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अब बिहार के अलावा यहां के लोग भी ले सकेंगे बिहार की शाही लीची का टेस्ट

वे वहां रहकर भी अब शाही लीची का स्वाद चख सकेंगे. मजेदार बात है कि बिहार में लीची का स्वाद लोग आमतौर पर गरमी में चखते हैं जबकि दक्षिण भारत के लोग लीची का आंनद नवंबर, दिसंबर महीने में उठाएंगें.

Updated on: 18 Oct 2019, 04:31 PM

Patna:

बिहार के लोग अगर दक्षिण भारत में रह रहे हैं और वे बिहार की शाही लीची को 'मिस' कर रहे हैं तो अब उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. वे वहां रहकर भी अब शाही लीची का स्वाद चख सकेंगे. मजेदार बात है कि बिहार में लीची का स्वाद लोग आमतौर पर गरमी में चखते हैं जबकि दक्षिण भारत के लोग लीची का आंनद नवंबर, दिसंबर महीने में उठाएंगें. मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक, विशालनाथ ने शुक्रवार को मीडिया को बताया, "इस बार सर्दियों में कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में इसकी फसल तैयार होगी. इसकी तैयारी राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र द्वारा पिछले सात सालों से चल रही थी, जो अब सफल हुई है."

उन्होंने बताया कि अनुसंधान केंद्र की एक टीम भी इस सप्ताह इन इलाकों का दौरा करने जा रही है, जहां क्षेत्र के लीची किसानों से मिलकर उनकी समस्याओं का समाधान करेगी. विशालनाथ कहते हैं कि अगस्त में वे भी इन क्षेत्रों में जाकर लीची की फसल को देख चुके हैं.

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उन्होंने कहा कि केरल के वायनाड, इडुक्की अैार कल्पेटा, कर्नाटक के कोडबू, चिकमंगलूर और हसन तथा तमिलनाडु के पलानी हिल्स व ऊंटी जिलों में लीची की बागवानी की शुरुआत हुई है. इन जिलों के किसानों को लीची बागवानी के लिए प्रशिक्षण दिया गया है. उन्होंने कहा कि वहां की जलवायु लीची उत्पादन के लिए ठंड में ही अनुकूल है. दक्षिण भारत में नवंबर, दिसंबर में लीची के फल तैयार हो जाएंगे.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012-13 में राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने दक्षिण भारत के इन राज्यों में लीची बागवानी का प्रयोग शुरू किया था. विशलनाथ कहते हैं कि इन राज्यों में आवश्यकता के अनुरूप मुजफ्फरपुर से लीची के हजारों पौधे भेजे गए थे, जो अब वहां लहलहा रहे हैं. उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत के राज्यों में एक पुष्ट लीची का वजन 40 ग्राम होने की संभावना है. उन्होंने संभावना जताते हुए कहा कि दक्षिण भारत के किसानों के लिए लीची की खेती काफी लाभप्रद होगी, क्योंकि उस क्षेत्र में लीची महंगी बिकेगी.

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गौरतलब है कि इन राज्यों के कई किसानों ने यहां आकर लीची उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त किया था और यहां से जाने के बाद वहां नर्सरी तैयार की और अब वे पेड़ फल देने की स्थिति में पहुंच गए हैं. बिहार की देश के लीची उत्पादन में कुल 40 फीसदी हिस्सेदारी है. आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 32,000 हेक्टेयर में लीची की खेती की जाती है. बिहार की शाही लीची को जीआई टैग (जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन) मिल गया है. वैसे तो पहले से ही बिहार की यह लीची काफी मशहूर रही है, लेकिन, जीआई टैग मिल जाने से यह देश-विदेश में खास ब्रांड बन गया है. उल्लेखनीय है कि बिहार की शाही लीची अपने मीठे स्वाद और खास सुगंध के लिए जानी जाती है. यह मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली, पूर्वी चंपारण और बेगूसराय के इलाकों में पैदा की जाती है.