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नगर निकाय खुद ही अब फिर से अपने कर्मचारियों का करेंगे चयन, कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ बताया संशोधन

नीतीश सरकार को पटना हाई कोर्ट ने फिर से झटका दिया है. उनके द्वारा पारित किए गये नगर पालिका एक्ट (संशोधन) एक्ट 2021 को असंवैधानिक करार देते हुए उसे रद्द कर दिया है. कोर्ट ने आज इस मामले में फैसला सुनाया है.

Updated on: 21 Oct 2022, 06:40 PM

Patna:

नीतीश सरकार को पटना हाई कोर्ट ने फिर से झटका दिया है. उनके द्वारा पारित किए गये नगर पालिका एक्ट (संशोधन) एक्ट 2021 को असंवैधानिक करार देते हुए उसे रद्द कर दिया है. कोर्ट ने आज इस मामले में फैसला सुनाया है. इन संशोधनों के जरिये राज्य सरकार ने बिहार के नगर निकायों में ग्रुप डी और ग्रुप सी के कर्मचारियों की नियुक्ति से लेकर उनके तबादले का काम अपने जिम्मे ले लिया था. उससे पहले नगर निकाय खुद कर्मचारियों की नियुक्ति कर रहे थे. अब फिर से नगर निकाय खुद ही अपने कर्मचारियों का चयन करेगा.

नगर निकाय खुद करेगा कर्मचारियों की नियुक्ति

बता दें कि, नीतीश सरकार ने 2021 में बिहार नगरपालिका एक्ट लागू किया था. इसमें 2007 के नगर पालिका एक्ट की धारा 36,37, 38 और 41 में संशोधन किया गया था. जिसके जरिये राज्य सरकार ने बिहार के नगर निकायों में कर्मचारियों की बहाली से लेकर उनके तबादले का काम अपने जिम्मे ले लिया था. लेकिन अब नगर निकाय खुद कर्मचारियों की नियुक्ति करेंगे.
 
2007 के नगरपालिका एक्ट  लागू करने का फैसला 

सरकार के इस विधेयक के खिलाफ आशीष कुमार सिन्हा समेत अन्य ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर किया था. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया है कि ग्रुप सी और ग्रुप डी के कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार नगर निकायों को ही रहेगा. हाईकोर्ट ने 2021 में पारित किये गये नगरपालिका संशोधन एक्ट को रद्द करते हुए 2007 के नगरपालिका एक्ट को पूरी तरह से लागू करने का फैसला सुनाया है. 

हाईकोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ बताया संशोधन

हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि बिहार सरकार ने 2021 में नगरपालिका एक्ट जो संशोधन किया है. वह संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है. राज्य सरकार ने मनमाने तरीके से फैसला लिया. नगर निकायों को संवैधानिक तौर पर कई अधिकार प्राप्त हैं. अगर वे अपने कर्मचारियों के लिए राज्य सरकार पर निर्भर हो जायेंगे तो उनकी स्वतंत्रता कमजोर होगी. ऐसे में अपने कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार नगर निकायों के पास ही रहना चाहिए.