Bihar Political Kisse: नए वक्फ कानून के कारण बिहार में अल्पसंख्यक मतों को लेकर रस्साकशी जारी है. दरअसल, प्रदेश में पिछले 35 वर्षों से अल्पसंख्य वोटों का समर्थन लालू प्रसाद यादव और उनके साथ गठबंधन में शामिल दलों की ओर ही रहा है. लालू यादव ने यादव और मुस्लिम वोटों का एक ऐसा फॉर्मूला बनाया है, जिसकी मदद से लालू 15 वर्षों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं. खास बात है कि भाजपा के साथ गठबंधन में होने के बावजूद कुछ मुस्लिम वोट नीतीश कुमार को भी मिलता है. हालांकि, कहानी इस बार थोड़ी अलग है.
इस विधानसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस के साथ-साथ जनसुराज पार्टी भी मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है. वहीं, पिछली बार बिहार की पांच सीटें जीतने वाली एआईएमआईएम भी अपना पूरा जोर लगाएगी.
लालू से पहले किसे वोट देते थे मुस्लिम
साल 1990 से पहले मुस्लिमों का वोट बिहार में एकतरफा कांग्रेस को जाता था. लालू यादव ने इसमें सेंध लगाई और वे इसमें सफल भी हो गए. इसके बाद, कांग्रेस और राजद ने जब-जब गठबंधन में चुनाव लड़ा, तब-तब मुस्लिम वोट्स कांग्रेस को मिले हैं. मजे की बात है कि मुस्लिम वोट पाने के लिए किसी भी दल ने मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने का शगुफा नहीं छोड़ा. खास बात है कि मुस्लिमों ने भी कभी भी मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग नहीं की.
बिहार में कभी कोई मुस्लिम मुख्यमंत्री रहा
इतिहास में अब तक सिर्फ एक बार ही बिहार को मुस्लिम मुख्यमंत्री मिला है. वह भी इंदिरा गांधी के समय में. इस मुस्लिम मुख्यमंत्री का नाम- अब्दुल गफूर है. वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे हैं. इंदिरा गांधी ने उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया था.
गफूर का ताल्लुक एक सामान्य परिवार से था. हालांकि, उनकी पहुंच बिहार के उस वक्त के पहली पंक्ति के नेताओं तक थी. गफूर खुद और उनके अधिकांश साथी नेता स्वतंत्रता आंदोलन से ही उभरे थे.
समता पार्टी का गठन हुआ
बता दें, जिस मुस्लिम शख्स को कांग्रेस ने बिहार की कमान सौंपी, उसने आगे चलकर कांग्रेस से इस्तीफा दिया और कांग्रेस को टक्कर देने वाली समता पार्टी का गठन किया. समता पार्टी के गठन में गफूर की खास भूमिका रही है. कांग्रेस छोड़ने का कारण गफूर बताते थे कि पार्टी में उनकी अपेक्षा की जाती है. समता पार्टी ही बाद में जनता दल यूनाइटेड बनी, जिसके मुखिया नीतीश कुमार हैं.
इस बार का चुनाव होगा मजेदार
अब वर्तमान चुनाव की बात करें तो लालू की पार्टी राजद और प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज दोनों ही नए वक्फ कानूनों का विरोध कर रही हैं. दोनों ही दलों ने इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन बताया है. इस बार का चुनाव मजेदार होने वाला है. अब प्रदेश के मुस्लिमों का वोट किस ओर जाता है, ये तो भविष्य के गर्भ में ही है.
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