कभी देखी है ऐसी शादी जहां मंत्रों की जगह पढ़ी गई संविधान की प्रस्तावना

देश में 17 जून को एक ऐसी ही शादी देखने को मिली जिसका आधार संविधान था.

देश में 17 जून को एक ऐसी ही शादी देखने को मिली जिसका आधार संविधान था.

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yogesh bhadauriya
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कभी देखी है ऐसी शादी जहां मंत्रों की जगह पढ़ी गई संविधान की प्रस्तावना

शादी में पढ़ी गई संविधान की प्रस्तावना

संविधान और तिरंगा राष्ट्र और राष्ट्रीयता का प्रतीक मगर कोई जोड़ा इसे अपने वैवाहिक जीवन और विवाह का हिस्सा बनाये तो फिर ये हर पीढ़ी के लिये एक अनोखा सन्देश दे जाता है. देश में 17 जून को एक ऐसी ही शादी देखने को मिली जिसका आधार संविधान था. हमेशा शादी समारोह में विवाहित जोड़े सात वचन लेकर एक-दूसरे का साथ निभाने की कसमें खाते हैं, लेकिन पटना की युवती सुगंधा मुंसी ने शादी में सात वचन के बदले संविधान की प्रस्तावना में वर्णित शब्दों के साथ समानता, नैतिकता और अभिव्यक्ति की आजादी की शपथ ली है.

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बिहार की राजधानी पटना स्थित अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान में जेंडर विशेषज्ञ सुगंधा ने 17 जून को मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा के गिरीश महाले के साथ शादी की. शादी ऐसी जिसमे ना कन्या दान और ना विदाई. संविधान के शपथ और दो परिवारों के बीच विदाई के बजाय मिलाप की ररस्म हुई. शादी मप्र की पंचमढ़ी में हुई. गिरीश ने आईआईटी खड़गपुर से पढ़ाई की है और आईबीएम की नौकरी छोड़ शिक्षा वैज्ञानिक के रूप में काम कर रहे हैं. शादी पहले मराठी तथा बाद में बिहारी रीति-रिवाज से हुई. एक अनोखी शादी जिसमे राष्ट्र की प्रमुखता ..गिफ्ट के तौर पर बच्चों ने राष्ट्रीय ध्वज बुजुर्गों को दिया यानी हमें आप एक बेहतर राष्ट्र दे कर जायें और बुजुर्गों ने संविधान की उद्देशिका उपहार स्वरूप भेंट की.

सुगंधा और गिरीश ने विवाह के दौरान संविधान की प्रस्तावना की कसमें खाईं. बताया गया कि शादी में संविधान की प्रस्तावना की बात सुन शुरू-शुरू में घर के लोग थोडे परेशान तो हुए लेकिन बाद में उन्हें भी ये अच्छा लगा. पटना के कंकड़बाग निवासी आशा रानी और जवाहर लाल मुंसी अपनी पुत्री सुगंधा की गिरीश से इस शादी से खुश हैं. उनका कहना है कि ये शादी महज़ एक शादी नहीं बल्कि एक नए भारत के निर्माण का संकेत है. जरुरत इस परम्परा को अपनाने की है जहां हम राष्ट्रीयता की बातों को.अपने जीवन में आत्मसात करते हैं.

Source : Rajnish

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