग का चेहरा बनाकर लड़ा जाना है.'

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जेडीयू ने 2015 में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के लिए कुछ सीटें छोड़ी थीं. उसी तरह इस बार के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार द्वारा बीजेपी के पक्ष में कुछ सीटें छोड़ने की बात को भी प्रशांत किशोर ने खारिज किया. उन्होंने कहा, 'दोनों परिस्थितियां अलग-अलग हैं. 2015 के चुनाव के दौरान विधानसभा में जेडीयू के 120 विधायक थे, जबकि आरजेडी के सिर्फ 20 विधायक थे. उस समय नया महागठबंधन था, इसलिए कई चीजें नई शामिल हुई थीं.'

गौरतलब है कि जेडीयू का ये रवैया झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद देखने को मिला है. क्योंकि झारखंड में जेडीयू और आजसू से अलग होकर बीजेपी ने चुनाव लड़ा था और उसका खमियाजा भी भुगतना पड़ा है. कुछ जानकारों का मामना है कि अगर बीजेपी झारखंड में अपनी सहयोगी पार्टियों को साथ लेकर चुनाव लड़ती तो नतीजे कुछ अलग हो सकते थे. इसी के मद्देनजर अब प्रशांत किशोर के बयान को बीजेपी के खिलाफ प्रेशर पॉलिटिक्स के तौर पर देखा जा रहा है.