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News State Explainer: अतीक अहमद 'शहीद'  कैसे, खाकी पर सवाल कितना जायज?

लोग ये बात क्यों भूल जा रहे हैं कि दो खाकीधारी भी उमेश पाल के साथ हताहत हुए थे.

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Shailendra Shukla
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अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस कस्टडी में हत्या कर दी गई थी( Photo Credit : न्यूज स्टेट बिहार झारखंड)

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उत्तर प्रदेश के कुख्यात माफिया से माननीय बने अतीक अहमद की हत्या के बाद से लगातार सोशल मीडिया पर  ज्ञान उड़लने वालों का सैलाब सा आ गया है. कुछ अतीक अहमद की हत्या को सही बता रहे हैं तो कुछ गलत. यूपी की योगी सरकार पर अतीक अहमद की हत्या के बाद से लगातार उंगलियां उठ रहे हैं. जहां राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सक्रिय हो चुका है तो वहीं उत्तर प्रदेश पुलिस की जमकर किरकिरी हो रही है. सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं. सवाल उठने भी चाहिए. न्यायिक अभिरक्षा में अतीक अहमद की क्या अगर चींटी की भी हत्या हो तो भी सरकार और पुलिस की जवाबदेही होती है. एक अपराधी के नाते अतीक अहमद के साथ किसी भी प्रकार की सहानुभूति रखना निश्चित तौर पर समझ के परे है. क्योंकि ये वही माननीय और तत्कालीन सांसद अतीक अहमद ही थे जिन्होंने विधायक बनने के बाद पूर्व विधायक की हत्या कर डाली थी. बसपा विधायक राजू पाल की हत्या कर डाली थी. राजू पाल की हत्या उनकी शादी के महज 9 दिनों के बाद ही कर दी गई थी. राजू पाल की गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने अतीक समर्थित कैंडिडेट को चुनाव में हरा दिया था.

कोई भी अंतर नहीं!

अब अतीक अहमद की हत्या के बाद लोग अपने अपने विचार रख रहे हैं. अब बड़ा सवाल ये उठता है कि अतीक अहमद की हत्या के बाद इतना हाहाकार क्यों मचा है? उमेश पाल की भी हत्या की गई थी. अतीक और उमेश दोनों की हत्याओं में कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है. तरीका वही था बस किरदार बदलते गए. उमेश पाल की हत्या अतीक के बेटे अशद व उसके साथियों द्वारा की गई और अतीक अहमद की हत्या भी बदमाशों द्वारा की गई. जहां, उमेश पाल के साथ उनकी सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी अपना फर्ज निभाते हुए शहीद होते हैं तो वहीं तीन बदमाशों द्वारा अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का काम तमाम कर दिया जाता है. उमेश पाल भी पुलिस की सुरक्षा में और अतीक व अशरफ भी पुलिस की ही सुरक्षा में थे. दोनों ही मामलों में बदमाशों ने अपना काम किया तो हंगामा क्यों बरप रहा है? और दोनों ही मामलों में पुलिस पर सवाल क्यों उठ रहे हैं? लोग ये बात क्यों भूल जा रहे हैं कि दो खाकीधारी भी उमेश पाल के साथ हताहत हुए थे.

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अतीक के हत्यारों को पुलिस मार देती तो?

कुछ लोग ये भी सवाल खड़े कर रहे हैं कि अतीक और अशरफ की हत्या के दौरान तीनों हत्यारोपियों द्वारा कई राउंड फायरिंग की गई थी. पुलिस ने एक भी गोली हत्यारों पर नहीं चलाई. अगर पुलिस हत्यारोपियों को शूटआउट के दौरान मार देती तो भी सवाल उठता कि अगर पुलिस हत्यारोपियों से पूछताछ करती तो कई राज उगलते. अतीक अशरफ की हत्या के लिए उन्हें किसने कहा, किसने सुपारी आदि दी वो सारे राज दफन हो जाते. अब जब पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया है तो भी पुलिस पर ही सवाल उठ रहे हैं कि आखिर बदमाशों को मौके पर ही पुलिस ने क्यों नहीं ढेर कर दिया? कुल मिलाकर खाकी पर ही सवालों की बौछार हो रही है. खाकी कुछ करे तो भी जवाब देना पड़ता है उसे, ना करे... तो भी उसे जवाब देना पड़ता है. कुछ मान रहे हैं कि बुलेट का जवाब बुलेट होना चाहिए था.. कुछ मान रहे हैं कि बुलेट का जवाब बुलेट नहीं होता... और इन सबके बीच में अगर कोई सबसे ज्यादा पिस रहा है तो वह है खाकी.

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अतीक अहमद शहीद कैसे?

इस हिसाब से देखा जाए तो उमेश पाल की दिन-दहाड़े हत्या करके अतीक एंड कंपनी के द्वारा ही कानून व सरकार को खुली चुनौती दी गई थी. उमेश पाल की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी भी किसी के भाई, किसी के बेटे थे उन्हें तो कोई शहादत का दर्जा नहीं दे रहा है. ना ही उन्हें सरकार से कोई विशेष मदद मिलने वाली है. उमेश पाल की सुरक्षा में शहीद हुए पुलिसकर्मियों को बस वहीं चीजें मिलेंगी जो नियमानुसार यूपी पुलिस के मुताबिक होंगी. लेकिन बिहार की राजधानी पटना में पटना जंक्शन स्थित जामा मस्जिद के बाहर जुम्मे की नमाज पढ़ने के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने केंद्र की मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश के योगी सरकार के खिलाफ नारे लगाए. नारे लगाते हुए लोगों ने अतीक अहमद अमर रहे, शहीद अतीक अहमद का नारा लगाया गया. बता दें कि रमजान महीने अंतिम दिन अलविदा की नमाज अदा की गई.

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यह पूरा मामला पटना स्टेशन के पास स्थित जामा मस्जिद के सामने का बताया जा रहा है. यहां रोजेदार रमजान महीने के अलविदा की नमाज पढ़ने के लिए पहुंचे थे. जहां नमाज के बाद सभी ने अतीक अहमद अमर रहें के नारे लगाना शुरू कर दिया. इसके साथ ही उनके समर्थन में यह भी कहा कि अतीक अहमद और अशरफ की शहादत हुई है, दोनों को योजना के तहत मारा गया है. नारेबाजी करने वाले रईस गजनबी ने कहा कि सरकारी संरक्षण में अपराधियों ने अतीक अहमद और उनके भाई की हत्या कर दी और आज अलविदा की नमाज के दौरान उन लोगों ने खुदा से दुआ की कि अतीक अहमद की शहादत को कुबूल किया जाए. रईस गजनबी ने कहा कि वह अभी भी अपने बयान पर कायम है. अतीक अहमद के साथ समाजवादी पार्टी ने भी नाइंसाफी की. हालांकि, मस्जिद के ईमाम द्वारा ये कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि बिहार के सीएम बहुत अच्छे हैं उनके जैसा सीएम पूरे भारत में कोई नहीं है. अतीक अहमद का मामला यूपी का है, उसके बारे में वहां के लोग जाने, वहां की पुलिस जाने, बिहार से उसका कोई लेना देना नहीं है.

सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि अतीक अहमद के समर्थन में महाराष्ट्र में भी पोस्टरबाजी की गई थी. महाराष्ट्र के बीड में भी अतीक अहमद के समर्थन में पोस्टर लगाया गया था. जिसके बाद इस विवादित पोस्टर के मामले में एक्शन लेते हुए चार लोगों के खिलाफ केस दर्ज करते हुए गिरफ्तार किया गया था. पोस्टर में अतीक और उनके बेटे अशरफ को शहीद बताया गया था.

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ऐसे में ये समझ नहीं आता कि आखिर सैकड़ों गुनाह करने वाला अतीक अहमद ने ऐसा क्या किया था जो उसे शहीद बताया जा रहा है? दूसरी तरफ उमेश पाल की सुरक्षा में अपनी फर्ज की खातिर कुर्बान होनेवाले पुलिसकर्मियों ने ऐसा कौन सा गुनाह किया था उनका कोई जिक्र तक नहीं कर रहा है. पहले उमेश पाल की हत्या का जिक्र होता रहा और अब अतीक अहमद की हत्या का जिक्र हो रहा है.

खाकी को हासिये पर क्यों रखा जाता है?

उमेश पाल की हत्या हो या अतीक अहमद की हत्या दोनों ही मामलों में खाकी को हासिए पर रखा गया है. उमेश पाल की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों के लिए ना तो किसी ने आंसू बहाए, ना तो किसी ने उन्हें शहीद बताया और ना ही उनके नाम का कोई जिक्र किया गया. ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि वो खाकी पहनते थे. यानि कि पुलिसकर्मी थी. उमेश पाल हत्याकांड मामले में खाकी को हासिए पर बिना किसी ठोस कारणों के 9-9 पुलिसकर्मियों को दंडित करते हुए उनका तबादला दूसरी जगहों पर कर दिया जाता हैं. पुलिसकर्मियों में सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर रैंक तक के पुलिसकर्मी शामिल थी.

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उमेश पाल की सुरक्षा में तैनात राघवेंद्र की भी मौत गोली लगने की वजह से इलाज के दौरान हुई थी

अब बात करते हैं अतीक अहमद और अशरफ अहमद के मामले की. पुलिस सुरक्षा में दोनों को अस्पताल ले जाया जा रहा था, मीडिया भी मौजूद थी और बदमाशों ने अपना काम कर दिया. महज 12 सेकंड के अंदर बदमाशों ने अतीक और अशरफ की हत्या कर दी और सरेंडर कर दिया. पुलिस ने दोनों को मौके से ही हिरासत में ले लिया. अब इसमें भी अतीक अहमद और अशरफ को लेकर जो भी पुलिसकर्मी अस्पताल जा रहे थे, उन सभी को सस्सपेंड कर दिया गया है. यानि कि यहां भी खाकी को हासिये पर धकेल दिया गया. 

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उमेश पाल की सुरक्षा में तैनात संदीप निषाद की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी

आखिर पुलिस करे तो करे क्या?

उमेश पाल की हत्या करने वाले अतीक के बेटे असद अहमद और उसके साथी शूटर मोहम्मद गुलाम को झांसी में यूपी पुलिस मार गिराती है. दोनों के एनकाउंटर के बाद खाकी पर फिर सवाल उठे. कुछ ने एनकाउंटर को फेंक बताया तो कुछ ने दोनों की हत्या किए जाने की बात कही. कुछ ने कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाया तो कुछ ने सरकार और पुलिस का समर्थन किया. जहां, उमेश पाल की हत्या के बाद कई पुलिसकर्मियों पर गाज गिरती है तो वहीं अतीक अहमद और अशरफ अहमद की हत्या के बाद भी अगर गाज किसी पर गिरती है तो पुलिसकर्मियों पर ही. हर हाल में पुलिस ही 'मारी' जाती है. आरोपी फरार चल रहा होता है.. तो पुलिस पर सवाल खड़े होते हैं. अपराधी का एनकाउंटर हो जाता है... तो पुलिस पर सवाल खड़े होते हैं.. अपराधी को जिंदा कोर्ट में पेश किया जाता है तो आम लोग ही दबी जुबान में ये कहते हुए सुने जाते हैं कि अपराधी को मार देना था.

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अतीक अहमद और अशरफ की हत्या के तीनों आरोपी

अब पुलिस किसकी माने? दूसरी तरफ, स्वायत्व संस्थाओं से लेकर कोर्ट तक, या फिर कहा जाए लोकतंत्र के चारो स्तम्भ अगर किसी से सवालों का जवाब मांगते हैं तो वह है पुलिस से. पुलिस के लिए कोई भी संस्था सामने आकर नहीं खड़ी होती. अतीक अहमद के मामले में एनएचआरसी एक्टिव हो चुका है. यूपी सरकार को नोटिस भी जारी कर चुकी है लेकिन उमेश पाल की सुरक्षा के दौरान शहीद हुए पुलिसकर्मियों के लिए कोई भी स्वायत्व संस्था, संस्थान यहां तक कि खुद पुलिस महकमा अभी तक एक्टिव नहीं हुआ है. ज्यादा से ज्यादा कागजी खानापूर्ति की गई होगी और बहुत ज्यादा एफआईआर दर्ज की गई होगी. ऐसे में सवाल ये उठता है कि हर हाल में खाकी पर ही सवाल उठता है, समर्थन करने वाले कम और आलोचना करने वाले ज्यादा रहते हैं. 

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खाकी दस अच्छे काम करे लेकिन उसे तवज्जों नहीं दिया जाता और गलती से गलत काम कर दे तो उसकी आलोचना शुरू हो जाती है. खाकीधारी ड्यूटी पर मरता है तो उसके लिए रोनेवाला कोई नहीं है. आए दिन पता नहीं कितने पुलिसकर्मी अपनी फर्जी को निभाते हुए देश के तमाम हिस्सों में शहीद हो जाते हैं लेकिन उनके लिए आंसू बहाने वाला कोई नहीं होता, सिवाय उनके परिवार के. वहीं, दूसरी तरफ जब अतीक अहमद जैसे दुर्दांत अपराधी की हत्या होती है तो तमाम लोग, संस्थाएं, व्यक्ति विशेष, राजनेता सामने आकर आलोचना शुरू कर देते हैं, चाहे पुलिस की गलती हो या ना हो. अतीक अहमद कांड में पुलिस की आखिर गलती क्या था? पुलिस उसे लेकर अस्पताल जा रही थी. जो भी हुआ अचानक हुआ. अतीक और अशरफ के हत्यारों को पुलिस ने गिरफ्तार किया और आगे की कार्रवाई चल रही है. अतीह अहमद व अशरफ की हत्या से अगर पुलिस पर सवाल खड़े हुए हैं तो उमेश पाल की हत्या में खाकी की भी शहादत हुई है. सवाल फिर से वही खड़ा होता है कि अतीक अहमद 'शहीद' कैसे? और उमेश पाल के ड्यूटी पर अपनी जिंदगी कुर्बान करनेवाले को क्या कहकर संबोधित करेंगे?

HIGHLIGHTS

  • हर बार खाकी पर ही क्यों उठाया जाता है सवाल?
  • क्या पुलिसकर्मियों के लिए नहीं लागू होता मानवाधिकार?
  • हर बार खाकी ही क्यों धकेली जाती है हासिये पर?
  • अपराधी को शहीद बताकर क्यों किया जा रहा शहीद शब्द का अपमान?

Source : Shailendra Kumar Shukla

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