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बिहार: बाहर फंसे लोगों पर सियासत, तेजस्वी और पीके ने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोला

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और जदयू के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर बोला है.

Updated on: 18 Apr 2020, 06:08 PM

पटना:

बिहार सरकार (Bihar Government) कोरोना संकट के दौर में रोजगार के लिए बाहर गए लोगों को उसी राज्य में हरसंभव मदद देने का दावा कर रही है. मगर कोरोना लॉकडाउन (Lockdown) के दौर में दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को लेकर बिहार का राजनीतिक माहौल गरमाया है. विपक्षी दलों के नेताओं ने बिहार की नीतीश सरकार को निशाने पर ले लिया है. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और जदयू के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर बोला है.

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राजद नेता तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर पूछा है, 'बिहार सरकार आखिरकार अनिर्णय की स्थिति में क्यों हैं? अप्रवासी मजबूर मजदूर वर्ग और छात्रों से इतना बेरुखी भरा व्यवहार क्यों है? विगत कई दिनों से देशभर में फंसे हमारे बिहारी अप्रवासी भाई और छात्र लगातार सरकार से घर वापसी के लिए गुहार लगा रहे हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा कि सरकार के कानों तक जूं भी नहीं रेंग रही. आखिर उनके प्रति असंवेदनशीलता क्यों है?'

तेजस्वी ने पत्र में गुजरात और उत्तर प्रदेश की सरकारों की तारीफ करते हुए लिखा, 'गुजरात, उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्य सरकारें जहां अपने राज्यवासियों के लिए चिंतित दिखी और राज्य के बाहर फंसे हुए लोगों को उनके घरों तक पहुंचाने का इंतजाम किया, वहीं बिहार सरकार ने अपने बाहर फंसे राज्यवासियों को बीच मझधार में बेसहारा छोड़ दिया है.' तेजस्वी ने आरोप लगाया कि इस आपदा से निपटने में बिहार सरकार के दृष्टिकोण में भारी अस्पष्टता दिखाई देती है.

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इसके साथ ही जदयू के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर लिखा, 'देश भर में बिहार के लोग फंसे पड़े हैं और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी लॉकडाउन की मयार्दा का पाठ पढ़ा रहे हैं. स्थानीय सरकारें कुछ कर भी रहीं हैं, लेकिन नीतीश जी ने संबंधित राज्यों से अब तक कोई बात भी नहीं की है. प्रधानमंत्री के साथ बैठक में भी उन्होंने इसकी चर्चा तक नहीं की.'

इधर जदयू के अजय आलोक ने तेजस्वी के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि मानवता, राजधर्म, नैतिकता का पाठ विपदा और आपदा की घड़ी में ऐसे लोग पढ़ा रहे हैं, जिनका इन तीनों शब्द से कभी कोई वास्ता नहीं रहा.

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