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गणितज्ञ डा. वशिष्ठ नारायण सिंह का फाइल फोटो( Photo Credit : Twitter)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरूवार को महान गणितज्ञ डा. वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि उनके जाने से देश ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपनी एक विलक्षण प्रतिभा को खो दिया . मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘ गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह जी के निधन के समाचार से अत्यंत दुख हुआ. उनके जाने से देश ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपनी एक विलक्षण प्रतिभा को खो दिया है. विनम्र श्रद्धांजलि! ’’
गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह जी के निधन के समाचार से अत्यंत दुख हुआ. उनके जाने से देश ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपनी एक विलक्षण प्रतिभा को खो दिया है. विनम्र श्रद्धांजलि!
— Narendra Modi (@narendramodi) November 14, 2019
74 वर्षीय सिंह का लंबी बीमारी के बाद बृहस्पतिवार को पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) में निधन हो गया. बर्कले, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से वर्ष 1969 में गणित में पीएचडी तथा ‘साइकिल वेक्टर स्पेस थ्योरी‘ पर शोध करने वाले सिंह लंबे समय से सिजोफ्रेनिया रोग से पीड़ित थे और पीएमसीएच में उनका इलाज चल रहा था. वाशिंगटन में गणित के प्रोफेसर रहे सिंह वर्ष 1972 में भारत लौट आये थे. उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर और भारतीय सांख्यकीय संस्थान, कलकत्ता में अध्यापन का कार्य किया. वे बिहार के मधेपुरा जिला स्थित भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे थे.
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1973 में वशिष्ठ नारायण की शादी वंदना रानी सिंह से हुई थी तब उनके असामान्य व्यवहार के बारे में लोगों को पता चला. छोटी-छोटी बातों पर काफी गुस्सा करना, कमरा बंद कर दिनभर पढ़ते रहना, रातभर जागना, उनके व्यवहार में शामिल था. इसी बर्ताव के चलते उनकी पत्नी ने जल्द ही उनसे तलाक ले लिया. 1974 में उन्हें पहला दिल का दौरा पड़ा था. 1987 में वशिष्ठ नारायण अपने गांव लौट गए थे.
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अगस्त 1989 को रांची में इलाज कराकर उनके भाई उन्हें बेंगलुरु ले जा रहे थे. रास्ते में खंडवा स्टेशन पर उतर गए और भीड़ में कहीं खो गए. करीब 5 साल तक गुमनाम रहने के बाद उनके गांव के लोगों को वे छपरा में मिले. इसके बाद राज्य सरकार ने उनकी सुध ली. उन्हें विमहांस बेंगलुरु इलाज के लिए भेजा गया. जहां मार्च 1993 से जून 1997 तक इलाज चला. इसके बाद से वे गांव में ही रह रहे थे.
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तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री शत्रुध्न सिन्हा ने इस बीच उनकी सुध ली थी. स्थिति ठीक नहीं होने पर उन्हे 4 सितंबर 2002 को मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया. करीब एक साल दो महीने उनका इलाज चला. स्वास्थ्य में लाभ देखते हुए उन्हें यहां से छुट्टी दे दी गई थी.