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नेशनल हेराल्ड केस: सोनिया गांधी-राहुल गांधी से ED की पूछताछ पर हंगामा क्यों ? पढ़ें पूरी खबर

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने गुरुवार को पूछताछ की. पूछताछ के बीच में ही सोनिया गांधी ने अपने खराब सेहत का हवाला देते हुए बचे हुए सवाल किसी और दिन पूछने के लिए कहा.

Updated on: 23 Jul 2022, 06:15 PM

Patna:

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने गुरुवार को पूछताछ की. पूछताछ के बीच में ही सोनिया गांधी ने अपने खराब सेहत का हवाला देते हुए बचे हुए सवाल किसी और दिन पूछने के लिए कहा. ईडी ने भी सोनिया गांधी के निवेदन को स्वीकार कर लिया. एक तरफ सोनिया गांधी ईडी के सवालों का जवाब दे रहे थी. मीडिया के सामने उन्होंने ईडी समन को लेकर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन दूसरी तरफ उनकी पार्टी यानि कांग्रेस देशव्यापी प्रदर्शन सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ को लेकर कर रही है. देश के लगभग सभी शहर सभी जिले में कांग्रेस ने प्रदर्शन किया और मोदी सरकार पर ईडी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया. दरअसल सोनिया गांधी से ईडी ने नेशनल हेराल्ड केस में पूछाताछ की. अभी भी कई सवालों के जवाब ईडी को नहीं मिले है.

90 करोड़ का घोटाला और 50 लाख में रफा-दफा
मामला 90 करोड़ के घोटाले का है. घोटाले की नीव 2010 में रखी जाती है, और 90 करोड़ के घोटाले को मात्र 50 लाख सरकार के खाते में डालकर रफा दफा कर दिया जाता है. 2010 का दौर यूपीए के दूसरे चरण की सरकार का था. एक तरफ ईडी सोनिया गांधी से पूछताछ करना चाहती है और कई अनसुलझे सवालों के जवाब जानना चाहती है तो दूसरी तरफ जैसे ही सोनिया गांधी या राहुल गांधी से कोई भी केंद्रीय एजेंसी पूछताछ करने के लिए समन भेजती है तो कांग्रेस देशव्यापी प्रदर्शन शुरू कर देती है.

देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी नेशनल हेराल्ड अखबार की नीव
पहले राहुल गांधी और अब सोनिया गांधी से ईडी ने पूछाताछ की. दरअसल दोनों से ईडी ने चर्चित नेशनल हेराल्ड केस के सिलसिले में पूछताछ की. मामला नेशनल हेराल्ड अखबार से जुड़ा है. देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने 1938 में नेशनल हेराल्ड अखबार की नींव रखी. अखबार में मुख्‍य तौर पर नेहरू के लेख छपते थे.

1942 में अंग्रेजी हुकूमत ने अखबार के प्रकाशन पर लगा दिया था बैन
कहा जाता है कि इस अखबार से अंग्रेजी हुकूमत इतनी भयभीत हो गई थी कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. तब नेशनल हेराल्ड अखबार का मालिकाना हक एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड यानी एजेएल के पास था. उस समय कंपनी दो और अखबार छापा करती थी, जिसमें हिंदी समाचार पत्र नवजीवन और उर्दू समाचार पत्र कौमी आवाज शामिल था. 

कंपनी पर हो गया 90 करोड़ का लोन
साल 1956 में एजेएल को गैर व्यावसायिक कंपनी के तौर पर स्थापित किया गया और इसके साथ ही इसे कंपनी एक्ट की धारा 25 से कर मुक्‍त कर दिया गया. बावजूद इसके धीरे-धीरे कंपनी घाटे में चली गई और देखते ही देखते कंपनी पर 90 करोड़ का कर्ज यानी लोन भी चढ़ गया. समय बीतता गया, वर्ष बीते, यहां तक कि दशक बीते और फिर कांग्रेस की मौजूदा अंतिरम अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को नेशनल हेराल्ड की याद आई, और यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में यानि साल 2010 में यंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के नाम से एक दूसरी कंपनी बनाई गई. 

सोनिया गांधी राहुल गांधी के 38-38 फीसदी शेयर
इस कंपनी में 38-38 प्रतिशत शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी को मिला. कंपनी के बाकी 24 फीसदी के हिस्सेदारों में मोतीलाल बोरा और ऑस्कर फर्नांडिस का नाम शामिल किया जाता है. कांग्रेस पार्टी ने अपना 90 करोड़ का लोन नई कंपनी यानी यंग इंडिया को ट्रांसफर कर दिया. वहीं, दूसरी तरफ लोन चुकाने में असमर्थ द एसोसिएट जर्नल ने सारे शेयर यंग इंडियन को ट्रांसफर कर दिए, और इसके बाद तैयार हुआ 90 करोड़ के लोन को भरने का खाका. 

50 लाख में 90 करोड़ के लोन को किया रफा-दफा
द एसोसिएट जर्नल को उसके शेयर्स के बदले उसे यंग इंडिया यानि सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कंपनी ने सिर्फ 50 लाख रुपये दिए. बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कोर्ट में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि यंग इंडिया प्राइवेट ने सिर्फ 50 लाख रुपये में 90 करोड़ वसूलने का उपाय निकाला जो नियमों के खिलाफ है.

संक्षिप्त में जानें नेशनल हेराल्ड घोटाले से जुड़ी सारी जानकारी
1938 में नेशनल हेराल्ड अखबार की नींव रखी गई
देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी अखबार की नींव
पहले नेशनल हेराल्ड अखबार का मालिकाना हक एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड  के पास था
कंपनी पहले दो भाषा में अखबार छापती थी
हिंदी में 'नवजीवन' और उर्दू में 'कौमी आवाज' अखबार का होता था प्रकाशन
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय अंग्रेजी हुकूमत ने अखबार छपने पर लगा दी थी रोक
1956 में एजेएल को गैर व्यावसायिक कंपनी के तौर पर स्थापित किया गया
156 में एजेएल को कंपनी एक्ट की धारा 25 से कर मुक्‍त कर दिया गया
धीरे-धीरे कर्ज में डूबती गई एजेएल कंपनी
90 करोड़ रुपए के लोन में भी डूब गई कंपनी
2010 में यंग इंडिया कंपनी का निर्माण किया गया
यंग इंडिया कंपनी में सोनिया गांधी-राहुल गांधी के 38-38 फीसदी शेयर हैं
कांग्रेस ने अपना 90 करोड़ का लोन यंग इंडिया कम्पनी को ट्रांसफर
लोन चुकाने में असमर्थ 'द एसोसिएट जर्नल' ने सारे शेयर यंग इंडियन को ट्रांसफर किये
द एसोसिएट जर्नल' को उसके शेयर्स के बदले 50 लाख यंग इंडिया कंपनी ने दिये
90 करोड़ का लोन भरने की जगह 50 लाख देकर कंपनी का मालिक बनना सोनिया-राहुल के गले की फांस बना

सोनिया गांधी से ईडी को चाहिए इन सवालों के जवाब
सोनिया गांधी ने यंग इंडिया प्राइवेट में 38 फीसदी शेयर क्‍यों लिए?
एजेएल की रिपोर्ट के संदर्भ लोन का जिक्र क्‍यों नहीं किया गया है?
यंग इंडिया की ओर से एजेएल को अनसिक्‍योर्ड लोन देने की क्‍या वजह थी?
जब एजेएल का अधिग्रहण हुआ तो क्‍या उससे पहले नियमों के अनुसार शेयरधारकों की बैठक हुई?
एजेएल ने रकम कांग्रेस को क्‍यों नहीं दिखाई, उस पर कितने करोड़ की देनदारी थी?
यंग इंडिया ने एजेएल को शेयर पेमेंट कैसे दिया, इसका क्‍या तरीका था?
वह यंग इंडिया प्राइवेट की डायरेक्‍टर क्‍यों बनीं?
मोतीलाल वोरा और ऑस्‍कर फर्नांडिस को जो बाकी के शेयर ट्रांसफर हुए, उसके पीछे क्‍या कारण था?
अगर यंग इंडिया एक धर्मार्थ संगठन है तो उसका डोनेशन में योगदान क्‍यों नहीं है, उसका असल काम क्‍या है?

क्या कहता है कंपनी अधिनियम
यंग इंडिया लिमिटेड पर घोटाले का आरोप है और खासकर ऐसी कंपनी के शेयर 50 लाख में खरीदें हैं जिस पर 90 करोड़ का लोन हो, यानि एजेएल. किसी भी कंपनी के शेयर्स खरीदने से पहले नया निवेशन उस कंपनी की सारी लाइबिलिटीज के बारे में जरूर जानता है. यहां तक कि बोर्ड ऑफ रिजुलेशन, बोर्ड ऑफर डॉयरेक्टर्स की बैठक होती है. इसके अलावा और भी तमाम तरह के फार्मेलिटीज नए शेयर होल्डर को या नई कंपनी जो पुरानी कंपनी को टेकओवर करने जा रही होती है. उसे पूरे करने होते हैं. 

इन फार्मेलिटीज में कंपनी की देनदारी भी शामिल होती है. ऐसे में एजीएल के शेयर्स के बदले 50 लाख उसे और यंग इंडिया लिमिटेड द्वारा दिया जाता है जबकि उसकी देनदारी यानि लोन ही 90 करोड़ रहता है. ऐसे में एजीएल को कहीं न कहीं यंग इंडिया द्वारा नियमों को ताक पर रखकर टेकओवर किया गया है और 90 करोड़ जो लोन राशि थी उस गर्त में डाल दिया गया यानि सीधे-सीधे देश को 90 करोड़ का चूना लगाया गया जिसका यंग इंडिया के निर्माण से लेकर आज की तिथि में ब्याज-ब्याज अगर भारतीय डॉक के हिसाब से भी लगाए तो लगभग 350 करोड़ यानि 7 साल में भी डबल होने के हिसाब से आज 12 वर्ष यंग इंडिया कंपनी को स्थापित हुए हो गए हैं और 7 वर्षों में 90 करोड़ से 180 करोड़ और अगले सात वर्षों में यानि 2024 तक यह राशि 360 करोड़ रुपए होती और यह राशि दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती। अब यही सोनिया गांधी और राहुल गांधी की गले की फांस बना हुआ है.

क्या कहता है कानून
कानूनन सोनिया गांधी और राहुल गांधी यंग इंडिया के 38-38 फीसदी शेयर्स होल्डर हैं यानि डॉयरेक्टर हैं यानि कंपनी के समस्त मामलों के जिम्मेदार मुख्य रूप से यही मां बेटे हैं। अब अगर 90 करोड़ रुपए का आर्थिक अपराध हुआ है और कंपनी अधिनियमों की अनदेखी की गई है तो इस मामले की जांच करने के लिए इस समय देश में अगर कोई शीर्ष एजेंसी हैं तो वह है प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी। इस मामले में अगर पूछताछ के लिए या ट्रायल फेस करने की नौबत आती है तो सबसे ज्यादा सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ही ट्रायल फेस करना पड़ेगा।

क्या कानून से बड़ा है कोई?
अब ऐसे में अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी पूछताछ कर रही है या उन्हें समन भेज रही है तो उसे दूसरे रूप में क्यों देखा जा रहा है? ऐसा भी नहीं है कि सोनिया गांधी या राहुल गांधी से ही ईडी ने सिर्फ पूछताछ की है. दूसरी भी राजनीतिक पार्टियों, अधिकारियों, नेताओं से ईडी आए दिन पूछताछ करती रहती है. ऐसे में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ करने पर कांग्रेसियों का सड़क पर आना कितना जायज है?

आरोपी से ही की जाती है पूछताछ
अच्छा होगा इंटेरोगेशन या इन्वेस्टीगेशन को राजनीतिक चश्में से न देखा जाए. सम्मन भेजने पर अगर सोनिया गांधी या राहुल गांधी पूछताछ के लिए नहीं आते तो उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी होता और फिर उन्हें ईडी गिरफ्तार करने के लिए जाती. सम्मन भेजने का मतलब ही यही होता है कि आपसे सवाल जवाब किए जाएंगे यानि आपकी गिरफ्तारी नहीं की जाएगी, लेकिन जरूरत पड़ती है तो आपको गिरफ्तार भी किया जाएगा लेकिन उससे पहले गिरफ्तारी के आधिपत्र (Arrest Warrant) पर आपके दस्तखत लिए जाएंगे. ऐसे में कांग्रेस का सड़क पर हंगामा करना गलत है. कांग्रेस को यह समझना होगा कि 90 करोड़ का घोटाला हुआ है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी आरोपी हैं लिहाजा एजेंसी उनसे पूछताछ करने के लिए स्वतंत्र है. कुल मिलाकर आरोपी से ही मुख्य रूप से सवाल जवाब यानि पूछताछ की जाती है. 

ईडी से असंतुष्ट तो सुप्रीम कोर्ट का कर सकते हैं रुख
ईडी जैसी एजेंसी या केंद्र सरकार पर तमाम आरोप लगाने की बजाय कांग्रेस अगर लीगल रेमेडीज का इस्तेमाल करे तो बेहतर हो सकता है. अगर लगता है कि सोनिया गांधी या राहुल गांधी को नीचा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है तो कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट में यह प्रार्थना कर सकती है कि बयान ईडी के कार्यालय में न लिए जाएं बल्कि न्यायिक अधिकारी के सामने लिये जाएं. बार-बार सम्मन भेजकर मानसिक रूप से न प्रताड़ित किए जाए. ईडी अपने सवाल जरिए अदालत रखे और उसका लिखित जवाब सोनिया गांधी और राहुल गांधी अपने अधिवक्ता के माध्यम से या फिर खुद व्यक्तिगत रूप से पेश होकर दें. कांग्रेस सोनिया गांधी और राहुल गांधी के ईडी के समक्ष व्यक्तिगत पेशी से भी छूट मांग सकती है और ईडी के सवालों का जवाब जरिए अधिवक्ता भी दी जा सकती है. 

सड़क पर हंगामा करना जरूरी या मजबूरी?
राहुल गांधी से जब ईडी ने पूछताछ की तो लगातार दो-तीन दिन तक कांग्रेस सड़क पर रही. कांग्रेस के टॉप लीडर्स ने अपनी गिरफ्तारियों दी. अब सोनिया गांधी से पूछताछ पर भी कुछ ऐसा ही माहौल बनाया जा रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब दूसरी पार्टी के नेताओं से, अफसरों से यहां तक कि कांग्रेस के ही किसी छोटे नेता पर ईडी शिकंजा कसती है तो वहीं कांग्रेस के शीर्ष लीडर्स सड़क पर क्यों नहीं आते? कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के शीर्ष लीडर्स ऐसा करके सिर्फ नंबर बढ़वाने का काम करते हैं क्योंकि उन्हें अच्छी तरह पता रहता है कि प्रदर्शन करने पर जेल नहीं भेजा जा सकता. सिर्फ अस्थाई जेल में रखा जा सकता और शाम तक रिहा कर दिया जाता है.